आज तक के एक कार्यक्रम में पुण्य प्रसून वाजपेयी ने एक ऐसी बात कही, जिससे सबके दिल को गहरा आघात पहुंचा. उन्होंने अन्ना-अरविंद चिट्ठी विवाद पर कहा कि यह एक सपने की मौत हो रही है. लेकिन इसके ठीक 72 घंटे के बाद जो वीडियो दुनिया के सामने आया, उससे यह साबित हो गया कि यह सपने की मौत नहीं, बल्कि सपने की हत्या कर दी गई है. और इस हत्या के मुख्य आरोपी अरविंद केजरीवाल हैं, जिनकी महत्वाकांक्षा सत्ता हासिल करना है. अरविंद केजरीवाल, जो इस बात का दंभ भरते थे कि स़िर्फ वो और उनकी पार्टी ही एकमात्र ईमानदार है और दुनिया के बाक़ी सारे लोग बेईमान और भ्रष्ट हैं, एक ही झटके में उन सारे दावों की पोल खुल गई. यह साबित हो गया कि आम आदमी पार्टी भी दूसरी राजनीतिक पार्टियों की ही तरह भ्रष्ट है. भ्रष्टाचार के जिस मुकाम को पाने में दूसरी पार्टियों को वर्षों लगे, आम आदमी पार्टी ने स़िर्फ चार महीने में पा लिया. देश की जनता के साथ गंदा मज़ाक हुआ है. पाश की कविता याद आती है, ‘सपनों का मर जाना सबसे ख़तरनाक होता है.’ अरविंद केजरीवाल पर सपने की हत्या का इल्ज़ाम है.
दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में 21 नवंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऑपरेशन लोकपाल के तहत किए गया स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया. यह एक फिल्म थी जिसे ‘मीडिया सरकार’ नामक वेबपोर्टल ने तैयार किया था. फिल्म क्यों बनाई गई? चुनाव से पहले ही इसे क्यों दिखाया गया? क्या इसके पीछे कोई साज़िश है? ये बातें बहस की हैं. लेकिन इस स्टिंग ऑपरेशन में जो कुछ नज़र आया, उससे लोगों का दिलो-दिमाग हिल गया. यह बेहद शर्मनाक है. देश की जनता स्तब्ध है. ईमानदारी का दंभ भरने वाली आम आदमी पार्टी का चेहरा बेनक़ाब हो गया. ईमानदारी के नक़ाब के पीछे लोभ और फ़रेब का इतना वीभत्स चेहरा छिपा होगा, यह शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा. अगर यह वीडियो सामने न आता, तो यह भला कौन यक़ीन करता कि आम आदमी पार्टी की नेता शाजिया इल्मी पैसे लेकर धरना-प्रदर्शन करने को तैयार हो जाती हैं? पार्टी में फंड देने वालों के लिए वह किसी भी धरने-प्रदर्शन में चली जाती हैं. बयान दे देती हैं. इस वीडियो में यह दिखाया गया कि कैसे शाजिया इल्मी कैश व बेनामी पैसे लेने को तैयार हो गईं. ये भी नहीं पूछा कि पैसे देने वाली कंपनी का नाम क्या है. विरोधी कंपनी का नाम क्या है? हैरानी की बात यह कि इस डील के दौरान शाजिया इल्मी यह भी बताती हैं कि कैसे इस बेनामी कैश को आम आदमी पार्टी के वेतनभोगी कार्यकर्ताओं को देकर पैसे का निबटारा कर दिया जाएगा. इतना ही नहीं, आम आदमी पार्टी की इन चहेती नेत्री का कारोबार इतना बड़ा है कि इनके पास सेक्रेटरी भी है. इस स्टिंग ऑपरेशन में वो यह कहती हुई दिख रही हैं कि पैसा कैसे लिया जाएगा और उसका इस्तेमाल कैसे होगा. ये सारी बातें उनके सेक्रेटरी ही डील करते हैं. इस वीडियो में शाजिया इल्मी के सेक्रेटरी ने आम आदमी पार्टी के और भी कई राज़ खोले हैं. उसने बताया किस तरह बेनामी नक़द पैसे को आउटडोर मीडिया, गाड़ियों के फ्यूल में और कार्यकर्ताओं के वेतन में इस्तेमाल किया जाएगा. इससे साफ़ पता चलता है कि आम आदमी पार्टी का यह दावा खोखला है कि पार्टी फंड में दिए गए पाई-पाई का हिसाब उनकी वेबसाइट पर है.
