दिल्ली हो या गुजरात हो या फिर बनारस का एक गांव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां भी बोलते हैं, उन्हें पूरा देश सुनता है. बनारस के जयापुर गांव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बातें आदर्श ग्राम को लेकर कहीं, उनसे आदर्श ग्राम की योजना को लेकर जनता में कन्फ्यूजन फैल गया. मोदी के भाषण की जिन बातों को मीडिया में हाइलाइट किया गया, उससे लोग और भी ज़्यादा भ्रमित हैं. मोदी ने कहा कि आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव में सरकारी पैसा नहीं आएगा. अब लोगों को लग रहा है कि अगर पैसे नहीं आएंगे, तो बुनियादी ढांचे का निर्माण कैसे होगा. क्या गांव वाले अपने पैसे से स्कूल-अस्पताल बनावाएंगे. दूसरी बात यह कि आदर्श ग्राम योजना के तहत लोगों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी. अब यह कैसे होगा, इस पर उन्होंने खुलकर नहीं बताया. जबकि जो लोग गांव एवं पंचायती व्यवस्था से वाकिफ हैं, उन्हें पता है कि विभिन्न योजनाओं के नाम पर दिया जाने वाला पैसा पंचायत के अधिकारी और अन्य सरकारी अधिकारी मिल-बांट कर चट कर जाते हैं. यह भी लोगों को पता चल चुका है कि लोकल-सेल्फ गवर्नेंस के नाम पर लोगों के अधिकारों की जगह भ्रष्टाचार समाज के निचले स्तर तक पहुंच चुका है. जयापुर में अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने आदर्श ग्राम को लेकर किसी रणनीति के बारे बात न करके लोगों का भ्रम बढ़ा दिया है. प्रधानमंत्री ने यह कहकर भी सबको चौंका दिया कि अब लोगों को हर काम के लिए सरकार पर आश्रित रहने की आदत ख़त्म कर देनी चाहिए. कहने का मतलब यह कि हर काम सरकार करे, इसकी अपेक्षा अब देश के लोगों को नहीं करनी चाहिए. उनके इस वाक्य से और ज़्यादा भ्रम फैला है, क्योंकि तब तो लोग यह जानना चाहेंगे कि अगर सब कुछ जनता को ही करना है, तो सरकार क्या करेगी. प्रधानमंत्री ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने, अभिभावकों को स्कूल जाकर व्यवस्था देखने, हर गांव का अपना गीत, गांव का जन्मदिन, बड़े पेड़ की पहचान और बुजुर्गों से संवाद जैसे बिंदुओं पर बातें कीं. प्रधानमंत्री आदर्श गांव के निर्माण की रणनीति, आदर्श ग्राम का प्रारूप, संस्थागत परिवर्तन और उसमें लोगों की भूमिका के बारे में साफ़गोई से बताने में चूक गए. यह कन्फ्यूजन न स़िर्फ आम लोगों में है, बल्कि कई सारे सांसदों में भी है, जिन्हें अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि आदर्श ग्राम योजना को वे किस तरह से अपने क्षेत्र में लागू करें. हक़ीक़त यह है कि देश में गांवों की हालत ठीक नहीं है. वहां ज़िंदगी बसर करना मुश्किल होता जा रहा है.
समस्याओं की एक लंबी फेहरिस्त है. आज गांवों में पीने के लिए साफ़ पानी तक नहीं है, बिजली नहीं है, अस्पताल नहीं है, स्कूल नहीं है. पिछड़ेपन का असर सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर साफ़ दिखाई देने लगा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ग्रामीण जीवन का ताना-बाना चरमरा गया है. लोग गांव से पलायन कर रहे हैं. किसान खेती छोड़कर शहर में मज़दूरी करने लगे हैं. खेती में अब फ़ायदा नहीं होता. गांव का आर्थिक विकास रुक गया है. शिक्षा की व्यवस्था नहीं है, इसलिए गांव में नौजवानों के कौशल का विकास नहीं हो पाता. वे शहरों-महानगरों में अप्रशिक्षित मज़दूरों की भीड़ में शामिल हो जाते हैं. गांव वालों की ज़िंदगी एक अजीबा़ेगरीब कुचक्र में फंस जाती है, जिससे निकलना मुश्किल हो जाता है. इसका सीधा असर न स़िर्फ आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक तौर पर होता है, बल्कि यही अपराध को भी जन्म देता है. मोदी को गांव की समस्याएं मालूम हैं. यही वजह है कि पिछले 67 सालों में पहली बार केंद्र सरकार की नीतियों में गांव को इतनी प्रमुखता दी गई है. लोक नायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिवस 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत लोकसभा एवं राज्यसभा के सांसद एक गांव चुनेंगे और उसका विकास करेंगे. आदर्श ग्राम योजना महात्मा गांधी के विजन और विचारों को साथ रखकर तैयार की गई है. विकास, रोज़गार एवं बुनियादी ढांचे के निर्माण के अलावा गांव में नैतिकता के साथ आधुनिकता का पाठ भी पढ़ाया जाएगा. समाज के सभी वर्गों की भागीदारी, विशेष कर निर्णय लेने में सुनिश्चित की जाएगी. आपसी सहयोग, स्व-सहायता, आत्मनिर्भरता और गांव के विभिन्न समुदायों के बीच आपसी सौहार्द्र बढ़ाने पर बल दिया जाएगा. सार्वजनिक जीवन में भी पारदर्शिता और जवाबदेही तय होगी. गांव में सभी ग़रीबों को भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ लैंगिक समानता और महिलाओं के लिए सम्मान सुनिश्चित करना प्राथमिकता में होगा.
