राजस्‍थान में मौत का पुल

Share via

rajasthanन जांच, न कोई बातचीत सबसे पहले क्लीनचिट. लगता है सरकार ने ग़रीबों की लाशों पर भी निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की नीति बना ली है. जब भी विवाद अमीर और ग़रीब के बीच का होता है, तो पूरी सत्ता अमीर के साथ खड़ी हो जाती है. ग़रीब मरते हैं तो सरकार को अ़फसोस नहीं होता. उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता. एक निर्माणाधीन पुल ताश के पत्तों की तरह गिर जाता है. सौ से ज़्यादा लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं. जांच का आदेश दे दिया जाता है, लेकिन जांच रिपोर्ट आने से पहले ही पुल बनाने वाली कंपनियों को देश के आलाधिकारी क्लीन चिट दे देते हैं. चौथी दुनिया को एक ऐसा गोपनीय दस्तावेज़ हाथ लगा है, जिससे सरकार की संवेदनहीनता का पर्दा़फाश होता है. इस दस्तावेज़ से यह पता चलता है कि किस तरह कोटा में निर्माणाधीन पुल के गिरने की वजह गैमन इंडिया और हुंडई इंजीनियरिंग की लापरवाही है. हैरानी की बात यह है कि इन कंपनियों को सज़ा देने की बजाय सरकार ने इन्हें ईनाम दिया है. जिस पुल के गिरने से मज़दूर मारे गए और उनके परिवार के लोग दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए, वही पुल अब फिर से बन रहा है. वही कंपनी, वही डिजाइन, वही इंजीनियर्स, वही सामान, सबकुछ वही है, बस पुल बनाने वाले मज़दूरों के चेहरे बदल गए हैं.

चंबल नदी पर बन रहा यह पुल राजस्थान के कोटा शहर के पास है. यहां चंबल नदी के दोनों किनारे पहाडि़यां हैं और नदी गहरी है. यहां जो पुल बन रहा है, उसमें पिलर नहीं है. यह कोटा के हैंगिंग पुल के नाम से जाना जाता है, लेकिन यह मशहूर मौत के पुल के नाम से है, क्योंकि 24 दिसंबर, 2009 को यह पुल अचानक से टूट गया और कई मज़दूर मारे गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, मरने वालों की संख्या 48 है. हादसे के दो दिन बाद वहां राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन ब्रजेश्वर सिंह घटनास्थल पर पहुंचे और सबसे पहला बयान यह दिया कि इस हादसे में गैमन इंडिया और हुंडई इंजीनियरिंग दोषी नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि पुल के निर्माण में कुछ तकनीकी खामियां थीं और हादसे की सही वजह का पता जांच के बाद चल पाएगा. लेकिन जांच से पहले ही दोनों कंपनियों को क्लीन चिट दे देना चौंकाने वाली घटना है. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन को इतनी क्या हड़बड़ाहट थी कि वह जांच रिपोर्ट का इंतज़ार न कर सके. इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन ने यह बयान क्यों दिया और किसके दबाव में दिया. क्या केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की जानकारी में ऐसे बयान दिए या फिर उन्होंने खुद ही यह मान लिया कि गैमन इंडिया से कोई ग़लती हो ही नहीं सकती है, क्योंकि उन्होंने जिस चार सदस्यीय टीम से इस हादसे की जांच करवाई, उसने गैमन इंडिया और साउथ कोरिया की कंपनी हुंडई को पुल के गिरने का मुख्य ज़िम्मेदार ठहराया है.