इस स्टिंग ऑपरेशन में यह भी ख़ुलासा हुआ कि आम आदमी पार्टी के सबसे दुलारे नेता कुमार विश्वास कालाधन लेने में ज़रा भी झिझकते नहीं है. वेबपोर्टल ‘मीडिया सरकार’ के रिपोर्टर ने कुमार विश्वास के घर जाकर यह स्टिंग ऑपरेशन किया. कवि कुमार विश्वास के पास भी एक सेक्रेटरी है. महिला रिपोर्टर एक कार्यक्रम के लिए कुमार विश्वास को आमंत्रित करने पहुंची थी. बातचीत हुई. कार्यक्रम में आने का कितना पैसा कुमार विश्वास लेते हैं, इसकी डील हुई और जब पैसे देने की बात आई तो कुमार विश्वास के सेक्रेटरी ने बताया कि वो नक़द पैसे भी ले लेते हैं, लेकिन बदले में कोई रसीद नहीं है. वीडियो में साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है कि किस तरह से रिपोर्टर के द्वारा दिए गए नक़द पैसे को कुमार विश्वास का सेक्रेटरी अपनी ज़ेब में रख रहा है. इस स्टिंग ऑपरेशन के बाद कुमार विश्वास ने अपने बचाव में जो कहा वह और भी हास्यास्पद है. उनका कहना है कि वो देश के सबसे ज्यादा पैसे लेने वाले कवि हैं. वो अपने हुनर का पारिश्रमिक लेते हैं. नगद पैसे लेना कोई जुर्म नहीं है. लेकिन उन्हें क़ानून की जानकारी नहीं है कि अगर आप पारिश्रमिक के रूप में पचास हज़ार या उससे अधिक रुपये लेते हैं, तो इस ट्रांजेक्शन में रुपया लेने और देने के लिए दोनों पक्षों के पैन नंबर का होना ज़रूरी है. साथ ही अगर आप ग़रीबों और आम आदमी के लिए राजनीति करते हैं, तो जनता की आपसे कुछ अपेक्षाएं होती है. कुमार विश्वास ने जो किया वह कोई जुर्म नहीं है, लेकिन समाज में उन्होंने जो अपनी तथाकथित छवि बना रखी है, स्टिंग ऑपरेशन में दिखने वाली उनकी छवि के बिल्कुल उलट है. स्टिंग ऑपरेशन में कुमार विश्वास पांच सितारा होटल व हवाई जहाज़ के बिज़नेस क्लास के इंतज़ाम होने पर ही अपनी यात्रा शुरू करने की बात करते हैं, लेकिन बाहर आप ख़ुद को ज़मीनी नेता कहते हैं. यह ढोंग नहीं तो और क्या है?
इस स्टिंग ऑपरेशन के दौरान वेबपोर्टल ‘मीडिया सरकार’ के रिपोर्टर एक-एक करके आम आदमी पार्टी के कई नेताओं से मिले. इस वीडियो में कैद पार्टी के विधानसभा चुनावों के कई उम्मीदवारों से हुई बातचीत और उनके विचार जिसने भी सुना उसे दुख हुआ. यह देश की जनता के साथ धोखा हुआ है. जिस पार्टी में देश की जनता एक नया और ईमानदार चेहरा देख रही थी, वह पार्टी उसे छल रही है. जनता की बात करने वाले, दिल्ली में स्वराज लाने का दंभ भरने वाले नेताओं ने दिल्ली में ऐसे महान उम्मीदवार खड़े किए हैं, जो इस स्टिंग ऑपरेशन में ज़मीन पर क़ब्जा करने व पैसे उगाही करने वाले गुंडे की तरह बात करते नज़र आए. जिन्हें लोग अपना तारणहार समझ रहे हैं, उनमें और राजनीति के माहिर खिलाड़ियों की फ़ितरत में कोई फ़र्क नहीं है. इस ऑपरेशन में कोई इक्का-दुक्का पकड़ा गया होता, तो समझ में आता, लेकिन क्या नेता और क्या उम्मीदवार, यहां तो पूरे कुएं में ही भांग मिली है. इस स्टिंग ऑपरेशन से आम आदमी पार्टी का फ़रेबी चेहरा बेनक़ाब हो गया.
