सबसे ईमानदार, मैं सबसे त्यागी, मैं सबसे बड़ा संत, मैं ही सर्वगुणसम्पन्न और बाक़ी दुनिया के सारे लोग भ्रष्ट, बेईमान और धूर्त हैं. मेरी अच्छाई को बताने वाले ईमानदार और मुझ पर उंगली उठाने वाले दलाल, यह आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की राजनीति का स्वभाव है. चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने ईमानदार पार्टी को वोट करने की मांग की. लेकिन लोगों ने उनकी पार्टी से ज़्यादा वोट बीजेपी को दिया. क्या अब भी ज़्यादातर लोग आम आदमी पार्टी को ईमानदार नहीं मानते. नतीजे आ गए, लेकिन सरकार नहीं बनी. जीत का जश्न तो अरविंद केजरीवाल मना रहे हैं, लेकिन आगे ब़ढकर दायित्व लेने से कतरा रहे हैं. वो इसलिए कि जो वादे उन्होंने दिल्ली की जनता से किए हैं, उसकी पोल खुल जाएगी.
दिल्ली विधानसभा चुनाव कई मायने में हैरतरंगेज रहा. नतीजे तो चौंकाने वाले थे ही, लेकिन पहली बार ऐसा देखा गया कि कम सीटें जीतने वाली पार्टी का जश्न सबसे ज़्यादा सीट पाने वाली पार्टी से ज़्यादा बड़ा था. पहली बार यह भी देखा गया कि कैसे कोई पार्टी बिना बहुमत लाए ख़ुद को विजेता घोषित करने पर तुली है. दिल्ली के नतीजे के बाद कई दिनों तक टीवी चैनलों पर आम आदमी पार्टी की ही जय-जयकार होती रही. जबकि राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की. कई मायनों में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की जीत भी ऐतिहासिक है, लेकिन आम आदमी पार्टी बहुमत भी न ला सकी, फिर भी मीडिया आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को जीत साबित करने पर तुली है. आम आदमी पार्टी के तेवर और बयान से भी यह भ्रम पैदा होता है कि दिल्ली चुनाव में यह पार्टी विजयी हो गई है. लेकिन यह भूलना नहीं चाहिए कि दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे ज़्यादा सीटें जीती हैं. आख़िर आम आदमी पार्टी में ऐसी क्या ख़ास बात है कि उसे लोगों और मीडिया का इतना समर्थन मिला कि अब उसकी हार भी जीत दिखाई पड़ती है.
प्रजातंत्र में जनता का फैसला आख़िरी फैसला होता है. चुनाव नतीजों से यह पता चलता है कि किस पार्टी को कितना समर्थन मिला और उससे ही यह तय होता है कि जनता ने किसकी बातों पर कितना भरोसा किया. लेकिन समझने वाली बात यह है कि इससे सच और झूठ तय नहीं होता है. सच और झूठ का फ़़र्क करने के लिए थोड़े शोध की ज़रूरत पड़ती है. ऐसा कई बार देखा गया है कि राजनीतिक दल झूठ बोलकर भी चुनाव जीतने की कोशिश करते हैं. कभी वो सफल हो जाते हैं और कभी वो इसमें पकड़े जाते हैं और जनता उन्हें सबक सिखाती है. एक उदाहरण देता हूं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने एक सफेद झूठ बोला. उन्होंने अपने घोषणा पत्र में कहा कि वह रंगनाथ मिश्र कमीशन के सुझावों को लागू कर रही है, जिसके तहत मुसलमानों को सरकारी नौकरी में पांच फ़ीसदी रिजर्वेशन देगी. लेकिन इसमें एक ट्रिक थी. पार्टी हर जगह अल्पसंख्यकों की बात लिखती थी, जैसा कि रंगनाथ मिश्र कमीशन में बताया गया था, लेकिन उर्दू मीडिया के जरिए इसे मुसलमानों के लिए रिज़र्वेशन बताया गया. कांग्रेसी नेताओं ने इसे मुसलमानों के लिए बताया, जबकि अल्पसंख्यकों में तो सिख, इसाई, जैन और पारसी भी शामिल हैं. मतलब यह कि कांग्रेस पार्टी ने मुस्लिम रिज़र्वेशन के नाम पर मुसलमानों को भ्रमित करके वोट लेना चाहती थी. लेकिन चौथी दुनिया ने जब इस झूठ को पकड़ा और ईटीवी उर्दू के इलेक्शन न्यूजलाइन कार्यक्रम के ज़रिए जब इसका भंडाफोड़ किया तो असलियत सामने आ गई. कांग्रेस का झूठ पकड़ा गया. कांग्रेस पार्टी बेनक़ाब हो गई. लोगों ने ख़ासकर मुसलमान मतदाताओं ने कांग्रेस को सबक़ सिखाया और पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. अगर यह झूठ नहीं पकड़ा जाता और कांग्रेस पार्टी मुसलमानों में रिज़र्वेशन का भ्रम ़फैलाने में क़ामयाब हो जाती, तो कांग्रेस पार्टी की सीटें बहुत ज़्यादा होतीं.
