पत्रकारिता की संवैधानिक मान्यता नहीं है, लेकिन हमारे देश के लोग पत्रकारिता से जुड़े लोगों पर संसद, नौकरशाही और न्यायपालिका से जुड़े लोगों से ज़्यादा भरोसा करते हैं. हमारे देश के लोग आज भी अ़खबारों और टेलीविजन की खबरों पर धार्मिक ग्रंथों के शब्दों की तरह विश्वास करते हैं. हमारा धर्म है कि हम लोगों के विश्वास को धोखा न दें और उन्हें हमेशा सच बताएं. पर जब हमारे बीच के लोग लोकतंत्र की अवधारणा के खिला़फ काम करते मिलें तो क्या कहा जाए? हमारे बीच के महत्वपूर्ण लोगों ने आपातकाल में लोकतंत्र के खिला़फ उस समय की सरकार के समर्थन में जमकर वकालत की और देश की जनता को ग़लत जानकारियां दीं. इनमें से ज़्यादातर आज पत्रकारिता के शीर्ष पर हैं और कुछ तो देश की समस्याओं के हल में लगे हैं. हम इस रिपोर्ट के जरिए आपको आपके परिवार के भीतर के पैबंद दिखाना चाहते हैं और निवेदन करना चाहते हैं कि आप उन्हें भी पहचानें, जो आज भी पी आर जर्नलिज्म कर रहे हैं और देश में मौजूद विभिन्न लॉबियों के लिए प्रचार कर रहे हैं, जिनका हित देश के लोगों की जगह विदेशी कंपनियों के हित में है. हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम सदैव पत्रकारिता के आदर्शों एवं मानदंडों पर अडिग रहने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
चौथी दुनिया को कुछ ऐसे दस्ताव़ेज हाथ लगे हैं, जिनसे कई दिग्गज और स्थापित पत्रकारों के चेहरों से नक़ाब उतर गया. इन दस्तावेज़ों से यह साबित होता है इन महान पत्रकारों ने न स़िर्फ पत्रकारिता को लज्जित किया है, बल्कि इन्होंने अपने कारनामों से देश में प्रजातंत्र की हत्या करने वाली ताक़तों को मज़बूत करने का काम किया है. ये दस्तावेज़ बताते हैं कि किस तरह देश के जाने-माने एवं प्रतिष्ठित पत्रकारों ने सरकार की तानाशाही पूर्ण नीतियों को जायज़ ठहराया और उसके बदले पैसे लिए. हम इस अंक में उन पत्रकारों के नाम, उनके अ़खबारों के नाम और सरकार से उन्होंने कितने पैसे लिए, उसका ब्योरा छाप रहे हैं. प्रजातंत्र की नीलामी करने वालों की सूची में ऐसे कई नाम हैं, जो आज पत्रकारिता के शिखर पर हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन सरकारी दस्तावेज़ से कुछ नामों को निकाल देना बेईमानी होगी, इसलिए हम सभी जीवित और मृत पत्रकारों के नाम छाप रहे हैं.
इमरजेंसी के दौरान सबसे ज़्यादा दूरदर्शन पर दिखने वाले पत्रकार जी पी भटनागर हैं. वह 21 बार सरकार की नीतियों को सही बताने दूरदर्शन पहुंचे. उन्हें दूरदर्शन की तऱफ से 2100 रुपये मिले. दूसरे नंबर पर इंडियन एक्सप्रेस के सुमेर कॉल का नाम है. वह 20 बार दूरदर्शन पर दिखे.
