2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने देशवासियों का सरकारी तंत्र पर विश्वास ही तोड़ दिया. जब पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस घोटाले को कोर्ट तक पहुंचाया तो किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि कोई मंत्री किसी घोटाले में जेल भी जा सकता है, लेकिन 2-जी घोटाले में पहले दूरसंचार मंत्री ए राजा जेल गए, फिर डीएमके प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोई भी जेल गईं. इनके साथ-साथ बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक और अधिकारी तिहाड़ जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने 2-जी घोटाले में जिन-जिन लोगों पर आरोप लगाए, उनके ख़िला़फ सबूत भी दिए. फिलहाल, गृहमंत्री पी चिदंबरम के ख़िला़फमामले में कोर्ट के आदेश का इंतज़ार है. 2-जी घोटाले में सुब्रह्मण्यम स्वामी का अगला निशाना गांधी परिवार है.
- 2-जी घोटाले में सोनिया गांधी के दामाद भी आरोपी
- राहुल गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं
- सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद का त्याग नहीं किया
- राष्ट्रपति ने सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से रोका
- आरएसएस स्वामी को भाजपा में शामिल करना चाहता है
भ्रष्टाचार आज सबसे बड़ा मुद्दा है. रामदेव भ्रष्टाचार को जनजागरण के ज़रिए ख़त्म करना चाहते हैं. अन्ना कहते हैं कि भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए एक सशक्त लोकपाल की ज़रूरत है. बिना लोकपाल के भ्रष्टाचार से लड़ा नहीं जा सकता है. सुब्रह्मण्यम स्वामी एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने यह साबित किया है कि मौजूदा क़ानून से भी भ्रष्टाचार से लड़ा जा सकता है. भ्रष्टाचार के ख़िला़फ देश में जो वातावरण बना है, उसमें 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का बड़ा योगदान है. वह इसलिए, क्योंकि जिस स्तर का यह घोटाला है, वह दिमाग़ हिला देने वाला है. 1.76 लाख करोड़ रुपये का घोटाला. स़िर्फ पैसे की ही बात नहीं है, इस घोटाले को जिस तरह अंजाम दिया गया, वह भी अभूतपूर्व है. क्या ख़रीदा गया, क्या बेचा गया, क़ीमत कैसे तय की गई, यह किसी को पता नहीं है, लेकिन उद्योगपतियों के साथ साठगांठ करके मंत्रियों और नेताओं ने 1.76 लाख करोड़ रुपये की चपत सरकारी खजाने को लगा दी. जब इस घोटाले को लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया तो किसी को तनिक भी अंदाज़ा नहीं था कि किसी घोटाले में कोई मंत्री जेल जा सकता है. लोगों को सुब्रह्मण्यम स्वामी की बातों पर यक़ीन नहीं हुआ, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, सुब्रह्मण्यम स्वामी की बात सच साबित होती गई.
उन्होंने 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सबसे पहले दूरसंचार मंत्री ए राजा पर निशाना साधा. उन्हें इस्ती़फा देना पड़ा, वह तिहाड़ जेल पहुंच गए. दूसरा निशाना उन्होंने डीएमके प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोई पर साधा, वह भी तिहाड़ जेल पहुंच गईं. अदालत में स्वामी सबूत देते गए और बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक एवं अधिकारी भी जेल पहुंचने लगे. इसके बाद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सीधे गृहमंत्री चिदंबरम को निशाना बनाया. वह अदालत पहुंचे और सबूत पेश किए. चिदंबरम पर क्या कार्रवाई हो, यह मामला सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में लंबित है. सुब्रह्मण्यम स्वामी दावे के साथ कहते हैं कि गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अपनी करतूतों को छुपाने का पूरा प्रयास किया और सारा दोष ए राजा पर डाल दिया, लेकिन असल में इस घोटाले में सीनियर पार्टनर पी चिदंबरम हैं और ए राजा जूनियर पार्टनर. 2-जी स्पेक्ट्रम का मामला ऐसा है, जिसके ़फैसले का इंतज़ार पूरे देश को है और सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं.
