जनरल वी के सिंह की भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग

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General V K Singhटेट्रा ट्रक घोटाले के मामले में सरकार पूरी तरह से एक्सपोज हो गई है. जब चौथी दुनिया के एडिटर इन चीफ संतोष भारतीय को दिए गए इंटरव्यू में थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने घूस की पेशकश करने के बारे में सनसनीखेज खुलासा किया, तब ए के एंटनी ने संसद में जवाब दिया. रक्षा मंत्री ने पूरी घटना को सही बताया और कहा कि, उन्होंने जनरल वी के सिंह से इस मामले पर कार्रवाई करने को कहा था. ए के एंटनी ने यह दलील दी कि जनरल वी के सिंह ने कोई लिखित शिकायत नहीं की थी, इसलिए वह खुद कोई कार्रवाई नहीं कर सकते थे. अब सवाल यह है कि ए के एंटनी ने संसद में पूरी जानकारी क्यों नहीं दी. उन्होंने यह क्यों नहीं बताया कि जनरल वी के सिंह से पहले भी टेट्रा ट्रक के मामले में शिकायत आ चुकी है.

डॉ. एच हनुमनथप्पा कांग्रेस पार्टी के नेता हैं, कांग्रेस पार्टी के सांसद रह चुके हैं. टेट्रा ट्रक के विवाद पर उन्होंने एक ऐसा खुलासा किया, जिससे सोनिया गांधी, गुलाम नबी आजाद, रक्षा मंत्री ए के एंटनी के साथ कई कांग्रेस नेताओं का नाम इस विवाद से जुड़ गया है. डॉ. एच हनुमनथप्पा के मुताबिक, उन्होंने सोनिया गांधी एवं ए के एंटनी से मुलाकात की और टेट्रा ट्रक की ख़रीददारी में गड़बड़ियों के बारे में जानकारी दी तथा दस्तावेज़ पेश किए. यह बात वर्ष 2009 की है. डॉ. एच हनुमनथप्पा के मुताबिक़, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और रक्षा मंत्री ए के एंटनी को टेट्रा ट्रक की सौदेबाजी में घपले की जानकारी थी. उन्होंने एक चिट्ठी गुलाम नबी आज़ाद को भी लिखी थी. उन्होंने एक चिट्ठी वीरप्पा मोइली को भी लिखी थी. डॉ. एच हनुमनथप्पा के मुताबिक़, आज तक उन्हें यह पता नहीं चला कि सरकार ने उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई की, जबकि उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को चिट्ठी के साथ बीईएमएल के ट्रक डिवीजन के असिस्टेंट जनरल मैनेजर एस एन अशोक की एक रिपोर्ट भी भेजी थी. रक्षा मंत्रालय की तरफ से अब यह बताया जा रहा है कि शिकायत मिलने पर ए के एंटनी ने टेट्रा ट्रक के मामले में जांच के आदेश दिए, लेकिन सवाल यह उठता है कि ए के एंटनी जब टेट्रा ट्रक के बारे में संसद में बोल रहे थे, तब उन्होंने इस मामले की जानकारी संसद को क्यों नहीं दी कि एक जांच चल रही है. यह क्यों नहीं बताया कि टेट्रा ट्रक के बारे में पहले से शिकायत आ रही है. ए के एंटनी एक ईमानदार नेता माने जाते हैं, फिर भी उन्होंने जनरल वी के सिंह के प्रकरण पर इस तरह संसद में जवाब दिया, जैसे उन्हें इस बात की भनक तक नहीं थी कि टेट्रा ट्रक के सौदे में घपलेबाजी का आरोप है. लेकिन जब जनरल सिंह ने इस मामले को जनता के सामने रख दिया तो पूरी राजनीतिक जमात उनके पीछे लग गई, सांसद उन्हें बर्खास्त करने की मांग करने लगे.