यह घटना भारत के इतिहास के सबसे काले कालखंड की है, जब 26 जून, 1975 के दिन इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल की घोषणा की थी. संविधान को निलंबित कर दिया गया और सरकार ने जिसे अपना विरोधी समझा, उसे जेल भेज दिया. विपक्ष के नेताओं के साथ-साथ सरकार ने देश के कई जाने-माने पत्रकारों को भी जेल भेज दिया. जिसने भी प्रजातंत्र की गुहार लगाई, संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों की बात की, वह सीधा जेल पहुंच गया. देश के सारे अ़खबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर सेंसरशिप लग गई. दूरदर्शन ने कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र की जगह ले ली थी. इमरजेंसी के दौरान दूरदर्शन सरकारी प्रोपगैंडा का सबसे सटीक हथियार बन गया. सरकार की नीतियों को सही और विरोध करने वालों को राष्ट्रद्रोही बताना यही दूरदर्शन का मूलमंत्र था. जो भी कार्यक्रम दिखाए गए, उनमें सरकार द्वारा फैलाए गए झूठ को दिखाया गया. कार्यक्रमों का इस्तेमाल विरोधियों और पत्रकारों को नीचा दिखाने के लिए किया गया. जहां कई पत्रकार सरकारी दमन के खिलाफ लड़ रहे थे, वहीं कुछ ऐसे भी पत्रकार थे, जो अपने स्वार्थ के लिए घुटनों के बल रेंगने लगे. लेकिन सवाल यह है कि वे कौन लोग थे, जो सरकार के लिए काम कर रहे थे. वे कौन पत्रकार थे, जो दूरदर्शन के स्टूडियो में बैठकर देश को गुमराह कर रहे थे, लोगों को झूठी दलीलें दे रहे थे, सरकार की नीतियों को सही और प्रजातंत्र के लिए लड़ने वालों को ग़लत बता रहे थे. समझने वाली बात केवल इतनी है कि इमरजेंसी के दौरान मीडिया पर सेंसरशिप लागू थी. दूरदर्शन पर स़िर्फ वही दिखाया जाता था, जिससे सरकार की करतूतों को सही ठहराया जा सके. जब पूरे देश में ही सरकार के विरोध पर पाबंदी थी तो भला दूरदर्शन के स्टूडियो में बैठकर विरोध करने की हिम्मत कौन कर सकता था. लेकिन सवाल केवल इतना ही है कि खुद को पत्रकार कहने वाले लोग दूरदर्शन के स्टूडियो में सरकार का महिमामंडन करने आखिर क्यों गए.
पत्रकारिता और प्रजातंत्र एक-दूसरे के पूरक हैं. प्रजातंत्र के बिना सच्ची पत्रकारिता का अस्तित्व नहीं है और स्वतंत्र पत्रकारिता के बिना प्रजातंत्र अधूरा है. आज़ादी की लड़ाई में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों ने अ़खबार को हथियार बनाया था.
चौथी दुनिया को मिले दस्तावेज़ डायरेक्ट्रेट जनरल दूरदर्शन के दस्तावेज़ हैं. इन दस्तावेज़ों से यह पता चलता है कि इमरजेंसी के दौरान किन-किन पत्रकारों ने सरकार का साथ दिया था. इन दस्तावेज़ों से यह सा़फ होता है कि कैसे पैसे लेकर इमरजेंसी को जायज़ बताया गया था और सरकारी योजनाओं को बेहतर बताने की वकालत पत्रकारों ने की थी. दूरदर्शन के उक्त दस्तावेज़ से सा़फ पता चलता है कि इमरजेंसी के दौरान चलाए गए कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य सरकारी नीतियों को प्रचारित करना था. मतलब, इमरजेंसी कैसे देश के लिए बेहतर है, किस तरह सरकारी व्यवस्था सुधर गई है, आदि. उक्त दस्ताव़ेज बताते हैं कि इमरजेंसी के दौरान दूरदर्शन की यह ज़िम्मेदारी थी कि टीवी पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम इंदिरा सरकार द्वारा बनाए गए बीस सूत्रीय और पांच सूत्रीय कार्यक्रमों को प्रचारित करे और बढ़ावा दे. इसके लिए दूरदर्शन पत्रकारों को बुलाता था. दूरदर्शन के डायरेक्ट्रेट जनरल के दस्तावेज़ में पत्रकारों के नामों के साथ-साथ उनके अ़खबारों के भी नाम दिए गए हैं. साथ में यह भी दिया गया है कि इन पत्रकारों ने अपनी सेवाओं का कितना ईनाम लिया है.