आदर्श ग्राम का चुनाव सांसद करेंगे और अगर सांसद नहीं पाते हैं, तो यह काम ज़िला प्रशासन का होगा. इस योजना के तहत ग्राम पंचायत बुनियादी इकाई होगी. मैदानी इलाकों में जहां गांव की जनसंख्या तीन से पांच हज़ार और पहाड़ी इलाकों में एक से तीन हज़ार होगी. 2024 तक सभी गांवों को आदर्श ग्राम बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इन गांवों में स्कूल, अस्पताल, पुस्तकालय, व्यायाम एवं खेल के लिए मैदान जैसी सुविधाएं होंगी. लोगों को ई-साक्षर किया जाएगा. गांव को हिंसा और अपराध मुक्त बनाया जाएगा. गांव दिवस मनाने के साथ ही हर घर में और सभी सार्वजनिक स्थानों पर शौचालय का निर्माण कराया जाएगा. आदर्श ग्राम योजना का मतलब मजबूत और जवाबदेह ग्राम पंचायतों एवं ग्राम सभाओं के माध्यम से स्थानीय लोकतंत्र की स्थापना है. सभी के पास यूआईडी कार्ड, ई-शासन, समयबद्ध सेवा, स्थानीय भाषा में दीवारों पर योजना एवं उसके निस्तारण की तिथि का अंकन आदि बिंदु इसमें शामिल हैं. किस मद में कितनी धनराशि का बजट है, कितना खर्च हुआ है, यह भी दीवारों पर अंकित करना होगा. शिकायत निवारण केंद्र बनाया जाएगा. शिकायत मिलने पर उसका निवारण लिखित उत्तर के साथ तीन सप्ताह के भीतर किया जाएगा. गांवों में रोज़गार एवं आर्थिक विकास के लिए पशुधन, बागवानी सहित विविध प्रकार की कृषि और संबद्ध आजीविका को बढ़ावा दिया जाएगा. जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पर्यावरण विकास, सड़क के किनारे पौधारोपण और बिजली की व्यवस्था की जाएगी. सभी पात्र परिवारों को पेंशन मिलेगी, जिसमें वृद्धावस्था, विकलांगता एवं विधवा पेंशन भी शामिल होगी. स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना और अनाज के लिए पीडीएस की सुविधा होगी. इस योजना में कहीं से कोई कमी नहीं है, लेकिन 67 सालों का अनुभव स़िर्फ एक ही सवाल को जन्म देता है और वह है कि क्या इस बेहतरीन योजना का सफल कार्यान्वयन हो सकेगा या नहीं. वैसे उम्मीद करनी चाहिए कि यह अच्छे ढंग से लागू हो. किल्लत की ज़िंदगी से जूझ रहे भोले-भाले ग्रामीणों की ज़रूरतें ज़्यादा नहीं हैं. ग्रामीण जीवन को वापस पटरी पर लाने के लिए वे स़िर्फ कृषि क्षेत्र में मूलभूत परिवर्तन चाहते हैं, ताकि कृषि में किसानों का फ़ायदा बढ़े. किसानों के उत्पाद को बाज़ार से जोड़ना ज़रूरी है, उद्योग से जोड़ना ज़रूरी है, ताकि गांव के लोगों की आय में वृद्धि हो सके. ना़ैजवानों को शिक्षा मिले. ऐसी शिक्षा, जो कौशल विकास से जुड़ी हो और जिससे उन्हें रोज़गार मिल सके. गांव के लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ये दो उपाय सबसे ज़्यादा अनिवार्य हैं. इसके बाद ही गांव को आदर्श गांव में तब्दील करने वाली कोई भी योजना कारगर और सफल हो सकेगी.