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नहीं किया है कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि क्या है. यह मामला आज भी खुला है. विवाद जारी है. यही वजह है कि रक्षा मंत्रालय कोई फैसला नहीं ले पा रहा है. रक्षा मंत्रालय ने उनके रिटायरमेंट की चिट्ठी नहीं भेजी है. रक्षा मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि उसकी परेशानी यह है कि रिटायरमेंट की चिट्ठी में उनकी जन्मतिथि क्या लिखी जाए. सूत्र बताते हैं कि जो चिट्ठी तैयार की गई है, उसमें जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि वर्ष 1951 लिखी गई है. अगर यह चिट्ठी भेजी जाती है तो, इसका मतलब यह है कि सरकार ने जनरल वी के सिंह को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे दिया. रक्षा मंत्रालय की मुश्किल यह है कि एडजूटैंट ब्रांच के दस्तावेज़ों में जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि आज भी 10 मई, 1951 है.

लगता है, देश चलाने वालों ने यह फैसला कर लिया है कि जो भी भ्रष्टाचार के खिला़फ आवाज़ उठाएगा, उसे अपराधी घोषित कर दिया जाएगा और जो भ्रष्टाचार करेगा, उसे ईनाम दिया जाएगा. थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने चौथी दुनिया के साथ एक इंटरव्यू में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था. चौथी दुनिया के एडिटर इन चीफ से बातचीत के दौरान उन्होंने यह बताया था कि किस तरह एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर ने उन्हें घूस देने की पेशकश की थी. इस इंटरव्यू को देश के सारे चैनलों पर दिखाया गया. इसके बाद पूरे देश में हंगामा मच गया. रक्षा मंत्री ने संसद में इस मुद्दे पर जनरल वी के सिंह के बयानों और आरोपों को सही बताया, लेकिन इस विवाद के दौरान कुछ नेताओं का आचरण ऐसा था, जिसे देखकर पूरा देश दंग रह गया. हैरानी तो तब हो गई कि जब कुछ नेता जनरल वी के सिंह पर पर्सनल अटैक करने लगे. ऐसा लगा कि नेताओं के बीच जनरल के खिला़फ बोलने की प्रतियोगिता हो रही है. इन नेताओं को भ्रष्टाचार के खिला़फ और टेट्रा ट्रक के सौदे में हुई घपलेबाजी की जांच की मांग करनी चाहिए थी, लेकिन इन्होंने भ्रष्टाचारियों का साथ देने का फैसला किया. सांसदों के ऐसे ही बर्ताव और बयानों से लोगों का संसद और राजनीति से विश्वास उठता है. शायद इन नेताओं को यह जानकारी नहीं है कि जब ये टीवी पर बोलते नज़र आते हैं तो लोग चैनल बदल देते हैं.

सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि सेना में हथियारों और ट्रकों को ख़रीदने की ज़िम्मेदारी सरकार की है, यह काम रक्षा मंत्रालय का है. इसका फैसला रक्षा मंत्रालय में बैठे अधिकारी लेते हैं. इसलिए जो भी घोटाला होता है, उससे जुड़ा जो भी दलाली और बिचौलिए का धंधा है, उसके लिए रक्षा मंत्रालय में बैठे सिविलियन अधिकारी ज़िम्मेदार हैं. यह बात किसी से नहीं छिपी है कि देश में रक्षा सौदा किस तरह होता है, उसमें दलालों एवं बिचौलियों का क्या रोल है. वर्ष 2006 से ही सरकार ने सैन्य सौदे में बिचौलियों और दलालों की भूमिका ख़त्म कर दी है. यह तय हो चुका है कि जो भी हथियार या ट्रक ख़रीदे जाएंगे, वे सीधे उत्पादकों से लिए जाएंगे. जनरल वी के सिंह ने स़िर्फ अपने कर्तव्य का पालन किया है. उन्होंने सैन्य सौदे में होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर किया है. अब यह सरकार की ड्यूटी है कि वह पूरे सिस्टम से भ्रष्टाचार को ख़त्म करे, सेना में भ्रष्टाचार के सभी मामलों की तहकीकात करे और रक्षा मंत्रालय में बैठे अधिकारियों के खिला़फ कार्रवाई करे, लेकिन ठीक उल्टा हो रहा है. देश के थलसेना अध्यक्ष को सीबीआई से जांच के लिए कहना पड़ा है, इसलिए अब कई मामले सामने आएंगे और उन पर तहकीकात होगी. यही वजह है कि सीबीआई ने टेट्रा ट्रक बेचने वाली कंपनी वेक्ट्रा के ठिकानों पर छापेमारी की है. जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे हैं, इस घोटाले के बारे में नई-नई जानकारियां आ रही हैं.