इमरजेंसी के दौरान सबसे ज़्यादा दूरदर्शन पर दिखने वाले पत्रकार जी पी भटनागर हैं. वह 21 बार सरकार की नीतियों को सही बताने दूरदर्शन पहुंचे. उन्हें दूरदर्शन की तऱफ से 2100 रुपये मिले. दूसरे नंबर पर इंडियन एक्सप्रेस के सुमेर कॉल का नाम है. वह 20 बार दूरदर्शन पर दिखे. उन्हें उनकी सेवाओं के लिए 2000 रुपये मिले. उनके बाद नाम आता है स्टेट्समैन अ़खबार के पी शर्मा का, जिन्होंने 11 बार दिल्ली दूरदर्शन पर कांग्रेस का गुणगान किया. उन्हें इसके लिए 1100 रुपये मिले. समाचार अ़खबार के सत्य सुमन ने नौ बार दूरदर्शन पर सरकार का समर्थन किया. उन्हें 900 रुपये मिले. इंडियन एक्सप्रेस के चेतन चड्ढा और हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़े जी एस भार्गव 8 बार दिल्ली दूरदर्शन पर वक्ता बनकर पहुंचे, दोनों को 800 रुपये मिले. कई पत्रकारों ने 7 बार दूरदर्शन पर अपने ज्ञान का इस्तेमाल इमरजेंसी को जायज़ ठहराने में किया. इनमें टाइम्स ऑफ इंडिया के दिलीप पडगांवकर एवं एस स्वामीनाथन अय्यर, नवभारत टाइम्स के अक्षय कुमार जैन, इंडियन एक्सप्रेस के बलराज मेहता, बिजनेस स्टैंडर्ड के गौतम गुप्ता एवं प्रताप अ़खबार के जी एस चावला शामिल हैं. दो ऐसे भी नाम हैं, जिन्हें दूरदर्शन पर लगातार चलने वाले एक कार्यक्रम के लिए बुक किया गया था. ये दोनों पत्रकार नवभारत टाइम्स के महाबीर अधिकारी और सारिका के कमलेश्वर थे. ये हर पंद्रह दिन पर आने वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेते थे. इन्हें कितना पैसा मिला, इसकी जानकारी दूरदर्शन के इन दस्तावेज़ों में नहीं है. 1975 में दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का ब्योरा है. इसमें समझने वाली बात यह है कि जो पैसा इन पत्रकारों ने लिया, वह आज के संदर्भ में कम ज़रूर नज़र आता है, लेकिन 1975 में इसकी क़ीमत आज की तुलना में बहुत ज़्यादा थी.
पत्रकारिता और प्रजातंत्र एक-दूसरे के पूरक हैं. प्रजातंत्र के बिना सच्ची पत्रकारिता का अस्तित्व नहीं है और स्वतंत्र पत्रकारिता के बिना प्रजातंत्र अधूरा है. आज़ादी की लड़ाई में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों ने अ़खबार को हथियार बनाया था. यही वजह है कि भारत में सामाजिक और राजनीतिक दायित्वों का निर्वाह किए बिना पत्रकारिता करना स़िर्फ एक धोखा है. हर क़िस्म के शोषण के खिला़फ आवाज़ उठाना और प्रजातंत्र की रक्षा करना पत्रकारिता का पहला दायित्व है. जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई और प्रजातंत्र का गला घोंटा, तब हर पत्रकार का यह फर्ज़ था कि वह उस तानाशाही के खिला़फ आवाज़ उठाता, लेकिन कुछ लोगों ने इसका उल्टा किया. वे प्रजातंत्र के लिए लड़ने की बजाय कांग्रेस पार्टी की दमनकारी एवं गैर संवैधानिक नीतियों के बचाव में उतर आए और उसके लिए पैसे भी लिए. ज़ाहिर है, इन पत्रकारों ने यह सब अपने स्वार्थ के लिए किया. दूरदर्शन के दस्तावेज़ इस मायने में महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये बताते हैं कि वर्तमान में पत्रकारिता में आई गिरावट की जड़ें कहां हैं, भारत में पत्रकारिता कब और कैसे पटरी से उतर गई?
