चिंतन बैठक ने भाजपा की चिंता बढ़ाई

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chintan-baithak-ne-bhajapa-भाजपा पाताल लोक की ओर अग्रसर है. इसे कैसे बचाया जाए. चुनाव में हार के क्या कारण थे, पार्टी को फिर से कैसे मज़बूत किया जाए, विचारधारा को लेकर बनी भ्रामक स्थिति और इस तरह के तमाम सवालात  को लेकर चिंतन बैठक बुलाई गई. लेकिन भाजपा ने सच का सामना करने से इनकार कर दिया. चिंतन बैठक ख़त्म हो गई, लेकिन देश भर के  कार्यकर्ताओं और चिंतन बैठक में हिस्सा न लेने वाले भाजपा नेताओं को अब यह कभी पता नहीं चल पाएगा कि चुनाव में हार के  कारण क्या थे? चिंतन बैठक की शुरुआत जसवंत सिंह के निष्कासन से हुई और समापन शर्मनाक रहा. तीन दिन के गहन चिंतन के बाद राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज ने मीडिया को जो कुछ बताया, वह हास्यास्पद है. उन्होंने जो कहा, उससे तो यही लगता है कि चिंतन बैठक में न तो भविष्य की रणनीति बनी, न ग़लतियों पर विचार किया गया. अब पार्टी के अध्यक्ष होने के  नाते राजनाथ सिंह ही बता सकते हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह क्यों घोषणा की थी कि हार की वजहों का पोस्ट मार्टम चिंतन बैठक में किया जाएगा. भारतीय जनता पार्टी के  नेता न जाने किस युग में  जी रहे हैं. शायद उन्हें लगता है कि जनता स़िर्फ प्रेस कांफ्रेंस की बातों को ही सच मानती हैं, बाक़ी सब झूठ. हक़ीक़त यह है कि भाजपा के जो लोग चिंतन बैठक में मौजूद थे, शायद उन्हें यह पता न हो, मीटिंग की हर मिनट की ख़बर बाहर आ रही थी.

चिंतन बैठक के  समापन के बाद सबसे पहला बयान था कि चिंतन बैठक में  तय हुआ है कि आडवाणी पांच साल तक नेता प्रतिपक्ष बने रहेंगे. इस बयान से सवाल यह उठता है कि यह बात तो चिंतन बैठक के पहले ही आडवाणी ने ख़ुद ही यह ऐलान कर दिया था, तो चिंतन बैठक में इसकी चर्चा का मतलब क्या है. क्या सचमुच आडवाणी के नेतृत्व को लेकर चिंतन बैठक में बातचीत हुई?  क्या अभी भी पार्टी में आडवाणी के नाम को लेकर विरोध है. पार्टी ने इस बैठक में तय किए गए

मुख्य बिंदुओं को मीडिया के  सामने रखा. ये मुख्य बिंदु वही घिसी-पिटी बातें हैं जो राजनाथ सिंह और दूसरे प्रवक्ता चुनाव में हारने के  बाद से दुहराते आए हैं. पहली बात यह कि पार्टी अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद की विचारधारा पर अटल है. दूसरी यह कि पार्टी नए इलाक़ों में अपने सामाजिक आधार को बढ़ाएगी. महिलाओं, युवाओं और किसानों को पार्टी में आगे लाया जाएगा. एनडीए को मज़बूत किया जाएगा. राजनाथ सिंह ने यह भी बताया कि भाजपा केंद्र में एक ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी और भाजपा शासित राज्यों की सरकार एक रोल मॉडल सरकार की तरह काम करेगी. साथ ही चिंतन बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि भाजपा के  नेता और कार्यकर्ता एक साधारण जीवन शैली व्यतित करेगें. भाजपा के  प्रवक्ताओं के बयान से पता यही लगा कि चुनाव में हार की वजहों पर कोई बहस नहीं हुई. अगर चिंतन बैठक में इन बातों पर चर्चा हुई तो यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा ने विचारधारा को छोड़ दिया था? क्या भाजपा अपना सामाजिक आधार बचाने और नए लोगों को पार्टी में आगे लाने में विफल रही? क्या भाजपा अब तक गैर ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभा रही थी? अगर नहीं तो इन पर चर्चा होने की वज़ह क्या है? अगर इन विषयों पर चर्चा नहीं हुई तो क्या भाजपा ने चिंतकों ने प्रेस कान्फ्रेस  के  ड्राफ्ट को तैयार करने में तीन दिन लगा दिए. हक़ीक़त यह है कि भाजपा के  चिंतन बैठक में चिंतन कम और सिर-फुटौव्वल ज़्यादा हुई. गुटबंदी का आलम यह था कि कोई गुट झुकने को तैयार नहीं था. इसकी शुरुआत ही ऐसी हुई कि भाजपा का असली चेहरा सामने आ गया. किताब का बहाना बना कर जसवंत सिंह को जिस तरह से निष्कासित किया गया उसी से भाजपा की पोल खुल गई कि विरोध में उठे हर स्वर को बंद कर दिया जाएगा.

