अन्ना का आंदोलन अब अपने आख़िरी पड़ाव पर आता दिख रहा है. दो स्थितियां बनती हैं. पहली यह कि सरकार अगर एक मज़बूत जन लोकपाल क़ानून लेकर आती है तो अन्ना का आंदोलन फिजल आउट कर जाएगा. दूसरी स्थिति यह बन सकती है कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार लोकपाल क़ानून न बनाए. इस स्थिति में अन्ना फिर से भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे. देश में फिर से वही माहौल बनेगा, जैसे कुछ दिनों पहले था. कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, जो राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. हरियाणा के हिसार में जो हुआ, उससे कांग्रेस सबक लेगी और लोकपाल के मामले में सावधानी बरतेगी, ऐसा तो मानना ही चाहिए, लेकिन जो ख़बरें आ रही हैं, वे ठीक नहीं हैं.
अच्छा तैराक नदी के बीच नहीं डूबता, वह तेज़ धार से लड़ते हुए खुद को बचा लेता है. अच्छा तैराक हमेशा किनारे पर डूबता है. वह भी इसलिए, क्योंकि उसे लगता है कि यहां पानी कम है. जन लोकपाल के लिए अन्ना हजारे ने जिस आंदोलन को देशव्यापी बनाया, उसने का़फी मुश्किलों का सामना किया. कांग्रेस पार्टी द्वारा अन्ना को भ्रष्ट बताया गया, उन्हें जेल भेजा गया. दिल्ली में आंदोलन न हो सके, इसके लिए हर तरह के हथकंडे सरकार ने अपनाए. उनके साथियों पर आरोप लगाए गए. आंदोलन में शामिल होने वालों को भी तंग किया गया. अन्ना ने हर मुश्किल का सामना किया और वह सफल भी हुए. अब व़क्त आया है, जब यह आंदोलन अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है. यह टीम अन्ना के लिए सबसे चुनौती भरा समय है.
अन्ना हजारे से निपटने के लिए कांग्रेस पार्टी कई स्तरों पर काम कर रही है. दिग्विजय सिंह अलग अपने बयान दे रहे हैं. दूसरी तऱफ पार्टी की तऱफ से ऐसे लोगों को तैनात किया गया है, जो अन्ना हजारे से सीधे संपर्क में हैं. अन्ना को यह समझाया जा रहा है कि उनकी टीम के कुछ लोग उन्हें कांग्रेस के ख़िला़फ भड़का रहे हैं, ताकि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को टारगेट बनाया जा सके. सरकार के लोग बताते हैं कि अन्ना हजारे से चल रही बातचीत से यह संकेत मिलता है कि वह अनशन नहीं करेंगे, उन्हें मना लिया जाएगा. अन्ना ने चेतावनी दी है कि अगर शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल बिल पास नहीं किया गया तो वह आगामी 5 दिसंबर से दिल्ली में अपना तीसरा अनशन शुरू करेंगे. सरकार ने यह भी तय कर लिया है कि इस बार भी उन्हें दिल्ली में अनशन करने की अनुमति नहीं मिलेगी.
मतलब यह कि सरकार के रवैये में कोई बदलाव नहीं आएगा. सरकार ने जिस तरह पिछली बार अन्ना हजारे के लिए परेशानियां खड़ी की थीं, इस बार भी वैसा ही होगा. पिछली बार की तरह क्या कांग्रेस पार्टी फिर उन्हीं ग़लतियों को दोहराएगी, क्या वह फिर से जनता की नज़रों में भ्रष्टाचारियों के साथ खड़ी दिखना पसंद करेगी, क्या वह विधानसभा चुनावों से ठीक पहले इस तरह का जोख़िम उठाएगी? पिछली बार कांग्रेस पार्टी ने अपनी नासमझी की वजह से बहुत कुछ गंवा दिया, लेकिन इस बार वह अन्ना से निपटने के लिए तैयार दिख रही है. अन्ना हजारे के आंदोलन को कैसे बेअसर बना देना है, इसके लिए सरकार ने अपनी रणनीति बना ली है. सरकार एक लोकपाल बिल का मसौदा सामने लेकर आएगी. सरकार एक सशक्त लोकपाल बनाने के मूड में ही नहीं है, इसलिए इस देश को एक जन लोकपाल नहीं मिलेगा. सरकार जो लोकपाल लेकर आ रही है, उसका मुख्य मक़सद अन्ना हजारे के आंदोलन को कमज़ोर करना है. उस लोकपाल का मक़सद लोगों में भ्रम फैलाना होगा, ताकि लोकपाल के नाम पर सरकार के ख़िला़फलोगों की नाराज़गी कम हो जाए. लोकपाल बिल ऐसा होगा, जिसकी बदौलत कांग्रेस के नेता संसद के अंदर और बाहर बहस कर सकेंगे. कांग्रेस पार्टी के सारे वकील नेता इस काम को बख़ूबी अंजाम देंगे. संसद के अंदर उन्हें दूसरे दलों का भी समर्थन मिलेगा. इसके बाद कांग्रेस पार्टी यह दावा करेगी कि जैसा वादा किया गया था, वैसा ही लोकपाल सरकार ने बना दिया. मतलब यह कि अन्ना हजारे और उनकी टीम द्वारा तैयार किया गया जन लोकपाल बिल संसद में पेश नहीं होगा. कांग्रेस की रणनीति यही