सीएजी (कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट आई तो राजनीतिक हलक़ों में हंगामा मच गया. दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित विपक्ष के निशाने पर आ गईं. रिपोर्ट ने देश की जनता के सामने सबूत पेश किया कि कैसे कॉमनवेल्थ गेम्स नेताओं और अधिकारियों के लिए लूट महोत्सव बन गया. कांग्रेस पार्टी की तऱफ से दलील दी गई कि सीएजी की रिपोर्ट फाइनल नहीं है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होगी. अब लोक लेखा कमेटी (पीएसी) में फैसला होगा. अगर अब कोई कांग्रेस पर यह आरोप लगाए कि यह सीएजी की संस्था की प्रतिष्ठा नष्ट कर रही है तो यह ग़लत नहीं होगा. वैसे लोक लेखा कमेटी को कांग्रेस पार्टी ने 2जी स्पैक्ट्रम मामले में पहले ही राजनीति की भेंट च़ढा दिया है. अब इस रिपोर्ट के साथ क्या होगा यह पता नहीं. फिलहाल न तो कोई चुनाव है और न ही भारतीय जनता पार्टी के पास संसद में इतनी संख्या है और न ही प्रभाव है कि यूपीए सरकार को कोई खतरा हो सके. यही वजह है कि सरकार विरोध का स्वर सुनने को तैयार नहीं है. भारतीय जनता युवा मोर्चा ने जब दिल्ली में प्रदर्शन किया. पुलिस ने डंडों से उसका स्वागत किया. कार्यकर्ताओं की ज़बरदस्त पिटाई हुई. जब पुलिस के डंडे पोलियो ग्रस्त व्यक्ति के पैरों पर पड़ते हैं तो यह देखकर अ़फसोस होता है.
इस बात पर हमें गर्व करना चाहिए कि हमारे संविधान निर्माता विद्वान थे, सचमुच महापुरुष थे. प्रजातंत्र के मूल्यों और इसे बचाए रखने के लिए ज़रूरी संस्था की ज़रूरत को भली भांति समझते थे. वे दूरदर्शी थे. उन्होंने बहुत ही सूझबूझ के साथ सीएजी जैसी संस्था की उपयोगिता और अधिकार के बारे में बताया था. उस व़क्त के सासंदों के भाषणों को पढ़ने के बाद आज के नेता बौने दिखते हैं. ऐसा लगता है जैसे बंदर के हाथ नारियल थमा दिया गया हो. दरअसल यही फर्क़ है जिसकी वजह से आज सीएजी जैसी संस्था की प्रतिष्ठा पर हमला हो रहा है. कल सुप्रीम कोर्ट इन नेताओं के निशाने पर आ जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
सीएजी की रिपोर्ट पर इसलिए हंगामा मचा, क्योंकि इसमें कॉमनवेल्थ गेम्स में गड़बड़ियों का पर्दाफाश हुआ है. रिपोर्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किए गए स्टेडियम, उपकरण, खेलगांव, सड़कों के सौंदर्यीकरण, उद्घाटन और समापन समारोह पर हुए खर्च में अनियमितता का ज़िक्र है. सीएजी रिपोर्ट में यह उजागर हुआ है कि किस तरह ठेका देने में नियमों का उल्लंघन हुआ, किस तरह पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं थी, किस तरह ठेका देने के बाद खर्च ब़ढाया गया, और किस तरह नक़द खर्च किया गया, ताकि उसके बारे में जानकारी आसानी से नहीं मिल सके. सीएजी की रिपोर्ट पर इसलिए भी हंगामा हुआ, क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में कलमाड़ी की नियुक्ति को लेकर खेलमंत्री ने संसद में भ्रम फैलाने वाले बयान दिए. लेकिन रिपोर्ट में सा़फ-सा़फ बताया गया कि तत्कालीन खेल मंत्री सुनील दत्त के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री कार्यालय के कहने पर आयोजन समिति के अध्यक्ष पद पर सुरेश कलमाड़ी की नियुक्ति हुई. मतलब यह कि एक तो कॉमनवेल्थ गेम्स में जनता के पैसे की लूट हुई और सरकार अपराधियों को सज़ा दिलाने की बजाय सीएजी की रिपोर्ट पर ही सवाल उठा रही है. सीएजी के अधिकार और रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर ही सवाल ख़डे किए जाने लगे. ऐसे में सवाल यह है कि सीएजी के दायित्व और अधिकार पर कांग्रेस पार्टी और सरकार की तऱफ से जो प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं, क्या वह सही हैं?