आम आदमी पार्टी के कोंडली विधानसभा के उम्मीदवार मनोज कुमार को रिपोर्टर ने बिना लिखत-पढ़त के नक़द पैसे निकलवाने के एवज़ में हर तरह का सपोर्ट देने की पेशकश की, तो जनाब तुरंत तैयार हो गए. मनोज कुमार को ये कहते हुए कोई परेशानी नहीं हुई कि वह अभी ख़ुद तो नहीं जा सकते, लेकिन अपने आदमी भेज देंगे. इस बात का आश्वासन भी दिया कि चुनाव जीतने के बाद तो वे उनके साथ ही हो जाएंगे. सवाल यह है कि यह कैसी राजनीति है कि पार्टी का उम्मीदवार अपने आदमियों को भेजकर अटका हुआ पैसा निकलवाने की हामी भर रहा है. यह छवि तो एक राजनीतिक गुंडे की छवि है. इसी तरह संगम विहार के उम्मीदवार दिनेश भी प्रॉपर्टी के विवादित मामले को सुलझाने को तैयार हो गए. ओखला से आप पार्टी के उम्मीदवार इरफान यह कहते हुए पकड़े गए कि वो रिपोर्टर के फंसे हुए नक़द पैसे को निकलवा देंगे. इरफान ने यहां तक कहा कि अगर सीधे रास्ता नहीं निकला, तो टेढ़ी उंगली से निकलेगा. इसके बाद स्टिंग ऑपरेशन के निशाने पर आए रोहतास नगर से पार्टी उम्मीदवार मुकेश हुडा, जिन्होंने बूथ कैप्चरिंग के लिए लड़कों को भेजने और लोनी इला़के में फंसे पैसे को 4 दिसंबर यानी चुनाव के बाद निकलवाने का भरोसा दिया है.
देश की सबसे ईमानदार पार्टी का होने का दावा करने वाली पार्टी की पोल खुल गई है. अरविंद केजरीवाल अगर इस तरह के लोगों को एमएलए बनाकर व्यवस्था परिवर्तन करना चाहते हैं, तो केजरीवाल की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा होता है. इन सबके अलावा इस स्टिंग ऑपरेशन में सबसे ख़तरनाक बात देवली के उम्मीदवार प्रकाश ने बताई. उन्होंने बताया कि दिल्ली के सभी 70 उम्मीदवार डमी हैं. यानी कठपुतली हैं. ये न कोई फैसला ले सकते हैं और न ही कुछ अपने मन से कर सकते हैं, बस इशारों पर चलते हैं. इस बयान का मतलब यही है कि आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल का फैसला ही आख़िरी फैसला है. कार्यकर्ताओं की कोई आवाज़ नहीं है. सवाल यह उठता है कि जो पार्टी सत्ता के विकेंद्रीकरण पर लंबा-चौड़ा भाषण देती है. अगर वह अपनी पार्टी के अंदर ही निरंकुश ऑटोक्रेसी और पर्सनालिटी कल्ट का अनुसरण करती है, तो यह मान लेना चाहिए कि ये पार्टी देश के प्रजातंत्र के लिए भी ख़तरनाक है. इस स्टिंग ऑपरेशन से जो हक़ीक़त सामने आई है, उसके बाद आम आदमी पार्टी से लोगों का विश्वास उठ गया है. अब चाहे वो चुनाव जीतें या हार जाएं, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, क्योंकि वह भी देश में मौजूद सैकड़ों पार्टियों की भीड़ में शामिल हो चुकी है, जो चुनाव जीतने के लिए हर तरह के हथकंडे व समझौते करने को तैयार हैं. अफ़सोस तो तब होता है, जब अरविंद केजरीवाल के मुंह से भी झूठे बयान निकलते हैं.
इस स्टिंग ऑपरेशन से पहले आम आदमी पार्टी एक और विवाद में फंसी, जिससे पार्टी की बहुत किरकिरी हुई. अन्ना हजारे जी ने अरविंद केजरीवाल को एक पत्र लिखा. पत्र में उन्होंने कई वैचारिक मदभेद और आरोपों के बारे सवाल उठाए. पत्र में उठाया गया सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है कि अन्ना ने अरविंद केजरीवाल से यह पूछा कि जब उन्होंने पहले ही कह दिया था कि उनके नाम का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी न करे, तब उनके नाम का इस्तेमाल क्यों रहा है? साथ ही उन्होंने एक बार फिर से यह साफ़ किया कि आम आदमी पार्टी को उनका समर्थन नहीं है. इस चिट्ठी में यह भी पूछा गया कि जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो चंदा जमा हुआ, उसका क्या हुआ और कहीं उसका इस्तेमाल आम आदमी पार्टी के लिए तो नहीं हो रहा है. पत्र में अन्ना हजारे ने उनके नाम से जारी सिम कार्ड के बारे में भी पूछताछ की और इस बात का भी जवाब मांगा कि जब जनलोकपाल पास करने का अधिकार स़िर्फ लोकसभा के पास है, तो वो दिल्ली की जनता से क्यों झूठ बोल रहे हैं कि दिल्ली विधानसभा में लोकपाल क़ानून पास किया जाएगा.