चुनाव में हार के लिए जिसने भी आडवाणी गुट की भूमिका पर सवाल उठाए उसे योजनाबद्ध तरीक़े से चिंतन बैठक से बाहर कर दिया गया, लेकिन हार के  कारणों का पता लगाने के लिए बनाई गई बाल आप्टे कमिटी ने चिंतन बैठक में जो रिपोर्ट में पेश की, उसमें उन्हीं कारणों का ज़िक्र किया जिन्हें जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उठाया था. पार्टी के पास सच का सामना करने की ताकत नहीं रही इसलिए भाजपा ने रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया. सूत्रों के मुताबिक चिंतन बैठक में बाल आप्टे के रिपोर्ट पेश करते ही हंगामा हो गया. अरुण जेटली, अनंत कुमार, वेंकैया नायडू जैसे आडवाणी गुट के नेताओं ने रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया. चिंतन करने आए नेता बेकाबू हो गए और बहस छिड़ गई. आडवाणी जी बेबस बैठे रहे. ठीक उसी तरह, जब जिन्ना और पटेल के बहाने जसवंत सिंह को पार्टी से निष्कासित करने का फैसला लिया गया. यह आरोप लगा कि रिपोर्ट मीडिया में कैसे लीक हो गई. चिंतन बैठक के दौरान ही भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट टीवी चैनलों पर क्यों और कैसे दिखाई गई? भाजपा के प्रवक्ताओं ने मीडिया को बताया कि आंतरिक रिपोर्ट नाम की कोई चीज़ अस्तित्व में ही नहीं है, लेकिन इन प्रवक्ताओं ने नहीं बताया कि फिर बाल आप्टे इतने दिनों से क्या कर रहे थे? राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद राजनाथ ने यह क्यों कहा था कि राज्यों से रिपोर्ट आने के बाद पार्टी यह तय करेगी कि हार की वजह क्या है? असलियत यह है कि राज्य इकाइयों ने अपनी रिपोर्ट भी पेश कर दी. बाल आप्टे, चंदन मित्रा और मुरलीधर राव ने पूरी रिपोर्ट भी तैयार की. इसमें यह कहा गया कि हार के लिए ग़लत प्रबंधन, ग़लत उम्मीदवार, ग़लत नारे और ग़लत नेतृत्व ज़िम्मेदार है. मतलब यह कि पार्टी इकाइयों ने हार के लिए आडवाणी एंड कंपनी को ज़िम्मेदार माना. यहां पर यह भी समझना ज़रूरी है कि इस कमिटी के दो लोग बाल आप्टे और मुरलीधर राव का संबंध आरएसएस से ज़्यादा और भाजपा से कम है. शायद, भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट संघ के विचारों को सामने रखती है. यही वजह है कि चिंतन बैठक के तीसरे दिन पार्टी ने प्रेस कांफ्रेस में पहला संदेश यह दिया कि आडवाणी नेता प्रतिपक्ष बने रहेंगे. मतलब यह कि आडवाणी गुट ने यह साफ कर दिया कि उन्हें अब संघ की कोई ज़रूरत नहीं है. इसका नतीजा यह है कि अरुण शौरी ने आडवाणी एंड कंपनी के ख़िला़फ हमला बोला, तो यह कहना नहीं भूले कि संघ ही इस कटी पतंग (यानी भाजपा) को थाम सकता है.