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को देश का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है. इसमें बड़े-बड़े नेता और मंत्री शामिल हैं, उद्योगपति शामिल हैं, अधिकारी शामिल हैं. अच्छी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के रुख़ की वजह से सब पर शिकंजा कसता दिख रहा है. सुब्रह्मण्यम स्वामी अकेले ही यह लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्हीं की वजह से आज 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में कई लोग जेल की हवा खा रहे हैं. 2-जी घोटाले में अभी और भी कई बड़े-बड़े मगरमच्छ हैं, जो क़ानून के शिकंजे से बाहर हैं और जिन्हें पकड़ा जाना है. सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं कि चिदंबरम के बाद उनके निशाने पर रॉबर्ट वडेरा हैं, जो सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति हैं. इनके अलावा दो और बड़ी राजनीतिक हस्तियां हैं. उन्होंने बताया कि फ़िलहाल उनके पास दूसरे लोगों के ख़िला़फ सबूत नहीं हैं, लेकिन 2-जी घोटाले में रॉबर्ट वडेरा की भूमिका का पर्दा़फाश करने के लिए वह पूरी तरह तैयार हैं. उन्होंने 2-जी घोटाले में रॉबर्ट वडेरा की भूमिका की अपनी जांच-पड़ताल पूरी कर ली है. उनके पास पर्याप्त सबूत हैं, जिनसे वह राबर्ट वडेरा के ख़िला़फ अदालत में मामला दायर कर सकेंगे. मतलब यह कि सुब्रह्मण्यम स्वामी को 2-जी घोटाले में गृहमंत्री चिदंबरम के मामले में कोर्ट के आदेश का इंतज़ार है. कोर्ट का फैसला आते ही वह गांधी परिवार पर हमला करने की तैयारी में हैं. यह एक निर्णायक लड़ाई होगी. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में गांधी परिवार के लोगों का हाथ है, वह यह साबित करने में जुट जाएंगे. राजनीतिक दृष्टिकोण से अगर देखें तो सुब्रह्मण्यम स्वामी अपनी क़ानूनी लड़ाई से कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. अगर अदालत चिदंबरम के ख़िला़फ जांच का आदेश देती है तो उन्हें इस्ती़फा देना पड़ सकता है, सरकार गिरने की आशंका बढ़ जाएगी, मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं और अगर चिदंबरम को कोर्ट से राहत मिलती है तो सुब्रह्मण्यम स्वामी रॉबर्ट वडेरा को 2-जी घोटाले में आरोपी बनाकर राजनीतिक भूचाल ला देंगे. दोनों ही स्थितियां कांग्रेस के लिए ख़तरनाक हैं.