कॉमनवेल्थ गेम्स के बारे में सीएजी की रिपोर्ट में जो लिखा है, वैसी टिप्पणी पहली बार नहीं की गई है. सरकार के फैसले और नीतियों पर वह पहले भी सवाल उठा चुकी है. सीएजी की निष्पक्षता और मुस्तैदी से कृष्णा मेनन, टीटी कृष्णामाचारी, जॉर्ज फर्नाडीस जैसे राजनेता पर कार्रवाई हुई. सीएजी की रिपोर्ट का महत्व क्या है, यह बात लोक लेखा कमेटी के एक चेयरमैन पहले ही अंकित कर चुके हैं.
डॉ. भीमराव अंबेडकर के बयान की रौशनी में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सीएजी पर यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी की दलील ग़लत हैं. सीतारमैया ने संविधान सभा में कहा कि देश का सीएजी सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह स्वतंत्र और आर्थिक मामलों में सुप्रीम होना चाहिए. सीएजी स़िर्फ ऑडिटर जनरल नहीं है, वह न्यायिक अधिकारी है. इस वक्तव्य से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि प्रधानमंत्री का बयान और संविधान सभा की भावनाओं में बहुत अंतर है.
1967-69 में संसद के लोक लेखा कमेटी के चेयरमैन एम आर मसानी के मुताबिक़ सीएजी की रिपोर्ट किसी भी सरकारी अधिकारी की ज़िम्मेदारी ठहराने के लिए पर्याप्त है. लेकिन आज की स्थिति यह है कि सीएजी रिपोर्ट को पीएसी के पास भेज दिया जाता है, फिर जांच होती है. अब यह पता नहीं कि पीएसी के सदस्यों में ऐसी कौन सी बात है जिससे यह भरोसा हो सके कि वह प्रोफेशनल ऑडिटर से बेहतर तहक़ीक़ात कर सकते हैं. पीएसी किसी निर्णय पर भी पहुंच जाती है, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है. सबकुछ ठंडे बस्ते के अंदर बंद हो जाता है. कांग्रेस पार्टी सीएजी पर कई आरोप लगा रही है. कांग्रेस पार्टी के मूड से तो यही लगता है कि उसने सीएजी पर ही हमला कर दिया है. क़ानून मंत्री सलमान खुर्शीद कहते हैं कि सरकार की अपनी ज़िम्मेदारी है और सीएजी की अपनी ज़िम्मेदारी है. सबको अपना काम करना है. सीएजी जो भी रिपोर्ट बनाती है उसकी जांच पीएसी करती है. उनके मुताबिक़ पीएसी मिनी पार्लियामेंट है. वहां इस रिपोर्ट की जांच होगी. सीएजी की रिपोर्ट को पीएसी में भेजना कार्यप्रणाली का हिस्सा है, लेकिन क्या कार्यप्रणाली का महत्व इतना है कि संविधान की आत्मा का ही गला घोंट दिया जाए? क़ानून मंत्री की दलील संविधान निर्माताओं और संविधान सभा के विचारों और विश्वास के विरुद्ध है. क्या सरकार यह कहना चाहती है कि सीएजी की रिपोर्ट अगर किसी घोटाले के बारे में बताती है तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी.
सरकार की दलील से एक स्थिति उत्पन्न होती है. अगर एक ऐसा घोटाला सामने आता है, जिसमें सरकार और मुख्य विपक्षी दल के नेता शामिल हैं, तो क्या होगा? सीएजी की रिपोर्ट तो फिर किसी भी काम नहीं आएगी, क्योंकि पीएसी में इस पर कोई फैसला नहीं होगा. सत्ता पक्ष और विपक्ष अगर मिल जाएं तो देश में किसी भी लूट को अंजाम देने में सफल हो जाएंगे. दुख की बात यह है कि सीएजी की रिपोर्ट का क्या हो, इस बात पर सैद्धांतिक रूप में सभी दलों की राय यही है कि सीएजी की रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद पीएसी में जानी चाहिए. सबकी दलील यही है कि यह लंबे समय से चली आ रही प्रथा है. पीएसी में सीएजी रिपोर्ट का क्या होता है, यह सब जानते हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स के मामले में स़िर्फ भारतीय जनता पार्टी ही सीएजी रिपोर्ट पर कार्रवाई चाहती है. इसलिए, क्योंकि 2जी स्पेक्ट्रम मामले में पीएसी में कांग्रेस पार्टी ने ठीक से काम नहीं करने दिया.