आज हालत यह है कि सरकार के साथ-साथ मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं. लोगों में यह धारणा बनती जा रही है कि मीडिया भी दलाल बन गया है. यह धारणा कुछ हद तक ग़लत भी नहीं है. जब देश के बड़े-बड़े संपादकों और पत्रकारों के काले कारनामों का खुलासा होता है तो अ़खबारों में छपी खबरों पर विश्वास करने वालों को सदमा पहुंचता है. बड़े पत्रकार बड़े दलाल बन गए हैं तो छोटे पत्रकार भी पीछे नहीं हैं. पैसे लेकर झूठी खबरें छापने का प्रचलन बढ़ चला है. छोटे-छोटे शहरों में पत्रकार और संवाददाता अवैध वसूली का काम करने लगे हैं. धमकी देने और ब्लैकमेल करने से लेकर अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग कराने का काम भी पत्रकारों का नया शौक़ बन गया है. चुनाव के दौरान टीवी चैनलों और अ़खबारों का जो चरित्र उभर कर सामने आता है, वह वेश्यावृत्ति से कम नहीं है. पत्रकारिता में दलाली की नींव कहां से पड़ी, यह इन दस्तावेज़ों से पता चलता है. आज भी ऐसे पत्रकार मौजूद हैं, जो सरकार के काले कारनामों को छिपाने के लिए दलीलें देते हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को ही कठघरे में खड़ा करते हैं. यह चिंताजनक स्थिति है. जिस तरह नेताओं और अधिकारियों के भ्रष्टाचार से आज प्रजातंत्र खतरे में पड़ गया है, उसी तरह पत्रकारिता की विश्वसनीयता खत्म होने से प्रजातंत्र का बचना मुश्किल हो जाएगा. प्रजातंत्र को ज़िंदा रखने के लिए सामाजिक सरोकारों के साथ विश्वसनीय पत्रकारिता ही व़क्त की मांग है.
ये दस्ताव़ेज प्रेस कमीशन ऑफ इंडिया के सचिव एम वी देसाई के सवालों के जवाब में डायरेक्ट्रेट जनरल दूरदर्शन द्वारा तैयार किए गए. इनमें यह सा़फ-सा़फ लिखा है कि इमरजेंसी के दौरान दूरदर्शन के कार्यक्रम सरकार की नीतियों को प्रचारित करने और 20 सूत्रीय एवं 5 सूत्रीय कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए तैयार किए गए. साथ में यह भी लिखा है कि कुछ कार्यक्रम संविधान में संशोधन के लिए समर्थन जुटाने हेतु तैयार किए गए.
ये सभी दस्तावेज़ अनिल चमड़िया द्वारा संचालित मीडिया स्टडीज ग्रुप द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं.
मार्च 1975 से जून 1977 के दौरान दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों पर बुलाए गए पत्रकारों की सूची |
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अखबार/एजेंसी |
नाम |
कितनी बार |
भुगतान (रुपए मे) |
दूरदर्शन केंद्र, दिल्ली |
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टाइम्स ऑफ इंडिया | उषा राय | 2 | 200 |
टाइम्स ऑफ इंडिया | दिलीप पडगांवकर | 7 | 700 |
टाइम्स ऑफ इंडिया | बी एन कुमार | 1 | 100 |
टाइम्स ऑफ इंडिया | दिलीप मुखर्जी | 6 | 600 |
टाइम्स ऑफ इंडिया | योगेंद्र बली | 6 | 600 |
टाइम्स ऑफ इंडिया | एस स्वामीनाथन अय्यर | 7 | 700 |
टाइम्स ऑफ इंडिया | गिरिलाल जैन | 4 | 400 |
इंडियन एक्सप्रेस | शितांशु दास | 6 | 450 |
इंडियन एक्सप्रेस | चेतन चड्ढा | 8 | 800 |
इंडियन एक्सप्रेस | सुरेंद्र सूद | 6 | 450 |
