यह मुसलमानों को याद करने का मौसम है. उनकी समस्याओं पर बहस का मौसम है. यह मुसलमानों को ख़तरे बताने का मौसम है. यह मुसलमानों को डराने का मौसम है. यह चुनाव का मौसम है. यही वजह है कि हर राजनीतिक दल में मुसलमानों के प्रति प्रेम उमड़ रहा है. मुसलमानों के दु:ख पर आंसू बहाए जा रहे हैं. ऐसा हर चुनाव से पहले होता है. हर बार मुसलमानों को बरगलाने के दांव खेले जाते हैं. हाल तो यह है
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देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? कयासों और दावों के बीच नाम तो कई हैं, लेकिन सभी नामों के साथ उम्मीद और नाउम्मीद का संशय जुड़ा हुआ है. राहुल बनाम मोदी का एक आकलन ज़रूर है, लेकिन चुनाव नजदीक आने तक जाहिर तौर पर राजनीतिक परिदृश्य बदलेंगे, तब उसमें नए खिलाड़ी भी होंगे और नए मोहरे भी. हालांकि नरेंद्र मोदी की तस्वीर जिस तरह राष्ट्रीय पटल पर उभर कर आई, उससे संभावनाओं का एक प्रश्न प्रबल होता जा रहा है
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वैचारिक विरोधाभास किसी भी राजनीतिक दल की सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है. ऐसी पार्टियां समाज को नेतृत्व नहीं दे सकतीं, समस्याओं का निदान नहीं कर सकतीं. आम आदमी पार्टी की समस्या यह है कि इसका आधार ही विरोधाभास से ग्रसित है. यही वजह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बने एक महीना भी नहीं बीता और केजरीवाल के साथ-साथ पूरी पार्टी की टाय-टाय फिस्स हो गई. पार्टी की नीति और नीयत, दोनों उजागर हो गईं.
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मीडिया में अरविंद केजरीवाल की जय जयकार हो रही है. कोई इसे अचंभा बता रहा है तो कुछ लोग इसे चमत्कार कह रहे हैं. अरविंद केजरीवाल इन सबसे आगे हैं. वे कहते हैं यह तो भगवान का ही करिश्मा है, नहीं तो एक नई पार्टी सरकार बना सकती है यह कोई सोच भी नहीं सकता है. केजरीवाल लोगों को भ्रमित कर रहे हैं, क्योंकि अगर भगवान होते तो देश की ये हालत ही नहीं होती. अरविंद केजरीवाल असलियत जानते हैं
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मनमोहन सिंह को बचाने के लिए सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी. यह जरा हास्यास्पद है, लेकिन फिर भी जानना ज़रूरी है कि जब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कड़ा रुख अपनाया, तो मनमोहन सिंह सरकार ने कहा कि फाइलें गायब हो गईं. अब पता नहीं कि फाइलें गायब हुई थीं या फिर गायब कर दी गई थीं. सुप्रीम कोर्ट के रवैये की वजह से कोयला मंत्री ने फाइलें ढूंढने के लिए टीम बनाई और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मामला सीबीआई
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मनमोहन सिंह की सरकार ने खुद को एक झूठी, भ्रष्ट, जनविरोधी और आज़ाद भारत की सबसे बदनाम सरकार के रूप में स्थापित किया है. यह एक ऐसी सरकार है, जिसने संसद और सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने का कीर्तिमान स्थापित किया. यह आज़ाद भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है. एक ऐसी सरकार, जिसके कार्यकाल में ऐतिहासिक महंगाई और बेरोज़गारी देखी गई. मनमोहन सिंह की सरकार ऐसी सरकार साबित हुई, जिसके कार्यकाल में किसानों ने सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं कीं. पिछले दस सालों में
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2014 लोकसभा चुनाव के लिए मोदी पूरे देश का दौरा कर रहे हैं. सच बात तो यही है कि देश पिछले 20 सालों में आगे जाने की बजाय विकास के सफ़र में पीछे छूट गया है. ग़रीब और ग़रीब हो गए और अमीर पहले कई गुणा ज्यादा अमीर हो गए. किसानों की हालत ख़राब है. वो आत्महत्या कर रहे हैं. खेतों को छोड़ कर शहरों में पलायन कर रहे हैं. दुनिया के सबसे ज्यादा युवा भारत में तो रहते हैं, लेकिन सच्चाई ये
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जब 14 पार्टियों के 17 नेताओं ने एक दूसरे का हाथ उठाकर यह फोटो खिंचवाई तो वीपी सिंह के राष्ट्रीय मोर्चा की याद ताज़ा हो गई. ऐसी ही तस्वीरें उन दिनों अख़बारों में छपा करती थीं. वो अलग वक्त था. आज का दौर अलग है. वी पी सिंह कई राजनीतिक दलों को एकजुट करने में सफल हुए थे. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सफल आंदोलन किया और कांग्रेस विरोध की लहर पैदा की थी. वह तीसरे मोर्चे का एक सफल प्रयास साबित हुआ. कांग्रेस हारी और
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आम आदमी पार्टी का दावा है कि वह दिल्ली में सरकार बनाएगी. इस दावे का आधार आम आदमी पार्टी द्वारा किया गया सर्वे है. अगर सर्वे ही चुनाव के मापदंड होते तो स़िर्फ भारत ही क्यों, दुनिया के किसी भी देश में लोग चुनाव के नतीजे का इंतज़ार नहीं करते. अरविंद केजरीवाल का दावा है कि आम आदमी पार्टी को 32 फ़ीसद वोट मिलेंगे और 70 में से 46 सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार जीत दर्ज कराएंगे. वैसे इस तरह का दावा करना राजनीतिक तौर पर
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सबसे ईमानदार, मैं सबसे त्यागी, मैं सबसे बड़ा संत, मैं ही सर्वगुणसम्पन्न और बाक़ी दुनिया के सारे लोग भ्रष्ट, बेईमान और धूर्त हैं. मेरी अच्छाई को बताने वाले ईमानदार और मुझ पर उंगली उठाने वाले दलाल, यह आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की राजनीति का स्वभाव है. चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने ईमानदार पार्टी को वोट करने की मांग की. लेकिन लोगों ने उनकी पार्टी से ज़्यादा वोट बीजेपी को दिया. क्या अब भी ज़्यादातर लोग आम आदमी
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