है कि एक लुंजपुंज लोकपाल बिल संसद में पेश करके टीम अन्ना के सुझावों और महत्वपूर्ण मांगों को दरकिनार कर दिया जाए और उनके आंदोलन को कमज़ोर कर दिया जाए. विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और कांग्रेस पार्टी की नज़र अल्पसंख्यक मतदाताओं पर है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन मुसलमानों के समर्थन पर निर्भर करेगा. अगर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से दूर चले गए तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत बिहार जैसी हो जाएगी. यही वजह है कि कांग्रेस अन्ना हजारे को संघ का एजेंट बताकर अल्पसंख्यकों को लोकपाल के आंदोलन से दूर रखना चाहती है. इस रणनीति को अंजाम देने की पूरी ज़िम्मेदारी दिग्विजय सिंह के पास है. आगामी विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार सबसे अहम मुद्दा होगा. अन्ना हजारे और उनकी टीम के लोग अगर उत्तर प्रदेश में रैलियां करेंगे या किसी यात्रा पर निकलेंगे तो कांग्रेस के लिए काफी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. राहुल गांधी का सारा प्रचार अभियान विफल हो जाएगा. इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी टीम अन्ना के सदस्यों के ख़िला़फ भ्रष्टाचार के मामले उठा रही है और उन्हें भ्रष्ट साबित करने में लगी है. कांग्रेस की रणनीति साफ है कि टीम अन्ना के सदस्यों की साख ख़त्म करके अन्ना का असर कम किया जा सकता है. इस बार कांग्रेस पार्टी स़िर्फ इतना ध्यान रख रही है कि जो ग़लती मनीष तिवारी ने की थी, वैसी ग़लती फिर से न हो. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने अन्ना हजारे को ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट बताने की ग़लती थी, जिसकी भर्त्सना देश भर में हुई. बाद में उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी. अन्ना हजारे से संपर्क बनाकर, उन्हें अच्छा बताकर कांग्रेस पार्टी उनके निकटतम लोगों पर उंगलियां उठाकर अपना हित साधने की रणनीति पर काम कर रही है.
कांग्रेस की रणनीति सा़फ है. सरकार एक ऐसा लोकपाल लेकर आएगी, जिसके पास दिखाने के दांत तो होंगे, लेकिन खाने या काटने के दांत नहीं होंगे. सरकारी लोकपाल असरहीन होगा, जिसके तहत न तो छोटे-छोटे अधिकारी होंगे, न जज होंगे, न सीबीआई होगी, न कोई सांसद होगा और न कोई मंत्री. लोगों ने तो प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात तक करनी बंद कर दी है. चुनावों को देखते हुए सरकार लोकपाल बिल के मसौदे के साथ-साथ और भी कई क़ानून लागू करने का प्रयास करती नज़र आएगी.
अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने के लिए कांग्रेस ने सिटीजन चार्टर बिल की बात सामने लाकर मास्टर स्ट्रोक खेला है. यह बिल ऐसा है, जिसका फायदा देश की जनता को होगा. सभी मंत्रालयों एवं विभागों को जनता की शिकायतें दूर करने के लिए 15 दिनों का व़क्त मिलेगा. सरकार के मुताबिक़, यह विधेयक सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों में सूचना एवं सहायता केंद्र स्थापित करने का प्रावधान करेगा. लोग अपनी शिकायत और उस पर हो रही कार्रवाई का स्टेटस भी पता कर सकेंगे. प्रस्तावित विधेयक के बारे में जल्द ही जनता की राय ली जाएगी. इसके बाद विधेयक के अंतिम प्रारूप पर कैबिनेट से मंजूरी ली जाएगी और फिर इसे शीतकालीन सत्र में पेश कर दिया जाएगा. इसका प्रारूप कमोबेश सूचना के अधिकार की तरह है. इस बिल को इतनी जल्दबाज़ी में क्यों लाया जा रहा है, इसका भेद जयराम रमेश ने खोल दिया. उन्होंने बताया कि यह क़ानून लोकपाल क़ानून से ज़्यादा व्यापक होगा. रमेश ने कहा कि लोकपाल नौकरशाही में उच्च पदों पर बैठे लोगों तक ही सीमित है, जबकि नागरिक अधिकार शिकायत निवारण विधेयक, 2011 ब्लाक स्तर के अधिकारियों के भ्रष्टाचार को दूर करेगा. जनता का काम इसी स्तर के अधिकारियों से ज़्यादा पड़ता है. रमेश के कथन से दो बातों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. पहला यह कि सरकारी लोकपाल में निचले स्तर के नौकरशाहों को शामिल नहीं किया जाएगा, जो अन्ना हजारे की एक महत्वपूर्ण मांग है.
