आधार कार्ड पर पुनर्विचार करने वक़्त आ गया है

aadhar card rethink

संसद में यूआईडी को लेकर बिल लंबित रहा और इधर कार्ड बनने लगे. अब तक छह करोड़ से ज्यादा यूआईडी कार्ड बन चुके हैं. चुनाव के बाद मोदी सरकार आई. मोदी सरकार भी यूपीए सरकार के बनाए रास्ते पर चल पड़ी. ये भी नहीं सोचा कि अगर यूआईडी की पूरी प्रक्रिया बिल्कुल सटीक है तो अब तक क़रीब एक करोड़ कार्ड बेकार कैसे हो गए हैं? किसी में पता गलत है तो किसी में पहचान गलत है. अधिकारी और मीडिया

मोदी का आदर्श ग्राम

modi ka aadarsh gram

दिल्ली हो या गुजरात हो या फिर बनारस का एक गांव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां भी बोलते हैं, उन्हें पूरा देश सुनता है. बनारस के जयापुर गांव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बातें आदर्श ग्राम को लेकर कहीं, उनसे आदर्श ग्राम की योजना को लेकर जनता में कन्फ्यूजन फैल गया. मोदी के भाषण की जिन बातों को मीडिया में हाइलाइट किया गया, उससे लोग और भी ज़्यादा भ्रमित हैं. मोदी ने कहा कि आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव

मेरठ दंगा : सरकारी जांच का सबसे शर्मनाक अध्याय है

meerut dange sarkar janch

मेरठ दंगा आज़ाद भारत में पुलिस की बर्बरता का सबसे घिनौना अध्याय है. लेकिन, इससे भी शर्मनाक बात यह है कि इसके 26 साल बीत जाने के बाद भी किसी एक गुनहगार को सजा नहीं मिली. इससे भी ज़्यादा शर्मनाक यह है कि इस बात का भी पता नहीं चला कि पीएसी के जवानों ने मलियाना और हाशिमपुरा में मौत का जो तांडव किया, क्यों किया, किसके कहने पर किया? किस अधिकारी या नेता ने इसकी मंजूरी दी थी? उन

आईएसआईएस का भारत पर ख़तरा

isis ka bharat par khatra

भारत पर स्पष्ट और आसन्न ख़तरा मंडरा रहा है. आईएसआईएस की गहरी साजिश से देश को सावधान रहना होगा. जिस तरह इराक में अल-बगदादी और आईएसआईएस के आतंकी शियाओं का ख़ात्मा कर रहे हैं, वही खेल यह संगठन भारत में भी खेलना चाहता है. वैसे, देश के मुसलमानों ने बगदादी की अपील खारिज कर दी है, लेकिन आशंका यह है कि पैसे लेकर या भाड़े के कुछ लोग उसकी साजिश में शामिल न हो जाएं और एक ऐसी साजिश को

हरियाणा की जींद रैली से नितीश की ललकार

haryana jind rally nitish kumar

प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि देश में एक सशक्त व स्थिर सरकार हो, लेकिन इससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि देश में एक सशक्त व विश्‍वसनीय विपक्ष हो. देश में आज एक स्थिर सरकार मौजूद है, लेकिन विपक्ष कहां है? कांग्रेस पार्टी की साख इतनी ख़त्म हो गई कि उसके पास नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए ज़रूरी लोकसभा सांसदों की संख्या तक नहीं है. लोगों का भरोसा कांग्रेस से टूट चुका है. दूसरी समस्या यह है

इतिहास फिर से क्यों लिखा जाना चाहिए

itihas phir likha jana chahiye

आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी-भरकम जीत के साथ ही यह तय हो गया था कि अब देश में इतिहास को लेकर विवाद उठेगा. भारतीय जनता पार्टी की सरकार इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश करेगी, जिसका विरोध भी होगा. सरकार के अभी सौ दिन पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन यह विवाद भी शुरू हो गया और विरोध का बिगुल भी फूंक दिया गया. जब अटल जी की सरकार बनी थी, तब भी इतिहास को फिर से

बिहार विधानसभा उपचुनाव : महा-गठबंधन का भविष्य

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बिहार में भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए लालू यादव, नीतीश कुमार और कांग्रेस का एकजुट होना भारतीय राजनीति में एक नया प्रयोग है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार से ऐसा लगने लगा है कि अब वह इस स्थिति में नहीं है कि अकेले भारतीय जनता पार्टी से दो-दो हाथ कर सके. भाजपा को रोकने के लिए नीतीश कुमार ने अपने धुर विरोधी लालू यादव से हाथ मिलाया है. कांग्रेस ने इस मौ़के का फ़ायदा उठाया और

मनमोहन सिंह ईमानदारी का सिर्फ़ मुखौटा हैं

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यूपीए के दस सालों में देश ने इतिहास के सबसे बड़े घोटालों को देखा. अरबों-खरबों का घोटाला करने वाली सरकार ने अनैतिक काम भी किए. संवैधानिक संस्थाओं का मजाक बनाया, साथ ही वह संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति को लेकर भी विवादों में रही. सारी अनैतिकता और घोटालों के बावजूद यह लगता था कि स़िर्फ न्यायपालिका कांग्रेस के दानवी पंजे से बच गई. लेकिन, जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने एक ऐसा खुलासा किया है, जिससे भारतीय प्रजातंत्र शर्मसार हुआ और साथ ही

विदेशी फंड से संचालित गैर सरकारी संगठन देश के लिए खतरा है

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सरकार की रिपोर्ट आई है कि विदेशी धन से चलने वाले देशी एनजीओ भारत के आर्थिक विकास के लिए ख़तरा हैं. विकास की परिभाषा क्या है, विकास का सही रास्ता क्या है, विकास के लिए सही नीतियां क्या हैं, यह सब बहस का मुद्दा है. वैसे भी, विदेशी फंड से संचालित एनजीओ को महज आर्थिक ख़तरा बताना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है. विदेशी धन और संगठनों द्वारा संचालित इन एनजीओ का राजनीतिक हस्तक्षेप भारत के

सेबी और सहारा का सच

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सहारा की दो कंपनियां हैं. सहारा ने SIRECL (सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड) और SHICL (सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड) नामक दो कंपनियों की शुरुआत की. ये कंपनियां समाज के उस तबके में काम करती थीं, जो अब तक देश की आर्थिक व्यवस्था से बाहर हैं. ऐसे लोग, जिनका पिछले 67 सालों में सरकार एक बैंक एकाउंट नहीं खुलवा सकी. ऐसे लोग, जो कभी किसी बैंक के अंदर नहीं गए. समाज के ऐसे ग़रीब लोगों के बीच सहारा की