सुब्रह्मण्यम स्वामी गांधी परिवार के विरोधी हैं. सोनिया गांधी के ख़िला़फ वह अक्सर बयान देते रहे हैं. चौथी दुनिया से बातचीत के दौरान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक ऐतिहासिक ख़ुलासा किया है. कांग्रेस पार्टी अब तक यही मानती आई है और देश को यह बताती आई है कि सोनिया गांधी ने अपनी अर्ंतात्मा की आवाज़ सुनकर प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया. सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं कि सोनिया गांधी ने कोई त्याग नहीं किया है. यह एक मिथ्या है कि सोनिया गांधी ने पद का त्याग किया है. उनके मुताबिक़, सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं, लेकिन राष्ट्रपति ने मना कर दिया. 17 मई, 2004 को शाम पांच बजे राष्ट्रपति सोनिया गांधी को सरकार बनाने का न्योता देने वाले थे. उसी दिन दोपहर साढ़े बारह बजे सुब्रह्मण्यम स्वामी राष्ट्रपति से मिले. उन्होंने राष्ट्रपति को बताया कि देश के नागरिकता क़ानून के मुताबिक़ कोई भी विदेशी जब भारत का नागरिक बनता है तो उस पर वही क़ानून लागू होता है, जो उसके पहले वाले देश में लागू होता है. इटली में कोई विदेशी प्रधानमंत्री नहीं बन सकता है, इसलिए सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन सकती हैं. इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रपति से कहा कि ख़ु़िफया एजेंसी रॉ से विचार-विमर्श कीजिए, क्योंकि सोनिया गांधी के पास भारत के अलावा इटली का भी पासपोर्ट है. स्वामी दावा करते हैं कि आज भी सोनिया गांधी के पास दो-दो पासपोर्ट हैं. सुब्रह्मण्यम स्वामी से बातचीत करने के बाद राष्ट्रपति ने साढ़े तीन बजे सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्हें पांच बजे आने से मना किया गया था. सुब्रह्मण्यम स्वामी के मुताबिक़, राष्ट्रपति द्वारा सोनिया गांधी को लिखे गए पत्र में उनकी शिकायतका उल्लेख है. यह पत्र आज तक कहीं प्रकाशित नहीं हुआ है. सुब्रह्मण्यम स्वामी कांग्रेस पार्टी को चुनौती देते हैं कि वह उस पत्र को सार्वजनिक करे. उन्होंने इस दौरान हुई एक घटना को भी विस्तार से बताया. उनके मुताबिक़, जब वह राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे तो वहां उन्होंने सांसदों के समर्थन पत्र देखे. 340 सांसदों के समर्थन पत्र थे, जिनमें सबने यह लिखा था कि मैं फलां फलां संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित करता हूं. वहां एक पत्र सोनिया गांधी का भी था, जिसमें यह लिखा था कि मैं सोनिया गांधी रायबरेली से निर्वाचित सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित करती हूं. स्वामी कहते हैं कि इससे यह साबित होता है कि सोनिया गांधी का त्याग एक झूठी कहानी है.
सुब्रह्मण्यम स्वामी का मानना है कि अपनी मां की तरह राहुल भी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. राहुल गांधी जिस व़क्त पैदा हुए, उस व़क्त सोनिया गांधी इटली की नागरिक थीं और वहां के क़ानून के मुताबिक़राहुल गांधी भी इटली के नागरिक हैं. स्वामी कहते हैं कि इटली की नागरिकता त्याग करने की जो प्रक्रिया है, उसमें राहुल गांधी ने कभी हिस्सा नहीं लिया. उन्होंने एक घटना के बारे में बताया. घटना बोस्टन शहर की है. राहुल वहां साठ हज़ार डॉलर के साथ पकड़े गए थे, उस व़क्त भी राहुल गांधी के पास इटालियन पासपोर्ट था. मतलब यह कि राहुल गांधी के पास दो-दो पासपोर्ट हैं. सुब्रह्मण्यम स्वामी का यह आरोप एक गंभीर आरोप है. इस आरोप की सच्चाई जनता के सामने आना ज़रूरी है.