दिल्ली के चुनावों में ठीक इसका उल्टा हुआ. आम आदमी पार्टी लोगों को झांसा देकर समर्थन पाने में क़ामयाब रही. मीडिया अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के भ्रामक प्रचार को पकड़ नहीं सका. आम आदमी पार्टी के झूठ की लिस्ट लंबी है. इस पार्टी ने दिल्ली चुनाव में जनलोकपाल को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया. पार्टी ने दावा किया कि चुनाव जीतने के बाद 29 तारीख़ को दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना के जनलोकपाल को पास कर देगी. यह एक स़फेद झूठ था. जनलोकपाल संसद के द्वारा लाया जाना था. चुनाव के वक्त भी जनलोकपाल बिल संसद में पड़ा था. समझने वाली बात यह है कि जिस बिल को स़िर्फ और स़िर्फ लोकसभा और राज्यसभा में पास किया जा सकता है, उसे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा में कैसे पास कर सकती है? चुनाव से पहले अन्ना हजारे ने इस झूठ को पकड़ लिया और अरविंद केजरीवाल को चिट्ठी लिखी कि वो उनके नाम का इस्तेमाल भ्रम फैलाने में न करें. इसके बाद अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने पैंतरा बदला और दूसरा झूठ लोगों के सामने परोस दिया. इन लोगों ने कहा कि लोगों को
जनलोकायुक्त समझ में नहीं आता, इसलिए वो इसे जनलोकपाल कह रहे थे. वाह! आपने पहले ही मान लिया जनता बेव़कूफ़ है और उसे जनलोकपाल और जनलोकायुक्त का अंतर पता नहीं है. अब ज़रा दिल्ली में लोकायुक्त की स्थिति को भी समझते हैं. दिल्ली में पहले से ही लोकायुक्त क़ानून मौजूद है. दिल्ली में अब कोई नया लोकायुक्त क़ानून नहीं आ सकता है, हां, इस लोकायुक्त क़ानून में बदलाव ज़रूर किया जा सकता है. अगर आम आदमी पार्टी चुनाव जीत भी जाती, तो वर्तमान क़ानून में बदलाव ही कर सकती थी. विधानसभा में पास कराने के बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास भेजा जाता और फिर इसे राष्ट्रपति के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाता. राष्ट्रपति के पास भेजने का मतलब यूपीए की कैबिनेट दिल्ली के लोकायुक्त क़ानून में हुए बदलाव पर फैसला लेती. मतलब यह कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी लोकायुक्त क़ानून को लेकर फिर से उसी स्थिति पर पहुंच जाती, जहां वो 2011 में थी. फ़र्क स़िर्फ इतना कि उस वक्त ये लोग अन्ना हजारे के आंदोलन में शामिल एक आम नागरिक थे, जो अब विधायक बन चुके हैं.
जनलोकपाल के नाम पर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने सफेद झूठ बोला, लेकिन दिल्ली के लोगों को लगा कि यह पार्टी सचमुच जनलोकपाल लाना चाहती है. असलियत यह है कि अन्ना के आंदोलन से जुड़े लोग यह बताते हैं कि 2011 के रामलीला मैदान के आंदोलन के बाद बनी ज्वाइंट कमेटी में, जिसमें पांच-पांच लोग सरकार और टीम अन्ना के थे, चार ऐसे लोग थे जो जनलोकपाल बनाना नहीं चाहते थे. इसमें से दो सरकार की तरफ़ से और दो टीम अन्ना से थे. कपिल सिब्बल और पी चिंदबरम जनलोकपाल बनाने के ख़िलाफ़ थे, जबकि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया इसे बनाने ही नहीं देना चाहते थे. वजह साफ़ है कि अगर उस वक्त जनलोकपाल बन जाता तो अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की मौत हो जाती.