सीएजी देश के सबसे पुराने संस्थानों में से एक है, जो भारतीय राजनीति में जवाबदेही सुनिश्चित करती है. सीएजी को भारत की सर्वोच्च लेखा परीक्षा संस्था के रूप में जाना जाता है और इसने 16 नवंबर 2010 को अपनी स्थापना के 150 वर्ष पूरे किए हैं. ऐसी संस्था का महत्व ब्रिटिश सरकार ने तब महसूस किया जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1858 में सत्ता संभाली. आज दुनिया भर के देशों में सीएजी जैसी संस्था है, जो ज़्यादा शक्तिशाली है. उनके पास ऑडिट करने के साथ-साथ किसी भी मामले की जांच करने की पावर है. भारत में एक ग़लत धारणा बन गई कि सीएजी स़िर्फ ऑडिट करने वाली संस्था है. सीएजी का पूरा अर्थ है कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल. मतलब, यह सरकारी खर्च का नियंत्रक भी है और ऑडिटर भी है. यही हमारे संविधान में भी है. सीएजी की रिपोर्ट पार्लियामेंट में पेश की जाती है. इस रिपोर्ट का आधार यह होता है कि सरकारी पैसे का उपयोग अधिकारियों द्वारा कितनी समझदारी, ईमानदारी और व्यवस्थित तरी़के से किया गया है. अधिकारियों को किसी योजना के तहत ही सरकारी धन दिया जाता है. यह धन उनका निजी धन नहीं है. उस धन का सही तरीक़े से खर्च और योजना को सफल बनाना उसका प्राथमिक दायित्व होता है. अब सवाल यह है कि क्या सीएजी का काम स़िर्फ ऑडिट रिपोर्ट भेजना है. क्या सीएजी का काम यह नहीं कि जहां-जहां ग़लतियां हुई हैं, उसके बारे में संसद को बताया जाए. हैरानी की बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी यही मानते हैं कि सीएजी का काम स़िर्फ ऑडिट करना है. यह सरकार की पॉलिसी पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती है. यह उन्होंने अपने चुने हुए पांच संपादकों के साथ बातचीत में कहा था. कॉमनवेल्थ गेम्स पर जब सीएजी की रिपोर्ट आई तो प्रधानमंत्री ने कहा कि सीएजी ने अपनी सीमा लांघ दी है.
सरकार की दलील से एक स्थिति उत्पन्न होती है. अगर एक ऐसा घोटाला सामने आता है, जिसमें सरकार और मुख्य विपक्षी दल के नेता दोनों शामिल हो तो फिर क्या होगा? सीएजी की रिपोर्ट तो फिर किसी भी काम नहीं आएगी, क्योंकि ऐसी स्थिति में पीएसी में इस पर कोई फैसला नहीं होगा. सत्ता पक्ष और विपक्ष अगर मिल जाएं तो देश में किसी भी लूट को अंजाम देने में सफल हो जाएंगे.
अब सवाल यह है कि संविधान में क्या है? भारत के संविधान के मुताबिक़ सीएजी राष्ट्रपति को ऑडिट रिपोर्ट पेश करेगी, जिसे पार्लियामेंट में रखा जाएगा. इससे ज़्यादा संविधान में कुछ नहीं कहा गया. इससे यह नहीं समझा जा सकता है कि आखिर सीएजी का रोल क्या है. इसे समझने के लिए हमें संविधान सभा की उस बहस को जानना होगा जब इस संस्था को भारत में लागू किया जा रहा था. संविधान निर्माताओं ने सीएजी को बनाने के मक़सद को सा़फ-सा़फ शब्दों में कहा है. संविधान सभा में सीएजी को लेकर जो बातें कही गईं उससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि देश के प्रजातंत्र को तानाशाही से बचाने और सरकार को जवाबदेह बनाने का दायित्व न्यायपालिका और सीएजी को दिया गया है. संविधान सभा में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सीएजी को भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी बताया था और कहा था कि सीएजी की ज़िम्मेदारी न्यायपालिका से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है. वित्तीय मामलों की सबसे बड़ी निर्णायक सीएजी होनी चाहिए, तब ही शायद देश में स्वराज स्थापित हो सकता है.
यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि संविधान सभा में डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. राधाकृष्णन, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे विद्वानों ने सीएजी के महत्व और दायित्व को सराहा. संविधान सभा में सीएजी के मामले में दिए गए बयानों में सबसे सटीक बयान है संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का. उन्होंने सीएजी को सुप्रीम कोर्ट जैसा महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि सीएजी का दायित्व न्यायपालिका से कहीं ज़्यादा ब़डा है. संविधान के कई प्रावधानों के ज़रिये सीएजी की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा स्थापित की गई है, लेकिन ग़ौर करने वाली बात यह है कि नियुक्ति के व़क्त सीएजी वैसे ही शपथ लेते हैं जैसा सुप्रीम कोर्ट के जज लेते हैं. इन दोनों पर संविधान को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी है, लेकिन मंत्री जब शपथ लेते हैं तो कहते हैं कि वे संविधान के मुताबिक़ काम करेंगे. डॉ. भीमराव अंबेडकर के बयान की रौशनी में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सीएजी पर यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी के लोग जो दलीलें दे रहे हैं, वह ग़लत हैं.