इंडियन एक्सप्रेस | सुमेर कौल | 20 | 2000 |
हिंदुस्तान टाइम्स | राशिद तलीब | 4 | 600 |
हिंदुस्तान टाइम्स | यतींद्र भटनागर | 4 | 300 |
हिंदुस्तान टाइम्स | जी एस भार्गव | 8 | 800 |
हिंदुस्तान टाइम्स | डी आर आहूजा | 5 | 500 |
हिंदुस्तान टाइम्स | राज गिल | 2 | 150 |
हिंदुस्तान टाइम्स | जीवन नायर | 1 | 75 |
समाचार | सत्य सुमन | 9 | 675 |
फाइनेंसियल एक्सप्रेस | केवल वर्मा | 3 | 300 |
स्टेट्समैन | पी शर्मा | 11 | 1100 |
मस्ताना जोगी | जे पी भटनागर | 21 | 2100 |
नेशनल हेराल्ड | नजमुल हसन | 3 | 225 |
साप्ताहिक हिंदुस्तान | मनोहर श्याम जोशी | 5 | 500 |
स्टेट्समैन | ज्ञानेंद्र नारायण | 4 | 300 |
पैट्रियॉट | आर के मिश्रा | 1 | 100 |
हिंदू | के के कत्याल | 4 | 400 |
तेज | विश्वबंधु गुप्ता | 1 | 100 |
समाज कल्याण | राकेश जैन | 6 | 450 |
सेवाग्राम | जी पी जैन | 2 | 150 |
नवभारत टाइम्स | अक्षय कुमार जैन | 7 | 700 |
आईएनएफए | इंद्रजीत | 2 | 200 |
स्वतंत्र पत्रकार | पी के त्रिपाठी | 5 | 525 |
स्वतंत्र पत्रकार | श्रीमती कमला मनकेकर | 6 | 600 |
दूरदर्शन केंद्र, अमृतसर |
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टाइम्स ऑफ इंडिया | डी आर आहूजा | 3 | 300 |
इंडियन एक्सप्रेस | बलराज मेहता | 7 | 575 |
इंडियन एक्सप्रेस | एच के दुआ | 4 | 300 |
हिंदुस्तान टाइम्स | राज गिल | 4 | 300 |
प्रेस एशिया इंटरनेशनल | दीवान वीरेंद्र नाथ | 1 | 75 |
सेक्युलर डेमोक्रेसी | मोहिंदर सिंह साथी | 1 | 75 |
प्रताप | जी एस चावला | 7 | 525 |
फाइनेंशियल एक्सप्रेस | चेतन चड्ढा | 2 | 200 |
नवभारत टाइम्स | सत सोनी | 1 | 150 |
हिंदुस्तान टाइम्स | प्रोमिला कलहन | 1 | 75 |
इंडियन प्रेस एजेंसी | ओ पी सभरवाल | 5 | 500 |
दिनमान | त्रिलोक दीप | 2 | 200 |
ट्रिब्यून | जी आर सेठी | 2 | 200 |
हमदर्द दृष्टि | ब्रिजेंद्र सिंह | 1 | 50 |
नवन सहित | प्यारा सिंह दत्त | 1 | 50 |
अक्स | अमरजीत सिंह | 1 | 50 |
प्रेरणा | एम एस लूथरा | 1 | 50 |
अरसी | प्रीतम सिंह | 1 | 50 |
विकेंद्रीत | प्रभजोत कौर | 1 | 75 |
त्रिजन | निरंजन अवतार | 1 | 75 |
पंखुरिया | अमर ज्योति | 1 | 75 |
फतेह | मनजीत सिंह नारंग | 1 | 50 |
पहरेदार | करतार सिंह कंवल | 1 | 50 |
लोकरंग | तारा सिंह कोमल | 1 | 50 |
इलेक्शन अर्काइव | शिवलाल | 4 | 700 |
दूरदर्शन केंद्र, बांबे |
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टाइम्स ऑफ इंडिया | सुकुमार जैन | 1 | 100 |
महाराष्ट्र टाइम्स | गोविंद तलवालकर | 2 | 200 |
महाराष्ट्र टाइम्स | वी एन देवधर | 2 | 200 |
नवभारत टाइम्स | एस बी पाठक | 2 | 200 |
धर्मयुग | मनमोहन सरल | 4 | 400 |
स्वतंत्र पत्रकार | के वाजपेयी | 1 | 100 |
स्वतंत्र पत्रकार | कमलाकर कौशिक | 2 | 200 |
नवशक्ति | पी आर बेहरे | 5 | 500 |
महाराष्ट्र टाइम्स | चंद्रकांत तमहने | 4 | 400 |
लोकसत्ता | टी एस खोजे | 2 | 200 |
स्वतंत्र पत्रकार | डी बी कार्णिक | 2 | 200 |
स्वतंत्र पत्रकार | हरीश भनोट | 1 | 100 |
ब्लिट्ज | नवल किशोर नौटियाल | 6 | 600 |
माधुरी | अरविंद कुमार | 2 | 200 |