टेट्रा ट्रक में घोटाले की खबर सोनिया गांधी को थी, कांग्रेस पार्टी के अहम नेता गुलाम नबी आजाद को थी, रक्षा मंत्री ए के एंटनी को थी. यह खुलासा कांग्रेस के ही एक नेता हनुमनथप्पा की चिट्ठी से हुआ है. इसलिए अब यह मामला सिर्फ जनरल वी के सिंह का नहीं है. यह मामला अब देश की सुरक्षा और सरकार के चाल, चरित्र और चेहरे का है. जनरल वी के सिंह ने चौथी दुनिया को दिए गए इंटरव्यू में स़िर्फ घूसखोरी के ऐसे सच को बताया, जिसके बारे में सरकार और कांग्रेस पार्टी को पहले से पता था. इसलिए अब इस विवाद में सरकार ख़ासकर रक्षा मंत्रालय को कुछ कठिन सवालों का जवाब देना है. अब रक्षा मंत्री ए के एंटनी यह कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं छिटक सकते कि जनरल वी के सिंह ने लिखित शिकायत नहीं की.

जब जनरल वी के सिंह के इंटरव्यू का यह विवाद शुरू हुआ, तब प्रधानमंत्री को लिखी एक चिट्ठी को मीडिया में लीक कर दिया गया. सरकार ने इस पूरे विवाद को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया, जहां सबसे बड़ा सवाल यह हो गया है कि जनरल वी के सिंह की चिट्ठी किसने लीक की. मीडिया और जनता का ध्यान बंटाने का नुस्खा भी काम नहीं आया, क्योंकि लगातार नए-नए खुलासे होते रहे. इस विवाद की जड़ में बस एक मूल सवाल है कि क्या हमारे देश में हथियारों की खरीददारी में दलालों और बिचौलियों को लूट मचाने की छूट है या नहीं. क्या हर सौदे में घोटाला हो रहा है, लेकिन मीडिया के कुछ हिस्से में यह चर्चा होने लगी कि जनरल वी के सिंह यह सब इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट में जन्मतिथि का मुक़दमा हार गए हैं. मीडिया भी इस मामले में देश को गुमराह कर रहा है. हक़ीक़त यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि पर कोई फैसला ही नहीं दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नहीं किया है कि जनरल की जन्मतिथि क्या है. बड़े आदर के साथ यह कहना पड़ता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से यह मामला आज भी खुला है. विवाद जारी है. यही वजह है कि रक्षा मंत्रालय कोई फैसला नहीं ले पा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ यह आदेश दिया है कि इस मामले पर सरकार और आप स्वयं फैसला कर लें. रक्षा मंत्रालय ने जनरल वी के सिंह या आर्मी हेड क्वार्टर को उनके रिटायरमेंट की चिट्ठी नहीं भेजी है. रक्षा मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि उसकी परेशानी यह है कि रिटायरमेंट की चिट्ठी में उनकी जन्मतिथि क्या लिखी जाए. सूत्र बताते हैं कि जो चिट्ठी तैयार की गई है, उसमें जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि वर्ष 1951 लिखी गई है. अगर यह चिट्ठी भेजी जाती है तो, इसका मतलब यह है कि सरकार ने जनरल वी के सिंह को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे दिया. रक्षा मंत्रालय की मुश्किल यह है कि एडजूटैंट ब्रांच के दस्तावेज़ों में जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि आज भी 10 मई, 1951 है. याद रहे, एडजूटैंट ब्रांच ही सेना के दस्तावेज़ों और सैन्य अधिकारियों के रिकॉर्ड को रखने वाली आधिकारिक शाखा है. इसलिए न तो जन्मतिथि के मामले में जनरल वी के सिंह की हार हुई है और न यह विवाद अभी ख़त्म हुआ है, लेकिन अब जो विवाद सामने आया है, वह जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि के विवाद से कहीं आगे चला गया है. जो लोग जनरल वी के सिंह के बयानों और कोशिशों को किसी मोटिव से जोड़ रहे हैं, वे देशद्रोह का काम कर रहे हैं. सबसे अहम सवाल यह है कि जो जानकारी जनरल वी के सिंह ने प्रधानमंत्री को दी, उसमें कितनी सच्चाई है. क्या हमारी तोपों में गोले-बारूद नहीं हैं, क्या हम रात के अंधेरे में दुश्मन से लड़ नहीं सकते, क्या हमारा एयर डिफेंस सिस्टम पाकिस्तान और चीन से कमज़ोर है, अगर जंग हो जाए तो क्या कुव्यवस्था की वजह से हमें नुक़सान हो सकता है? प्रधानमंत्री को सामने आकर जनरल वी के सिंह के सवालों को जवाब देना चाहिए. अगर जनरल वी के सिंह की बातें ग़लत हैं तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए और अगर उनकी बातों में जरा भी सच्चाई है तो प्रधानमंत्री को, रक्षा मंत्रालय में बैठे सारे अधिकारियों को अविलंब कार्रवाई करनी चाहिए.