क़द्दावर कांग्रेसी नेता बी पट्टावी सीतारमैया ने संविधान सभा में कहा कि देश का सीएजी सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह स्वतंत्र और आर्थिक मामलों में सुप्रीम होना चाहिए. सीएजी स़िर्फ ऑडिटर जनरल नहीं है, वह न्यायिक अधिकारी है. वह न्याय की मनोदशा से हर फैसला लेगा, जिसका हर फैसला न्यायपूर्ण होगा. क्योंकि वह यह बताएगा कि क्या सही है और अधिकारियों ने क्या किया है. कभी-कभी उसे अधिकारियों के खिला़फ बोलना होगा और उनकी करतूतों का पर्दा़फाश करना होगा. इसलिए सीएजी को ऐसे अधिकार मिले हैं, ताकि वह सरकार, किसी राजनीतिक दल या किसी सरकारी विभाग के ग़ुस्से का शिकार न बन सके. हम जब तक एक ऐसे सीएजी का गठन नहीं करते जो आर्थिक मामले का सबसे बड़ा निर्णायक हो, तब तक इस देश में स्वराज नहीं आ पाएगा. बी पट्टावी सीतारमैया के वक्तव्यों से भी यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रधानमंत्री का बयान और संविधान सभा की भावनाओं में बहुत अंतर है.
राजनीतिक दलों को इस बात का अंदाज़ा ही नहीं है कि जिस अमानवीय स्थिति में देश के ग़रीब अपना जीवन यापन कर रहे हैं, अगर यह दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में होता तो हिंसक क्रांति को कोई रोक नहीं सकता था. सरकार के पास जो भी पैसा है वह देश की जनता का पैसा है. यह देश की जनता का अधिकार है कि उन्हें यह बताया जाए कि उनके पैसे को किस तरह से खर्च किया जा रहा है. देश में लोगों के पैसे की ज़बरदस्त बर्बादी होती है. अगर कोई संस्था इस बर्बादी की जांच करती है, सबूत देती है और फिर भी कोई कार्रवाई न हो तो इसे क्या कहा जाए? क्या चुनाव जीतने से सरकार को तानाशाह बनने की छूट मिल जाती है? हमारे देश में सीएजी यानी कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया का काम यही है. हमारे देश में ऑडिटिंग इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि सरकार बहुत ज़्यादा खर्च करती है. सरकारी धन के अनुमोदन के लिए तो कड़े क़ानून हैं, लेकिन इसकी उपयोगिता पर कोई नियंत्रण नहीं है. कहने का मतलब यह है कि सरकारी धन का सही इस्तेमाल हुआ या नहीं, इसकी जवाबदेही किसी की नहीं है. यही वजह है कि देश में ज़्यादातर योजनाएं विफल हो जाती हैं और किसी को सज़ा नहीं मिलती. अगर सरकारी पैसे के साथ-साथ अधिकारियों की जवाबदेही भी तय कर दी जाए, तब सरकारी धन को बर्बाद करने वालों पर कार्रवाई हो सकती है. क़ानून की नज़र में भ्रष्टाचार का मामला तब आता है जब यह तय हो जाता है कि किसी ने घूस ली है या दलाली की है. लेकिन उन मामलों में कुछ नहीं होता है, जहां योजनाएं फेल हो जाती हैं और जनता के करोड़ों रुपये बर्बाद हो जाते हैं. इसलिए क़ानून निर्माताओं ने देश में एक स्वतंत्र सीएजी का गठन किया था. एक मज़बूत सीएजी का गठन कांग्रेस के ही नेताओं ने किया था. यह गठन जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में किया गया था. यही वह पार्टी है जो संविधान सभा में बहुमत में थी. आज़ादी के 64 साल बाद यह लिखते हुए बुरा लगता है कि कांग्रेस पार्टी एक झूठ को सच साबित करने की ज़िद में सीएजी जैसी संस्था का राजनीतिकरण कर रही है. इसकी प्रतिष्ठा को नुक़सान पहुंचा रही है. इसका नुक़सान कांग्रेस को ही उठाना होगा. साथ ही इस संस्था की प्रतिष्ठा कम होने से देश को भी नुक़सान होगा. राजनीतिक दल अगर भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं तो उन्हें सीएजी पर सवाल उठाने की बजाय सीएजी को मज़बूत करने पर ध्यान देना चाहिए.