सर्वोदना साधने | बी ए पाटिल | 1 | 100 |
स्वतंत्र पत्रकार | विश्वनाथ सचदेव | 4 | 400 |
फ्री प्रेस | राम त्रिकंद | 1 | 100 |
स्वतंत्र पत्रकार | प्रभाकर रानाडे | 2 | 200 |
स्वतंत्र पत्रकार | एस आर टीकेकर | 2 | 200 |
लोकसत्ता | विद्याधर गोखले | 3 | 300 |
यशवंत पद्धे | स्वतंत्र पत्रकार | 4 | 400 |
नवभारत टाइम्स | महावीर अधिकारी | ||
(द टाइम्स ऑफ इंडिया समूह) सारिका (द टाइम्स ऑफ इंडिया समूह) कमलेश्वरये दोनों लोग लंबे समय तक चलने वाले धारावाहिक पाक्षिक कार्यक्रम के लिए बुक किए गए. | |||
दूरदर्शन केंद्र, कलकत्ता |
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टाइम्स ऑफ इंडिया | शिवदास बंदोपाध्याय 1 | 75 | |
लोक सेवक | रमेन दास | 2 | 150 |
स्वतंत्र पत्रकार | प्रशांत बोस | 2 | 150 |
बिजनेस स्टैंडर्ड | गौतम गुप्ता | 7 | 525 |
स्वतंत्र पत्रकार | रमेन मजूमदार | 1 | 100 |
आनंद बाज़ार | तपस गांगुली | 3 | 300 |
पैट्रियॉट | प्रफुल्ल रॉय चौधरी | 3 | 225 |
स्टेट्समैन | ज्योति सान्याल | 1 | 75 |
अमृत बाज़ार | आर एन बनर्जी | 1 | 75 |
आनंद बाज़ार | निर्मल सिन्हा | 1 | 75 |
स्वतंत्र पत्रकार | सतेंद्र बिश्वास | 1 | 75 |
नबभारती | ज्योतिरम घोष | 1 | 75 |
बसुंधरा | सुलेखा घोष | 1 | 75 |
आनंद बाज़ार | निखिल मुखर्जी | 1 | 100 |
दूरदर्शन केंद्र, मद्रास |
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इंडियन एक्सप्रेस | राम मोहन गुप्ता | 1 | 75 |
हिंदू | एस वी कृष्णमूर्ति | 1 | 75 |
दिनामलाई | वी पी सलसरी | 1 | 75 |
यूएनआई | जी रंगनाथन | 1 | 75 |
दिनामलाई | एम एस विश्वनाथन | 1 | 75 |
दिनामलाई | एन पी श्रीरंगम | 1 | 75 |
बिजनेस स्टैंडर्ड | टी एस श्रीनिवासन | 1 | 75 |
इंडस्ट्रियल इकोनॉमिस्ट | एस विश्वनाथन | 1 | 75 |
दिनामलाई | एम राजाराम | 1 | 75 |
दूरदर्शन केंद्र, लखनऊ |
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स्वतंत्र भारत | अशोक जी | 2 | 150 |
ब्लिट्ज | बिशन कपूर | 2 | 150 |
स्वतंत्र भारत | चंद्र दयाल दीक्षित | 2 | 150 |
स्वतंत्र पत्रकार | ज्ञानेंद्र शर्मा | 5 | 375 |
क़ौमी आवाज़ | इशरत अली सिद्दीक़ी | 1 | 100 |
नवजीवन | के के मिश्रा | 1 | 100 |
नेशनल हेराल्ड | के सक्सेना | 2 | 150 |
पायोनियर | मेहरू जफर | 1 | 50 |
समाचार | हरपाल सिंह | 1 | 75 |
आज | राजेंद्र सिंह | 1 | 100 |
नेशनल हेराल्ड | सुरेंद्र चतुर्वेदी | 2 | 150 |
दूरदर्शन केंद्र, श्रीनगर |
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टाइम्स ऑफ इंडिया | जनक सिंह | 3 | 225 |
हिंदुस्तान टाइम्स | बृज भारद्वाज | 5 | 375 |
इक़बाल | जी एन ख्याल | 7 | 700 |
इकोनॉमिक टाइम्स | ओ एन कौल | 6 | 600 |
़िखदमत | एन एल वट्टल | 6 | 450 |
यूएनआई | बशीर अहमद | 5 | 375 |
पीटीआई | पी एन जलाली | 5 | 375 |
श्रीनगर टाइम्स | जी एम सो़फी | 5 | 375 |
भट्ट आ़फताब | सनाउल्लाह | 3 | 225 |
मंदिर | पी एन रैना | 1 | 75 |
हमदर्द | मक़बूल हुसैन | 1 | 75 |
चिनार | एम ए बुच | 1 | 75 |
आईना | शमीम अहमद शमीम | 2 | 150 |