सुब्रह्मण्यम स्वामी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बड़ी बहादुरी से लड़ रहे हैं, वह बे़खौ़फ भी हैं. बातचीत के दौरान हमने उनसे जब यह पूछा कि वह गांधी परिवार और सोनिया गांधी से इतनी ऩफरत क्यों करते हैं तो उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी ने अपना नाम ग़लत बताया. जन्म प्रमाणपत्र में उनका दूसरा नाम है. उनकी जन्मतिथि को लेकर भी विवाद है. वह 1944 में जन्मी हैं या 1946 में, इस बात को लेकर भी संदेह है. साथ ही सोनिया गांधी ने अपनी शैक्षिक योग्यता के बारे में देश को गुमराह किया है. सुब्रह्मण्यम स्वामी स़िर्फ आरोप ही नहीं लगा रहे हैं बल्कि वह इन मामलों को लेकर कोर्ट भी गए. उन्होंने बताया कि प्राचीन मूर्तियों की तस्करी और रूसी खुफ़िया एजेंसी केजीबी से पैसे लेने के मामलों को लेकर वह कोर्ट गए. कोर्ट ने सीबीआई को जांच के आदेश दिए. सीबीआई के अधिकारी विदेश भी गए और जांच की. वापस आकर उन्होंने बताया कि इन मामलों में सबूत तो हैं, लेकिन दूसरे देशों की सरकारें तब तक कोई दस्तावेज़ नहीं देंगी, जब तक भारत सरकार से लेटर रैगोटरी नहीं मिलता है. यह सरकारी चिट्ठी जारी होने के लिए पहले एक एफआईआर दर्ज करानी पड़ती है, फिर कोर्ट से अनुमति लेनी पड़ती है. जिस व़क्त स्वामी ने इस मामले को उठाया था, उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, जिसने सोनिया गांधी के ख़िला़फ एफआईआर दर्ज कराने से मना कर दिया. सोनिया गांधी ने पहले अपने चुनाव आयोग में जमा किए हल़फनामे में यह लिखा था कि उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में बीए की पढ़ाई की है. सुब्रह्मण्यम स्वामी इस मामले को लेकर कोर्ट गए. वह दावा करते हैं कि उनके पास कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक चिट्ठी है, जो कहती है कि इस नाम की कोई छात्रा वहां पढ़ी ही नहीं. उन्होंने बताया कि इस मामले से जुड़े सारे तथ्यों को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया तो तत्कालीन न्यायाधीश बालाकृष्णन ने आरोपों को एक तरह से सच माना, लेकिन यह कहा कि स्वामी जी, आप थोड़ा बड़े दिल वाले बनो, छोड़ दो, यह पुराना मामला है, अब वह ऐसा काम नहीं करेंगी. सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं कि इस मामले में उनकी जीत हुई है, क्योंकि सोनिया गांधी ने 2009 के चुनाव में जो हलफनामा दिया, उसमें से कैम्ब्रिज का नाम हटा दिया. अगर वह कैम्ब्रिज में पढ़ी हैं तो उन्हें यह बात अपने हल़फनामे से हटानी नहीं चाहिए थी.
सुब्रह्मण्यम स्वामी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं, वह भी अकेले. वह एक राजनेता भी हैं, इसलिए क़ानूनी लड़ाई से कैसे राजनीतिक चालें चली जा सकती हैं, यह उन्होंने बख़ूबी साबित किया है. हाल में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक चिट्ठी पेश की, जिससे मनमोहन सरकार में एक भूचाल आ गया. चिट्ठी वित्त मंत्रालय द्वारा लिखी गई थी. हंगामा मच गया कि प्रणव मुखर्जी इस चिट्ठी के सूत्रधार हैं. इस चिट्ठी की वजह से देश के दो सबसे महत्वपूर्ण मंत्री यानी गृहमंत्री और वित्तमंत्री आपस में भिड़ गए. यह विवाद कांग्रेस पार्टी के लिए ख़तरनाक हो गया, क्योंकि इस चिट्ठी में लिखा था कि अगर गृहमंत्री पी चिदंबरम चाहते तो
2-जी घोटाला नहीं होता. चिदंबरम के ख़िला़फ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने यह चिट्ठी बतौर सबूत पेश की. इसे प्रधानमंत्री कार्यालय के कहने पर कई मंत्रालयों के अधिकारियों ने सलाह-मशविरा करके मिलजुल कर तैयार किया था. यह चिट्ठी प्रधानमंत्री कार्यालय के पास थी. जुलाई के महीने में किसी आरटीआई के जवाब में इस चिट्ठी को किसी ने हासिल किया था. ख़बर यह फैलाई गई कि सुब्रह्मण्यम स्वामी को उसी की कॉपी मिली है, लेकिन हक़ीक़त यह है कि जिस चिट्ठी को स्वामी ने कोर्ट में पेश किया, वह आरटीआई से मिली चिट्ठी नहीं है. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने यह नहीं बताया कि उन्हें यह चिट्ठी कहां से मिली, वह मुस्करा कर इस सवाल को टाल गए. समझने वाली बात यह है कि जब चिट्ठी प्रधानमंत्री कार्यालय में थी तो यह सुब्रह्मण्यम स्वामी को खेल मंत्रालय से नहीं मिली होगी. प्रणव मुखर्जी और चिदंबरम की लड़ाई से यूपीए सरकार की कलई खुल गई.