देश बहुत नाजुक स्थिति से गुजर रहा है. एक तरफ इंडियन आर्मी का ईमानदार जनरल है तो, दूसरी तरफ सरकार है, राजनीतिक पार्टियां हैं और वे तमाम नेता हैं, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में लगे हैं. संसद में नेताओं ने इस तरह बयान दिए, जैसे जनरल वी के सिंह हिंदुस्तान में पाकिस्तान की तरह सत्ता पर बैठना चाहते हैं. पिछले सप्ताह हमने जनरल वी के सिंह का इंटरव्यू छापा था, जिससे साफ-साफ पता चलता है कि जनरल वी के सिंह एक ईमानदार ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र और समानता का सम्मान करने वाले जनरल हैं. देश के लोगों को ऐसे सेना अध्यक्ष पर गर्व होता है, जो नक्सली इलाक़ों में सेना के इस्तेमाल को मना कर देता है. आज़ादी के बाद जनरल वी के सिंह पहले ऐसे सेना अध्यक्ष हैं, जिन्होंने जवानों का जीवन संवारा है. चाहे वह अफसरों जैसा राशन देने का मामला हो या फिर कपड़ों का. जनरल वी के सिंह यह सब इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें कुर्सी से प्यार है, बल्कि यह मामला सेना और देश के भविष्य से जुड़ा है. ऐसे सेना अध्यक्ष के खिला़फ नेताओं का एकजुट होना एक शर्मनाक घटना है. अच्छा तो यह होता कि सरकार और संसद जनरल वी के सिंह के साथ मिलकर सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने का काम करती, लेकिन सरकार में छिपे कुछ देशद्रोहियों ने प्रधानमंत्री को लिखी जनरल वी के सिंह की चिट्ठी पहले लीक कर दी और जनरल वी के सिंह पर आरोप मढ़ने की कोशिश की. रक्षा मंत्री और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को यह पता होना चाहिए कि सरकार ने ग़रीबों का पेट काट कर एक लाख तिरानवे हज़ार करोड़ रुपये सेना को दिए हैं. इन पैसों को दलालों और बिचौलियों के हाथों में जाने से रोकने की ज़िम्मेदारी सरकार की है. रक्षा मंत्री के सिर पीटने और मामले को दबा देने से अब काम नहीं चलने वाला है. सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार के तंत्र को जड़ से नष्ट करने की ज़रूरत है.

