कांग्रेस को दोस्ती निभाना नहीं आता

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congress ki dostiवे सांसद कहां हैं, जो अन्ना हजारे को यह समझा रहे थे कि संसद की एक गरिमा होती है, उसे बाहर से डिक्टेट नहीं किया जा सकता है. वे आज चुप क्यों हैं? संसद की गरिमा बचाने के लिए, देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए. कैश फॉर वोट भारत के इतिहास का सबसे शर्मनाक स्कैम है. देश के सांसद बिकते हैं, ऐसा सोचकर ही घिन होती है. देश के प्रजातंत्र के साथ खिलवाड़ करने का हक किसी को भी नहीं दिया जा सकता है. चाहे वह सरकारी पक्ष हो, विपक्ष हो या फिर मीडिया. अमर सिंह जेल चले गए, लेकिन इस मामले के जो लाभार्थी हैं, वे बेदाग़ हैं! उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस प्रकरण में कांग्रेस पार्टी और यूपीए सरकार को फायदा मिलना था. सांसदों की खरीद-बिक्री सरकार बचाने के लिए की गई. अमर सिंह पर आरोप है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के कुछ सांसदों को सरकार के समर्थन में वोट देने के लिए पैसे दिए. सवाल यह उठता है कि अमर सिंह ने ऐसा क्यों किया और किसके कहने पर किया? यह बात भी सा़फ है कि अमर सिंह किसी के कहने पर ही ऐसा काम कर रहे होंगे.

अमर सिंह को किसने यह काम सौंपा, जो पैसे दिए गए वे किसके हैं, जब तक असली टेप सामने नहीं आएगा और जब तक स्टिंग ऑपरेशन की सारी जानकारी सामने नहीं आएगी, तब तक इस मामले का सच छिपा रहेगा. कांग्रेस पार्टी के बारे में एक बात तो कहनी ही पड़ेगी कि उसे न तो दोस्ती निभाना आता है और न दुश्मनी.

अमर सिंह दु:खी हैं. दोस्तों ने भी साथ छोड़ दिया है. जेल में उनके भाई जब मिलने गए तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने धोखा कर दिया. अमर सिंह ने कहा, मैं यहां शांति से हूं, अपनी ग़लतियों की सज़ा भुगत रहा रहा हूं. इतना तो कहा ही जा सकता है कि अगर अमर सिंह ने अपनी ज़ुबान खोल दी तो देश के कई बड़े नेता अपना चेहरा दिखाने लायक नहीं रहेंगे. अमर सिंह पिछले आठ सालों से, खासकर 1996 से हिंदुस्तान की राजनीति की कई धुरियों में से एक रहे हैं, जिनका इस्तेमाल कभी समाजवादियों ने तो कभी वामपंथियों ने और कभी कांग्रेसियों ने किया. भाजपा के अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों ने भी सहायता ली. इसलिए अगर अमर सिंह बोलेंगे तो यह किसी आरोपी का स्वीकारोक्त बयान नहीं होगा, लेकिन देश की राजनीति की तह में आठ- दस साल रहे व्यक्ति का खुलासा होगा. कैश फॉर वोट मामले में यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी ने अमर सिंह को इस्तेमाल किया और काम निकल जाने के बाद उन्हें बेसहारा छोड़ दिया अथवा यूं कहें कि काम निकल जाने के बाद जेल भेज दिया. अमर सिंह जेल में हैं, लेकिन इस मामले की कई गुत्थियां अभी भी उलझी हुई हैं.