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जो काम अकेले किया है, वह पूरा विपक्ष नहीं कर सका. भारतीय जनता पार्टी मनमोहन सिंह सरकार के ख़िला़फ एक सशक्त विपक्ष की भूमिका नहीं निभा सकी. भ्रष्टाचार के जितने भी मामले सामने आए, उन्हें विपक्ष ने नहीं उठाया, बल्कि उन घोटालों का पर्दाफाश मीडिया ने किया. देश में 2-जी, कॉमनवेल्थ, सत्यम और आदर्श सोसायटी जैसे कई घोटाले सामने आने के बाद ही विपक्ष ने उन्हें मुद्दा बनाया. हैरानी इस बात की है कि इन घोटालों को लेकर भारतीय जनता पार्टी स़िर्फ संसद के अंदर हंगामा करती रही, विपक्ष न तो किसी मंत्री का इस्ती़फा ले सका और न कोई देशव्यापी आंदोलन छेड़ सका. देश में आज भ्रष्टाचार के ख़िला़फ जो माहौल बना है, उसके पीछे बाबा रामदेव, अन्ना हजारे और सुब्रह्मण्यम स्वामी का हाथ है. सुब्रह्मण्यम स्वामी अगर अदालत का दरवाज़ा न खटखटाते तो आज 2-जी घोटाले के सारे आरोपी पहले की तरह चैन से अपना-अपना काम कर रहे होते. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जो काम अकेले किया, वह पूरी भारतीय जनता पार्टी नहीं कर सकी. स्वामी जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी की स्थिति कमज़ोर है. वह अपनी पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी में करने के लिए तैयार बैठे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत और दूसरे वरिष्ठ पदाधिकारी भी यही चाहते हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता विरोध कर रहे हैं. उनका विरोध वे नेता कर रहे हैं, जो बड़े वकील हैं और राज्यसभा में हैं, जो ख़ुद को बुद्धिजीवी मानते हैं, जो जनसभाएं करते हैं. सुब्रह्मण्यम स्वामी के मुताबिक़, ऐसे नेताओं को लगता है कि अगर वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए तो उनके लिए समस्या खड़ी हो जाएगी. वैसे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को यह डर हमेशा लगा रहेगा कि अगर सुब्रह्मण्यम स्वामी पार्टी में शामिल हो गए तो पार्टी नेताओं के भी भ्रष्टाचार उजागर करने में वह नहीं झिझकेंगे.
सुब्रह्मण्यम स्वामी एक परिपक्व राजनेता हैं, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, विद्वान व्यक्ति हैं, उन्हें क़ानून और राजनीति की समझ है. उनके आरोपों को ख़ारिज करना आसान नहीं है. उन्होंने जब भी आरोप लगाया, उसका सबूत दिया. अगर सुब्रह्मण्यम स्वामी के आरोप ग़लत हैं तो उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए. 2-जी घोटाले में चिदंबरम के बाद उनके निशाने पर गांधी परिवार है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर उन्होंने गंभीर आरोप लगाए हैं. कुछ आरोप तो ऐसे हैं, जिनकी सच्चाई जानना देश की जनता का हक़ है. कुछ ऐसे आरोप हैं, जिनका जवाब कांग्रेस पार्टी को अवश्य देना चाहिए. हमें कांग्रेस पार्टी के जवाब का इंतज़ार है.