तीन महीने पहले ही चौथी दुनिया ने टेट्रा ट्रक विवाद का खुलासा किया था

चौथी दुनिया ने तीन महीने पहले ही टेट्रा ट्रक विवाद को छापा था. यह सेना की इज्जत का सवाल है शीर्षक से प्रकाशित इस लेख में सवाल खड़ा किया गया था कि क्या जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि का विवाद उठाने के पीछे हथियार माफिया और दलालों का षड्‌यंत्र है. हाल की घटनाओं से यह सा़फ होता है कि जनरल वी के सिंह टेट्रा ट्रक की ख़रीद पर रोक लगाते ही कुछ अधिकारियों और हथियार माफिया के निशाने पर आ गए. इसलिए टेट्रा ट्रक का विवाद समझना ज़रूरी है. भारतीय सेना एक ट्रक का इस्तेमाल करती है, जिसका नाम है टेट्रा ट्रक. भारतीय थलसेना टेट्रा ट्रक का इस्तेमाल मिसाइल लांचर की तैनाती और भारी-भरकम चीजों के ट्रांसपोर्टेशन में करती है. इन ट्रकों का पिछला ऑर्डर फरवरी, 2010 में दिया गया था, लेकिन ख़रीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं तो आर्मी चीफ वी के सिंह ने इस सौदे पर मुहर लगाने से इंकार कर दिया. भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड यानी बीईएमएल लिमिटेड को जिस वक्त इन ट्रकों की आपूर्ति का ठेका मिला, तब भारतीय सेना की कमान जनरल दीपक कपूर के हाथ में थी. नियमों के मुताबिक़, हर साल आर्मी चीफ को इस डील पर साइन करने होते हैं, लेकिन रिश्वतखोरी से लेकर मानकों के उल्लंघन तक की शिकायतों की वजह से जनरल वी के सिंह ने साइन नहीं किए. इसी डील पर साइन करने के लिए जनरल वी के सिंह को 14 करोड़ रुपये घूस देने की पेशकश की गई. क़ानून के मुताबिक़, टेट्रा ट्रकों की ख़रीददारी सीधे कंपनी से होनी चाहिए, लेकिन बीईएमएल ने यह ख़रीददारी टेट्रा सिपॉक्स (यूके) लिमिटेड से की, जो न तो स्वयं उपकरण बनाती है और न उपकरण बनाने वाली कंपनी की सब्सिडियरी है. यह स्लोवाकिया की एक टेट्रा कंपनी से ट्रक खरीदती है. हैरानी की बात यह है कि टेट्रा कंपनी के सबसे ज़्यादा शेयर रविंद्र ऋषि के पास हैं और वही वेक्ट्रा ग्रुप का मालिक भी है. अब सवाल यह है कि जब वह टेट्रा का मालिक है तो फिर उसे वेक्ट्रा के जरिए ट्रक ख़रीदने की क्या ज़रूरत है. समझने वाली बात यह है कि ट्रक की खरीददारी का सौदा ट्रक बनाने वाली कंपनी और भारत सरकार के बीच नहीं है. कुछ सवाल ऐसे हैं, जिनका जवाब सरकार को देना चाहिए. रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री को देना है. सैन्य सौदों में बिचौलियों को बाहर रखने के क़ानून का खुला उल्लंघन क्यों हुआ. क्या सरकार को यह पता नहीं था कि रविंद्र ऋषि निर्माता नहीं, एक दलाल है. इस पूरे घोटाले में कितना पैसा कमीशन के रूप में जा रहा है, उसे पता करना बड़ा ही आसान है. बस यह पता करना था कि रक्षा मंत्रालय इन ट्रकों के लिए रविंद्र ऋषि को कितना पैसा देता था और ट्रक निर्माता को कितना मिलता है. सरकार ने अब तक यह काम क्यों नहीं किया. रविंद्र ऋषि भारतीय मूल के हैं, लेकिन उनकी नागरिकता ब्रिटेन की है. वह डिफेंस एक्सपो में हिस्सा लेने के लिए भारत में हैं. इसमें हिस्सा लेने वालों की बाक़ायदा पुलिस द्वारा जांच होती है. इसका मतलब है कि सरकार के पास रविंद्र ऋषि की पूरी जानकारी है.