कैश फॉर वोट की कहानी में कई मोड़ हैं. किसने किसे, कहां और कैसे धोखा दिया, यह समझना भी बड़ा कठिन है. सबसे बड़ी बात यह है कि यूपीए सरकार वोटिंग से पहले बहुमत में नहीं थी. यह सबको पता था कि सरकार गिर सकती है. कांग्रेस पार्टी किसी भी कीमत पर सरकार बचाना चाहती थी. विकीलीक्स के खुलासे के मुताबिक़ भी यह बात सामने आ चुकी है कि किस तरह कांग्रेस के लोग पैसे लेकर सांसदों को खरीदने में जुटे रहे. विकीलीक्स के मुताबिक़, कांग्रेस के एक नेता ने यह समस्या बताई थी कि पैसे लेने के बाद भी सांसद वोट देंगे या नहीं, पता नहीं. अमर सिंह उस वक्त समाजवादी पार्टी में थे. समाजवादी पार्टी न्यूक्लियर डील के समर्थन में थी. इस दौरान एक और घटना हुई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जापान जा रहे थे. जाने से पहले उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार को लोकसभा में बहुमत मिल जाएगा. अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार इस मामले में अल्पमत में आ गई थी, लोकसभा में संख्या पूरी नहीं हो रही थी तो फिर मनमोहन सिंह ने ऐसा दावा क्यों किया. जिस तरह विकीलीक्स ने खुलासा किया, उससे यही लगता है कि कांग्रेस पार्टी को वैसे लोगों की तलाश थी, जो उसे इस संकट से बाहर निकाल सकते हों. ऐसे में अमर सिंह की एंट्री होती है. विपक्ष के खेमे में भी हलचल थी. भारतीय जनता पार्टी भी मौक़े का फायदा उठाना चाहती थी. लालकृष्ण आडवाणी के मन में प्रधानमंत्री बनने की लालसा फिर से जाग गई, लेकिन एक समस्या खड़ी हो गई. हुआ यह कि मायावती भी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी लेकर दिल्ली आ गईं. उनके घर एक पार्टी भी हुई. छोटे-मोटे दलों के कई नेता वहां पहुंचे तो एक ग़ैर भाजपा और गैर कांग्रेस गठबंधन का माहौल बनने लगा.

इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी के सांसदों को पैसे का प्रस्ताव मिलता है. भारतीय जनता पार्टी इस मामले का स्टिंग ऑपरेशन कराने का फैसला करती है. सीएनएन-आईबीएन चैनल के चीफ राजदीप सरदेसाई से संपर्क साधा जाता है. भारतीय जनता पार्टी और सीएनएन के बीच क्या डील हुई, इसका तो पता नहीं, लेकिन यह समझा जा सकता है कि दोनों के बीच ज़रूर कोई क़रार हुआ होगा. राजदीप सरदेसाई स्टिंग ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाते हैं. इस स्टिंग ऑपरेशन की कमान यहां से सुधींद्र कुलकर्णी के पास आ जाती है. फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. स्टिंग ऑपरेशन भी शुरू हो जाता है. इस ऑपरेशन के दौरान एक घटना घटी, जिस पर ज़्यादा ज़िक्र नहीं हो रहा है. यह घटना ली मेरेडियन होटल की है. वहां एक कांग्रेसी नेता को पैसे लेकर आना था. कैमरे वगैरह लगा दिए गए थे. यह भी तय हो गया था कि उस कांग्रेसी नेता को रंगे हाथों पकड़ा जाएगा, लेकिन कांग्रेस का वह नेता कभी नहीं आया. सवाल यह है कि कांग्रेस के उस नेता को किसी ने बता दिया कि होटल में खतरा है. किसने बताया? यह बात स़िर्फ भारतीय जनता पार्टी के लोग जानते थे और सीएनएन-आईबीएन की टीम जानती थी. भारतीय जनता पार्टी के लोग कांग्रेस को भला क्यों बताएंगे. इसलिए राजदीप सरदेसाई से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि किसने डबल क्रास किया, क्या राजदीप सरदेसाई ने खुद यह काम किया या फिर उनकी टीम के किसी व्यक्ति ने किया? इस सवाल का जवाब सीबीआई के पास होना ज़रूरी है.