लगता है गैमन इंडिया और हुंडई जैसी कंपनियों के सामने भारत सरकार ने घुटने टेक दिए हैं. उनके लिए न तो कोई क़ानून है, न कोई ज़िम्मेदारी. इन कंपनियों की लापरवाही से 48 लोगों की मौत हो गई, लेकिन न तो इन्हें ब्लैकलिस्ट किया गया और न ही इनके खिला़फ कोई ठोस कार्रवाई हुई. अगर गैमन इंडिया की लापरवाही की एक घटना होती तो इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, लेकिन गैमन इंडिया के कई प्रोजेक्ट्‌स में दुर्घटनाएं हुईं और हर बार कंपनी अपनी ज़िम्मेदारी झटकने में कामयाब हो गई. इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने की बजाय नए प्रोजेक्ट्स मिल रहे हैं. क्या गैमन इंडिया जैसी कंपनियों को सरकार या मंत्रियों का समर्थन है या फिर यह मान लिया जाए कि देश में बड़ी कंपनियों और अधिकारियों एवं मंत्रियों का एक ऐसा अमानवीय गठजोड़ बन चुका है, जहां लाल काग़ज़ के लालच के सामने ग़रीब मज़दूरों की जानें बेहद सस्ती हो गई हैं. जो कंपनियां इस पुल के गिरने के लिए ज़िम्मेदार है, जो कंपनियां ग़रीब मज़दूरों की मौत के लिए ज़िम्मेदार हैं, वही आज बड़े ठाठ से कोटा में चंबल नदी पर पुल बना रही हैं.

अब ज़रा समझते हैं कि इस प्रोजेक्ट में किन-किन कंपनियों के क्या दायित्व हैं. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने कोटा के पास चंबल नदी पर एक पुल बनाने का ठेका एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी को दिया गया, जिसमें गैमन इंडिया लिमिटेड, मुंबई और हुंडई इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड, साउथ कोरिया हिस्सेदार थीं. यह कॉन्ट्रेक्ट टर्नकी कॉन्ट्रेक्ट है, जिसका मतलब यह कि पुल बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत से आ़िखर तक की ज़िम्मेदारी ठेका लेने वाली कंपनी की होती है. इसलिए सिद्धांत के तौर पर भी कोटा के पुल की सारी ज़िम्मेदारी गैमन इंडिया और हुंडई पर है. अब यह समझते हुए भी प्राधिकरण इन दोनों कपंनियों को क्लीन चिट दे देता है, तो इसे क्या कहा जाए? इस प्रोजेक्ट से दो कंपनियां और भी जुड़ी हुई हैं. इनका काम देखरेख का है. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने प्रोजेक्ट की देखरेख का ठेका द लुविस बर्गर ग्रुप (एलबीजी) यूएसए और सीओडब्ल्यूआई (कोवी) के एक ज्वाइंट वेंचर को दिया.

पुल टूटने के बाद देश में कोहराम मच गया. खबरें दबा दी गईं, टीवी पर भी इस खबर को ज़्यादा नहीं दिखाया गया. यही वजह है कि देश इस पुल हादसे को भूल चुका है. लोगों को दिल्ली मेट्रो हादसा याद है, क्योंकि इसे टीवी पर जमकर दिखाया गया, लेकिन यहां मरने वाले ग़रीब थे, शायद इसलिए इसकी अहमियत मीडिया के  लिए कम रही. दोनों हादसों में एक बात समान है कि ये दोनों ही प्रोजेक्ट गैमन इंडिया के पास थे. कोटा पुल के गिरने के बाद चार विशेषज्ञों की एक जांच कमेटी बनी. इस जांच कमेटी का अध्यक्ष निर्मल जीत सिंह को बनाया गया, जबकि निनान कोशी, प्रोफेसर महेश टंडन और ब्रिज स्पेशलिस्ट प्रो. ए के नागपाल को सदस्य के रूप में शामिल गया. उन्होंने 31 जुलाई, 2010 को अपनी फाइनल रिपोर्ट दे दी. सरकार ने इसे गोपनीय बताकर छिपा लिया. न दोषी पाई गई कंपनियों पर कोई कार्रवाई हुई और न रिपोर्ट में बताई गई कमियों पर कोई सुनवाई हुई. एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट से सरकार और पुल बनाने वाली कंपनियों ने कोई सीख ली हो, इसकी उम्मीद कम ही नज़र आती है.