इस चिट्ठी के मिलते ही अरविंद केजरीवाल बिलबिला उठे. पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उन्होंने इस चिट्ठी का जवाब तैयार किया और आनन-फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली. यह अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी ग़लती थी. अन्ना ने अरविंद को एक व्यक्तिगत चिट्ठी लिखी, इसलिए नैतिकता का तकाज़ा यही था कि वो भी एक व्यक्तिगत चिट्ठी लिखते या अन्ना के पास जाकर जवाब दे सकते थे. लेकिन लगता है कि अन्ना की चिट्ठी को एक मुद्दा बनाकर इसका चुनावी फ़ायदा उठाने की लालच में उन्होंने इसे सार्वजनिक करने की योजना बनाई. प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू हुई. कुछ ही देर में भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता ने वहां आकर स्टेज पर बैठे अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर काली स्याही फेंक दी. प्रेस कॉन्फ्रेंस में हंगामा मच गया. बाद में अलग-अलग टीवी चैनलों पर जाकर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जिस तरह से बयानबाज़ी शुरू की, वो शर्मनाक थी. अब तक लोगों को यह भ्रम था कि अन्ना हजारे जी का परोक्ष समर्थन आम आदमी पार्टी के साथ है. लेकिन इस चिट्ठी से कलई खुल गई. जिस तरह से इस विवाद को मीडिया ने उठाया, उससे स़िर्फ और स़िर्फ अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की किरकिरी हुई.
अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने यह आरोप लगाया कि कुछ लोग अन्ना को बरगला रहे हैं. उन्हीं लोगों ने झूठी बातें बता कर अन्ना से यह चिट्ठी लिखवाई. हालांकि, अन्ना हजारे स्वयं इन आरोपों का खंडन कर चुके हैं. इसके बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता पारंपरिक और सोशल मीडिया के माध्यम से झूठे आरोप लगाते रहे. दरअसल, ये पूरा वाक़या आम आदमी पार्टी की आंतरिक राजनीति व मतभेद का नतीजा था. आम आदमी पार्टी यानी आप ने दिल्ली के हर क्षेत्र में कार्यकर्ता व नेताओं को पैदा किया. हर क्षेत्र में विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी के कई प्रबल दावेदार तैयार हो गए. जब टिकट बांटने का वक्त आया, तो जिन लोगों को टिकट नहीं मिला, उन्होंने विद्रोह कर दिया. कुछ लोगों ने आप से अलग होकर ‘बाप’ (भारतीय आम आदमी परिवार) बना लिया. टिकट बांटने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए. इन्हीं लोगों ने अन्ना के नाम से जारी सिम कार्ड से जुड़े मसले को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया. साथ ही अन्ना के पास जाकर इसकी शिकायत की. कहने का मतलब यह कि आम आदमी पार्टी की जो किरकिरी हो रही है, वह उनके ही ग़लत फैसलों का नतीजा है. और सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह कि बदरपुर के ऐसे ही एक उम्मीदवार ने तो अरविंद केजरीवाल पर ही दो करोड़ रुपये में टिकट बेचने का आरोप लगा दिया. इन आरोपों के बीच सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जब आप के ही कार्यकर्ता पार्टी के ख़िलाफ़ साज़िश करें और मीडिया को ख़बरें देने लगें. आपस में भेजे गए एसएमएस को सार्वजनिक करने लगें, तो इसका मतलब यह है कि अरविंद केजरीवाल पार्टी के सर्वेसर्वा तो हैं, लेकिन सक्षम नेतृत्व देने में असफल रहे हैं.
आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं व मीडिया में बहस करने वाले विशषज्ञों को लगता है कि अरविंद केजरीवाल ने अपना मकाम ख़ुद बनाया है और अन्ना हजारे से वो कहीं आगे निकल गए हैं. ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस आता है, क्योंकि ऐसे लोग भारत की वास्तविकता से बिल्कुल कटे हुए हैं. इतिहास गवाह है कि इस देश में स़िर्फ एक चीज को पूजा जाता है और वह है त्याग भावना. हिंदुस्तान में सदियों से संतों को पूजा गया है. गांधी इसलिए पूजे जाते हैं, क्योंकि लोग उनमें एक संत की छवि देखते थे. इसलिए गांधी का मुक़ाबला न तो नेहरू और न ही कोई और महानायक कर सकता है. वर्तमान में जितने भी नेता व समाजिक कार्यकर्ता हैं, उनमें अकेले अन्ना हजारे ही संत हैं. एक लंबे समय तक उन्होंने बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों के विरोध में संघर्ष किया. जितना उनका संघर्ष और सामाजिक जीवन है, उतना तो आम आदमी पार्टी के ज्यादातर समर्थकों और नेताओं की उम्र भी नहीं है. अन्ना ने साफ-साफ कहा था कि इस देश की चुनावी राजनीति महज़ पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे का खेल है. यह एक कीचड़ है, जिसमें जो जाएगा, वह गंदा हो जाएगा. काश! अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने अन्ना की बात मानी होती.