इस घटना के बाद भी बातचीत जारी रही. पैसे देने अब अमर सिंह के  लोग आएंगे, ऐसा तय हुआ. अब स्टिंग ऑपरेशन के बारे में भाजपा को पता था, राजदीप सरदेसाई को पता था और कांग्रेस को भी पता चल गया. अमर सिंह कांग्रेस की मदद करना चाह रहे थे. कांग्रेस के नेताओं ने इसी मोड़ पर आकर अमर सिंह के साथ दग़ाबाजी कर दी. कांग्रेस की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह अमर सिंह को खबरदार कर दे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. अमर सिंह यहीं फंस गए. इस दौरान एक बात और हुई. भाजपा और राजदीप सरदेसाई के बीच करार हुआ था कि संसद में बहस से पहले स्टिंग ऑपरेशन को सीएनएन-आईबीएन पर दिखाया जाएगा. भारतीय जनता पार्टी को पता नहीं था कि पासा पलट चुका है और कांग्रेस को स्टिंग ऑपरेशन के बारे में बताया जा चुका है. जब स्टिंग ऑपरेशन दिखाने से मना कर दिया गया, तब आडवाणी की सहमति से नोटों के बंडलों को लोकसभा में ले जाने का फैसला लिया गया. नोटों को लोकसभा में उछाला गया. भारत के प्रजातंत्र पर काला धब्बा लगा, जांच शुरू हो गई और अमर सिंह जेल चले गए.

अब सवाल यह है कि इस पूरे प्रकरण का फायदा जिन्हें होना था, उन्हें क्यों छोड़ दिया गया? अमर सिंह अपने मन से सरकार बचाने के लिए यह काम नहीं कर सकते, तो उनसे सत्ताधारी पार्टी के किस नेता ने संपर्क किया, वह पैसा कहां से आया और किसका था? अमर सिंह भारतीय जनता पार्टी के लोगों को खरीदने की कोशिश कर रहे थे तो वह जेल पहुंच गए, लेकिन जिन्होंने अमर सिंह से यह काम कराया, वे क्यों छूट गए? बताया तो यह जाता है कि राजदीप सरदेसाई ने जो टेप जमा किया, वह संपादित है. स्टिंग ऑपरेशन का असली टेप कहां है और राजदीप सरदेसाई ने उसे क्यों नहीं दिखाया? अगर अमर सिंह पर खरीदने का आरोप है तो राजदीप पर इसे छुपाने का आरोप क्यों नहीं लगा? इस स्टिंग ऑपरेशन के मास्टर माइंड सुधींद्र कुलकर्णी को क्यों छोड़ दिया गया? अगर वह अमेरिका में हैं तो उनके खिला़फ सीबीआई ने रेड कॉर्नर नोटिस क्यों नहीं जारी किया? जब तक यह पता नहीं चलेगा कि अमर सिंह को किसने यह काम सौंपा, जो पैसे दिए गए वे किसके हैं, जब तक असली टेप सामने नहीं आएगा और जब तक स्टिंग ऑपरेशन की सारी जानकारी सामने नहीं आएगी, तब तक इस मामले का सच छिपा रहेगा. कांग्रेस पार्टी के बारे में एक बात तो कहनी ही पड़ेगी कि उसे न तो दोस्ती निभाना आता है और न दुश्मनी. अमर सिंह ने कांग्रेस की सरकार बचाने की कोशिश की तो वह जेल भेज दिए गए और बाकी के किरदार आज़ाद घूम रहे हैं.

प्रजातंत्र पर बदनुमा दाग़ लगाने वाले इस खेल के कई खिलाड़ी हैं. अरुण जेटली, सुधींद्र कुलकर्णी, लालकृष्ण आडवाणी, राजदीप सरदेसाई और कांग्रेस के वे तीन रहस्यमयी नेता, जिन्होंने अमर सिंह को आगे रखकर सांसदों को खरीदने का काम किया. इस खेल के दूसरे खिलाड़ी हैं सीबीआई और दिल्ली पुलिस. सांसदों की खरीद-बिक्री संसद के बाहर हुई और पैसा लोकसभा में दिखाया गया. इसके लिए नेताओं के साथ-साथ सरकारी संस्थाएं भी ज़िम्मेदार हैं. हर किसी का रोल संदेह के घेरे में है, इसलिए यह मामला सुप्रीम कोर्ट के लिए फिट केस है. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के किसी सिटिंग जज के सामने होनी चाहिए. इन सभी किरदारों को उसमें पेश किया जाना चाहिए, ताकि सच सामने आ सके और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करने वालों को सख्त से सख्त सज़ा मिल सके.

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