मुख्य बिंदुओं को मीडिया के  सामने रखा. ये मुख्य बिंदु वही घिसी-पिटी बातें हैं जो राजनाथ सिंह और दूसरे प्रवक्ता चुनाव में हारने के  बाद से दुहराते आए हैं. पहली बात यह कि पार्टी अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और एकात्म मानववाद की विचारधारा पर अटल है. दूसरी यह कि पार्टी नए इलाक़ों में अपने सामाजिक आधार को बढ़ाएगी. महिलाओं, युवाओं और किसानों को पार्टी में आगे लाया जाएगा. एनडीए को मज़बूत किया जाएगा. राजनाथ सिंह ने यह भी बताया कि भाजपा केंद्र में एक ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी और भाजपा शासित राज्यों की सरकार एक रोल मॉडल सरकार की तरह काम करेगी. साथ ही चिंतन बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि भाजपा के  नेता और कार्यकर्ता एक साधारण जीवन शैली व्यतित करेगें. भाजपा के  प्रवक्ताओं के बयान से पता यही लगा कि चुनाव में हार की वजहों पर कोई बहस नहीं हुई. अगर चिंतन बैठक में इन बातों पर चर्चा हुई तो यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा ने विचारधारा को छोड़ दिया था? क्या भाजपा अपना सामाजिक आधार बचाने और नए लोगों को पार्टी में आगे लाने में विफल रही? क्या भाजपा अब तक गैर ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभा रही थी? अगर नहीं तो इन पर चर्चा होने की वज़ह क्या है? अगर इन विषयों पर चर्चा नहीं हुई तो क्या भाजपा ने चिंतकों ने प्रेस कान्फ्रेस  के  ड्राफ्ट को तैयार करने में तीन दिन लगा दिए. हक़ीक़त यह है कि भाजपा के  चिंतन बैठक में चिंतन कम और सिर-फुटौव्वल ज़्यादा हुई. गुटबंदी का आलम यह था कि कोई गुट झुकने को तैयार नहीं था. इसकी शुरुआत ही ऐसी हुई कि भाजपा का असली चेहरा सामने आ गया. किताब का बहाना बना कर जसवंत सिंह को जिस तरह से निष्कासित किया गया उसी से भाजपा की पोल खुल गई कि विरोध में उठे हर स्वर को बंद कर दिया जाएगा.

चुनाव में हार के लिए जिसने भी आडवाणी गुट की भूमिका पर सवाल उठाए उसे योजनाबद्ध तरीक़े से चिंतन बैठक से बाहर कर दिया गया, लेकिन हार के  कारणों का पता लगाने के लिए बनाई गई बाल आप्टे कमिटी ने चिंतन बैठक में जो रिपोर्ट में पेश की, उसमें उन्हीं कारणों का ज़िक्र किया जिन्हेंे जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उठाया था. पार्टी के पास सच का सामना करने की ताकत नहीं रही इसलिए भाजपा ने रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया. सूत्रों के मुताबिक चिंतन बैठक में बाल आप्टे के रिपोर्ट पेश करते ही हंगामा हो गया. अरुण जेटली, अनंत कुमार, वेंकैया नायडू जैसे आडवाणी गुट के नेताओं ने रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया. चिंतन करने आए नेता बेकाबू हो गए और बहस छिड़ गई. आडवाणी जी बेबस बैठे रहे. ठीक उसी तरह, जब जिन्ना और पटेल के बहाने जसवंत सिंह को पार्टी से निष्कासित करने का फैसला लिया गया. यह आरोप लगा कि रिपोर्ट मीडिया में कैसे लीक हो गई. चिंतन बैठक के दौरान ही भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट टीवी चैनलों पर क्यों और कैसे दिखाई गई? भाजपा के प्रवक्ताओं ने मीडिया को बताया कि आंतरिक रिपोर्ट नाम की कोई चीज़ अस्तित्व में ही नहीं है, लेकिन इन प्रवक्ताओं ने नहीं बताया कि फिर बाल आप्टे इतने दिनों से क्या कर रहे थे? राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद राजनाथ ने यह क्यों कहा था कि राज्यों से रिपोर्ट आने क  बाद पार्टी यह तय करेगी कि हार की वजह क्या है? असलियत यह है कि राज्य इकाइयों ने अपनी रिपोर्ट भी पेश कर दी. बाल आप्टे, चंदन मित्रा और मुरलीधर राव ने पूरी रिपोर्ट भी तैयार की. इसमें यह कहा गया कि हार के लिए ग़लत प्रबंधन, ग़लत उम्मीदवार, ग़लत नारे और ग़लत नेतृत्व ज़िम्मेदार है. मतलब यह कि पार्टी इकाइयों ने हार के लिए आडवाणी एंड कंपनी को ज़िम्मेदार माना. यहां पर यह भी समझना ज़रूरी है कि इस कमिटी के दो लोग बाल आप्टे और मुरलीधर राव का संबंध आरएसएस से ज़्यादा और भाजपा से कम है. शायद, भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट संघ के विचारों को सामने रखती है. यही वजह है कि चिंतन बैठक के तीसरे दिन पार्टी ने प्रेस कांफ्रेस में पहला संदेश यह दिया कि आडवाणी नेता प्रतिपक्ष बने रहेंगे. मतलब यह कि आडवाणी गुट ने यह साफ कर दिया कि उन्हें अब संघ की कोई ज़रूरत नहीं है. इसका नतीजा यह है कि अरुण शौरी ने आडवाणी एंड कंपनी के ख़िला़फ हमला बोला, तो यह कहना नहीं भूले कि संघ ही इस कटी पतंग (यानी भाजपा) को थाम सकता है.

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