सरकार देश को गुमराह कर रही है कि यह मामला नया है. दरअसल, बीईएमएल द्वारा टेट्रा ट्रकों की ख़रीद का पूरा मामला संदेह के घेरे में है. एक अंग्रेजी अख़बार डीएनए के मुताबिक़, यह पूरा रैकेट 1997 से चल रहा है. बीईएमएल में उच्च पद पर रह चुके एक पूर्व अधिकारी के हवाले से यह भी ख़बर आई कि अब तक कंपनी टेट्रा ट्रकों की डील से कुल 5,000 करोड़ रुपये का कारोबार कर चुकी है. यह कारोबार टेट्रा सिपॉक्स (यूके) लिमिटेड के साथ किया गया. इसे स्लोवाकिया की टेट्रा सिपॉक्स (एएस) की सब्सिडियरी बताया जाता रहा है. बीईएमएल के इस पूर्व अधिकारी के मुताबिक़, 5,000 करोड़ रुपये के इस कारोबार में 750 करोड़ रुपये बीईएमएल एवं रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों को बतौर रिश्वत दिए गए. बात यहीं ख़त्म नहीं होती है. बीईएमएल के एक शेयर धारक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता के एस पेरियास्वामी राष्ट्रपति से हस्तक्षेप और सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं. वह कहते हैं, ख़रीद के लिए जितनी रक़म की मंजूरी दी जाती है, उसका कम से कम 15 फीसदी हिस्सा कमीशन में चला जाता है. ऊपर से नीचे तक सबको हिस्सा मिलता है.

ट्रकों की संदेहास्पद डील को लेकर 8 मई, 2005 को मीडिया में ख़बर आई थी. डीएनए अख़बार ने एक और ख़ुलासा किया कि टेट्रा सिपॉक्स (यूके) लिमिटेड की स्थापना 1994 में ब्रिटेन में हुई थी. जोजफ मजिस्की और वीनस प्रोजेक्ट्स लिमिटेड इसके शेयर धारक थे. स्लोवाकिया के न्याय मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, टेट्रा सिपॉक्स (एएस) 1998 में अस्तित्व में आई. इसका मतलब यह हुआ कि 1997 में बीईएमएल ने ऐसी कंपनी की सब्सिडियरी के साथ समझौता किया, जो उस समय अस्तित्व में ही नहीं थी. टेट्रा सिपॉक्स (यूके) की शेयर होल्डिंग में कई बार बदलाव हुआ, लेकिन स्लोवाक कंपनी के पास कभी इसका एक शेयर भी नहीं रहा. अब सवाल यह उठता है कि क्या आर्मी चीफ को पद से हटाने के लिए साज़िश रची गई, क्योंकि उन्होंने टेट्रा डील पर दस्तख़त नहीं किए थे? क्या बीईएमएल सेकेंड हैंड ट्रकों का आयात कर रही है और क्या स्लोवाकिया में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बंद हो गया है? क्या पुराने ट्रकों की मरम्मत को घरेलू उत्पादन के तौर पर दिखाया जा रहा है? रविंद्र ऋृषि को इतने रक्षा सौदों का ठेका क्यों दिया जा रहा है? इस लॉबी के लिए सरकार में काम करने वाले लोग कौन हैं? सरकार को यह भी बताना चाहिए कि टेट्रा ट्रक के अलावा किन-किन सौदों में रविंद्र ऋृषि की हिस्सेदारी है?

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