दूसरी बात यह कि सरकार भ्रष्टाचार का मायने ही बदलना चाहती है. सरकारी कामकाज में ढीलेपन और भ्रष्टाचार में फर्क़ होता है. सरकारी योजनाओं के तहत पैसों का जो गबन होता है, उस पर रोक कैसे लगेगी. उदाहरण के तौर पर, मनरेगा जैसी योजनाओं में जो भ्रष्टाचार हो रहा है, उस पर काबू कैसे पाया जाएगा. इसके लिए तो लोकपाल की ज़रूरत पड़ेगी. इससे तो यही समझ में आता है कि यह बिल किसी रणनीति के तहत लाया गया है. सरकार इस बिल को शीतकालीन सत्र में इसलिए लेकर आ रही है, क्योंकि उसका मक़सद अन्ना हजारे के आंदोलन को कमज़ोर करना है. जो लोग भ्रष्टाचार के ख़िला़फ लड़ रहे हैं, जो लोग छोटे-छोटे अधिकारियों को लोकपाल के तहत लाना चाहते हैं, उनके लिए यह ख़तरे की घंटी है. कांग्रेस की रणनीति साफ है. सरकार एक ऐसा लोकपाल लेकर आएगी, जिसके पास दिखाने के दांत तो होंगे, लेकिन खाने या काटने के दांत नहीं होंगे. सरकारी लोकपाल असरहीन होगा, जिसके तहत न तो छोटे- छोटे अधिकारी होंगे, न जज होंगे, न सीबीआई होगी, न कोई सांसद होगा और न कोई मंत्री. लोगों ने तो प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने की बात तक करनी बंद कर दी है. चुनावों को देखते हुए सरकार लोकपाल बिल के मसौदे के साथ-साथ और भी कई क़ानून लागू करने का प्रयास करती नज़र आएगी. सत्र गुजर जाएगा और चुनाव भी हो जाएंगे, फिर इन सभी बिलों को महिला आरक्षण बिल की तरह अधर में लटका दिया जाएगा. सरकार लोगों को बिल पेश करने और मसौदा तैयार करने का झांसा देकर अन्ना का आंदोलन कमज़ोर करने की फिराक में है. अन्ना हजारे एक अनुभवी आंदोलनकारी हैं.
वह इस बात को भलीभांति समझते हैं कि सरकार से अपनी मांगें कैसे मनवाई जा सकती हैं और सरकार क्या बहाने बना सकती है. अन्ना ने सरकार की हर चाल को भांप लिया है, इसलिए उन्होंने तीसरे अनशन की चेतावनी दी है. तीसरे अनशन की ज़रूरत इसलिए है, क्योंकि सरकार अपनी चालबाज़ी से अन्ना के आंदोलन को गुमराह करने में कामयाब रही. दूसरे राजनीतिक दलों ने भी सरकार की इस मुहिम में सहायता की. संसद में बहस के दौरान कुछ गिनी-चुनी ही पार्टियां थीं, जिन्होंने अन्ना का आंशिक समर्थन किया. अन्ना हजारे को अब यह आभास हो गया है कि सरकार जन लोकपाल या एक सशक्त लोकपाल नहीं लाना चाहती है. अन्ना का तीसरा अनशन निर्णायक होगा. देश की जनता को अगर भ्रष्टाचार से लड़ना है, अगर वह सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकना चाहती है तो अन्ना के अगले अनशन को पहले से ज़्यादा समर्थन की ज़रूरत होगी. उम्मीद यही है कि इस बार भी देश का युवा सड़कों पर उतरेगा और भ्रष्टाचार के ख़िला़फ निर्णायक लड़ाई में अपना योगदान देगा.