भाजपा पर कांग्रेस और वामपंथियों की विचारधारा और सांगठनिक कार्यशैली हावी हो चुकी है. भाजपा के हाल के बयानों पर ग़ौर करें तो पार्टी अब हाईकमान, पार्टी लाइन, डेविएशन्स आदि-आदि जैसे शब्दों का प्रयोग करती नजर आ रही है. वैचारिक पवित्रता का पाठ तो कम्युनिस्ट पार्टी में पढ़ाया जाता है. उनकी विचारधारा स्पष्ट है. पार्टी के नेता हों या कार्यकर्ता, सभी को पता होता है कि पार्टी की लाइन क्या है? वामपंथियों की भांति भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह पिछले कुछ दिनों से विचारधारा की पवित्रता की बात कर रहे हैं. इसी वजह से जसवंत सिंह को पार्टी से निष्कासित किया गया. लेकिन आडवाणी ने भी इसी लक्ष्मण रेखा को पार किया था, तब सब चुप रहे. यह भी कम्युनिस्ट पार्टियों जैसा ही कुछ है कि पोलित ब्यूरो का फैसला अंतिम और सर्वमान्य फैसला होता है. इससे कोई दरकार नहीं कि फैसला कितना सही है या कितना ग़लत. भाजपा का संसदीय बोर्ड भी पोलित ब्यूरो की तरह काम कर रहा है. आडवाणी जी को जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष चुना गया वह भी अजीबोगरीब है.
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. आडवाणी जी को पार्लियामेंटरी बोर्ड ने न स़िर्फ नेता प्रतिपक्ष चुना बल्कि उन्हें यह अधिकार भी दे दिया कि वह लोकसभा के उपनेता और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और उपनेता चुन सकते हैं. न किसी सांसद को पूछा गया, न ही पार्टी में कोई बैठक हुई. जब पत्रकारों ने इस बात पर पार्टी से स़फाई मांगी तो अरुण जेटली का तर्क यह था कि पार्लियामेंटरी बोर्ड के पास कोई भी निर्णय लेने का अधिकार है. जसवंत सिंह के निष्कासन पर जेटली से पूछा गया कि बिना किताब पढ़े, बिना कारण बताओ नोटिस दिए और जसवंत सिंह को स़फाई देने का मौका दिए बगैर उन्हें कैसे निकाल दिया गया. तब भी उनका जवाब यही था कि बोर्ड कुछ भी कर सकता है.
अजीब सी बात है जिस बात को लेकर भाजपा अब तक कांग्रेस को कोसती आई है. वही सब बातें वह खुद दोहरा रही है. हाल में ही जब उत्तराखंड में खंडूरी को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो बताया गया कि यह हाईकमान का फैसला है. भाजपा में न जाने कब से हाईकमान का जन्म हो गया. कौन है यह हाईकमान? हो सकता है कि संघ के रूप में पहले से ही भाजपा में हाईकमान मौजूद था, लेकिन किसी को बताया न गया हो.
पिछले 25 सालों में भाजपा ने कई उतार चढ़ाव देखे. छोटी सी पार्टी से ये देश की सबसे बड़ी पार्टी बन कर भी उभरी थी. अब यह पार्टी जिस राह पर चल पड़ी है वो विभाजन की तरफ जाता है. भाजपा की कार्यशैली बदली गई है. भाजपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को यह बताते गर्व नहीं होता कि वो भाजपा के समर्थक हैं. वामपंथ और कांग्रेस की कार्यशैली अपना कर भाजपा अपनी साख खो रही है.