आम आदमी पार्टी ने लोगों को झांसा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पहले हर उम्मीदावार से पार्टी ने एक शपथ-पत्र लिया. शपथ पत्र में बताया गया कि चुनाव जीतने के बाद आम आदमी पार्टी के विधायक लाल बत्ती गाड़ी का इस्तेमाल नहीं करेंगे. ऐसी बातें सुनने में तो बहुत अच्छ लगती हैं, लेकिन ज़रा इस शपथ की सच्चाई समझनी ज़रूरी है. पहले यह समझना होगा कि क्या विधायकों को लाल बत्ती लगाने का अधिकार है या नहीं? छह महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने लाल बत्तियों पर एक निर्देश दिया था. इस निर्देश के मुताबिक़, विधायकों को लाल बत्ती लगाने अधिकार ही नहीं है. अब जब विधायकों को लालबत्ती लगाने का अधिकार ही नहीं है, तब आम आदमी पार्टी अपने हलफ़नामे में इस बात को सबसे ऊपर रखकर क्या साबित करना चाह रही थी? यह लोगों को भ्रमित करने की चाल थी. पढ़े-लिखे लोग भी भ्रमित हो गए. दूसरी शपथ ये है कि आम आदमी पार्टी के विधायक ज़रूरत से ज़्यादा सुरक्षा नहीं लेंगे. अब ज़रूरत से ज़्यादा की परिभाषा क्या है और इसे कौन तय करेगा? वैसे ज़रूरत से ज़्यादा सुरक्षा देश में किसी भी नेता को नही हैं. यह सुरक्षा विभाग ही तय करता है कि किसे कितनी सुरक्षा की ज़रूरत है. तीसरी शपथ यह थी कि आम आदमी पार्टी के विधायक ज़रूरत से ज़्यादा बड़ा बंगला नहीं लेंगे, अब यह भी कैसे तय होगा? विधायकों को जो घर एलाट होते हैं, वो ज़रूरत से ज़्यादा बड़े हैं या नहीं, यह कैसे तय होगा? समझने वाली बात यह है कि इन बातों को आम आदमी पार्टी ने बख़ूबी अपने हलफ़नामों में डाला, लेकिन भाषणों में ये लोगों को यह बताते रहे कि आम आदमी पार्टी के विधायक न लालबत्ती की गाड़ियां इस्तेमाल करेगा, न सुरक्षा लेगा और न ही बंगला लेगा. लोग इतने में ही ऐसा भ्रमित हुए कि किसी ने यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि इन वादों की हक़ीक़त क्या है.
आम आदमी पार्टी ने एक और झूठ बोला और इस झूठ को फैलाने में देश के मीडिया ने अहम रोल अदा किया. आम आदमी पार्टी ने अपनी ही पार्टी के नेता योगेंद्र यादव के द्वारा एक सर्वे कराया. सर्वे में यह दावा किया गया कि पार्टी 47 सीट जीतेगी. पहली बार सर्वे रिपोर्ट का पोस्टर बनाकर दिल्ली में चिपकाया गया. आम आदमी पार्टी का सर्वे कैसे फ़र्ज़ी था,
आम आदमी पार्टी के झूठ की लिस्ट लंबी है. इस पार्टी ने दिल्ली चुनाव में जनलोकपाल को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया. पार्टी ने दावा किया कि चुनाव जीतने के बाद 29 तारीख़ को दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना के जनलोकपाल को पास कर देगी. यह एक स़फेद झूठ था. जनलोकपाल संसद के द्वारा लाया जाना था. चुनाव के वक्त भी जनलोकपाल बिल संसद में पड़ा था. समझने वाली बात यह है कि जिस बिल को स़िर्फ और स़िर्फ लोकसभा और राज्यसभा में पास किया जा सकता है, उसे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा में कैसे पास कर सकती है?
यह हमने कुछ अंक पहले विस्तार से छापा था. लेकिन योगेंद्र यादव अपने भोले-भाले चेहरे और अपनी मुस्कुराहटों के बीच एक के बाद एक झूठा दावा करते चले गए. मीडिया ने भी साथ दिया. दिल्ली में एक हवा सी बन गई कि आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलने वाला है. लोगों ने सच से मुंह फेरा और आम आदमी पार्टी के प्रोपेगैंडा में फंस गए. हैरानी की बात तो यह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 47 सीटें तो नहीं आईं और न ही बहुमत आया, फिर भी योगेंद्र यादव उन लोगों को कोस रहे हैं, जिनके सर्वे में आम आदमी पार्टी को तीसरे स्थान पर दिखाया गया. आम आदमी पार्टी की स्वघोषित ईमानदारी और स्वधोषित राइटमैनशिप की वजह से लोग भ्रमित हुए.
अरविंद केजरीवाल ने बड़ी चालाकी से ख़ुद को दुनिया का सबसे ईमानदार घोषित किया. एक कहानी तैयार की कि मैं इनकम टैक्स कमिश्नर था. अगर पैसे कमाने होते तो मैं ऐशो-आराम की नौकरी क्यों छोड़ता. कमिश्नर की नौकरी करते हुए मैं करोड़ों कमा सकता था. ऐसा सुनते ही लोग बाग-बाग हो उठे. हालांकि, सच्चाई का पता तब चला, जब इनकमटैक्स ऑफीसर्स एशोसिएशन की तरफ से एक चिट्टी सामने आई. इस चिट्ठी में यह लिखा था कि अरविंद केजरीवाल कभी इनकम टैक्स कमिश्नर थे ही नहीं. उनके बैच का अभी तक कोई कमिश्नर नहीं बन पाया है. इस झूठ को भी लोगों ने नज़रअंदाज़ किया. वैसे यह भी सामने नहीं आ सका कि जब केजरीवाल ऐसा बयान देते हैं तो इसका मतलब है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में कोई अगर काम करता है तो वह घूस के पैसे से करोड़पति बन जाता है. अरविंद केजरीवाल को यह भी बताना चाहिए कि उनकी पत्नी आज भी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में उसी स्तर की अधिकारी क्यों हैं?
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के चुनाव में और भी कई झूठ बोले. उन्होंने कहा कि स़िर्फ आम आदमी पार्टी ही ईमादार पार्टी है और इसके हर उम्मीदवार ईमानदार हैं. वैसे ईमानदारी को टेस्ट करने की अभी तक कोई मशीन नहीं बनी है, फिर भी जब स्टिंग ऑपरेशन में आम आदमी पार्टी के कई उम्मीदवारों की पोल खुली तो पार्टी ने वही रुख़ अपनाया जो कांग्रेस पार्टी ने घोटाले में पकड़े जाने के बाद अपनाया. ख़ुद ही मुक़दमा चलाया, ख़ुद ही जांच की और ख़ुद ही फैसला सुनाया. पार्टी ने स्टिंग ऑपरेशन में पकड़े गए सभी उम्मीदवारों को क्लीन चिट दे दी. झूठ का सहारा लेकर स्टिंग ऑपरेशन को ही झूठा साबित कर दिया और मीडिया ने आम आदमी पार्टी के इस झूठ को चैलेंज नहीं किया. वैसे एबीपी न्यूज़ के वरिष्ट पत्रकार विजय विद्रोही ने स्टिंग ऑपरेशन की पूरी टेप देखी और कहा कि स्टिंग ऑपरेशन में कांटेक्स्ट के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई.
अब सवाल यह है कि क्या इतने सारे झूठ बोलकर कोई पार्टी इतनी सीट जीत सकती है? ऐसा प्रश्न कई लोगों के मन में ज़रूर उठता है. तो इसका जवाब बिल्कुल सीधा-सादा है कि ऐसा तो अब तक नहीं हुआ था, लेकिन आम आदमी पार्टी ने एक से ब़ढकर एक झूठे बादे किए और लोगों को भ्रमित करने में सफल हो गई. बीजेपी और कांग्रेस भी लोगों को भ्रमित करती हैं, लेकिन पहली बार राजनीति में ऐसा कोई सामने आया है, जो पढ़े-लिखे विचारवान लोगों को भी भ्रमित करने में सफल रहा है. हिंदुस्तान के लोग और मीडिया उगते हुए सूरज को सलाम करते-करते चापलूसी की सीमा तक पहुंच जाते हैं. सच का पता करने के बजाए चारण बनना उन्हें ज़्यादा अच्छा लगता है. यही वजह है कि देश के सबसे तेज़ चैनल के साथ-साथ दूसरे कई चैनल अरविंद केजरीवाल को अन्ना से महान और एक युगपुरुष साबित करने में जुटे हुए हैं. लेकिन वो इस बात को भूल जाते हैं कि बारिश होते ही रंगे सियार की असलियत सामने आने लगती है.