इस एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी जांच में यह पाया कि पुल ढहने के कई कारण हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, पुल का जो हिस्सा टूटा और जिसकी वजह से पुल ढह गया, वह अस्थिर और कमज़ोर था. पुल के डिजाइन में खामियां और निर्माण की गुणवत्ता में कमी थी. अब सवाल उठता है कि इन सबके लिए कौन ज़िम्मेदार है. एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दो कंपनियों को ज़िम्मेदार माना है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, इस हादसे की मूल ज़िम्मेदारी गैमन इंडिया और हुंडई इंजीनियरिंग की है. इस पुल के निर्माण में इन दोनों कंपनियों की मुख्य भूमिका थी. रिपोर्ट में कहा कि इन दोनों ही कंपनियों की लापरवाही की वजह से पुल का निर्माण ऐसे अति संवेदनशील और असुरक्षित चरण में जा पहुंचा, जहां दुर्घटना होना लगभग निश्चित सा हो गया. इस दौरान दोनों कंपनियों ने कई नियमों की अवहेलना भी की, साथ ही दुर्घटना की रोकथाम के लिए कोई क़दम भी नहीं उठाया. इस रिपोर्ट में कहा गया कि पी-3 और पी-4 खंभों को बनाने में गड़बड़ियां पाई गईं. एक्पर्ट कमेटी ने एक चौंकाने वाली बात यह भी कही कि पुल के डिजाइन में ही खामियां हैं. मतलब यह कि अगर डिजाइन में ही गड़ब़डी है, तो रिपोर्ट ने प्रोजेक्ट पर ही सवालिया निशान लगा दिया. एक्पर्ट कमेटी का मानना है कि डिजाइन में कमी के लिए सिस्ट्रा नामक कंपनी ज़िम्मेदार है, जो हुंडई कपंनी के लिए डिजाइन तैयार करती है.

चंबल नदी पर बन रहा यह पुल राजस्थान के कोटा शहर के पास है. यहां चंबल नदी के दोनों किनारे पहाडि़यां हैं और नदी गहरी है. यहां जो पुल बन रहा है, उसमें पिलर नहीं है. यह कोटा के हैंगिंग पुल के नाम से जाना जाता है, लेकिन यह मशहूर मौत के पुल के नाम से है, क्योंकि 24 दिसंबर, 2009 को यह पुल अचानक से टूट गया और कई मज़दूर मारे गए.

एक्सपर्ट कमेटी ने गहराई से मामले की तहक़ीक़ात की और ज़िम्मेदारियों को तय किया. जहां मूल ज़िम्मेदारी गैमन इंडिया और हुंडई कंपनी की थी, वहीं पुल निर्माण की देखरेख, निरीक्षण और निर्माण प्रक्रिया के लिए इस कमेटी ने एलबीजी और कोवी नामक कंपनियां की ज़िम्मेदारी अंकित की है. इस प्रोजेक्ट की निर्माण प्रक्रिया की देखरेख की ज़िम्मेदारी एलबीजी और कोवी नामक कंपनियों की थी. दोनों कंपनियों पर निरीक्षण और डिजाइन के परीक्षण की ज़िम्मेदारी थी. ये दोनों कंपनियां कई जगहों पर विफल रहीं. कोवी ने न कभी डिजाइन की कमियों को बताया और न कार्य प्रणाली में गड़बड़ियों को रोकने में सक्रिय भूमिका निभाई. चौंकाने वाली बात यह है कि निर्माण के दौरान कई बार दोनों कंपनियों ने निर्माण प्रक्रिया में किए गए फेरबदल पर कभी कोई आपत्ति नहीं जताई, बल्कि निर्माण प्रकिया के मापदंडों के साथ छेड़छाड़ को भी अपना मौन समर्थन दिया, जबकि नियम के मुताबिक़, निर्माण प्रक्रिया में बदलाव के लिए कई जगहों से अनुमति लेने की ज़रूरत पड़ती है. कोटा पुल के निर्माण में ऐसे कई नियमों का उल्लंघन हुआ. एक्सपर्ट कमेटी ने फ्रेस्सीनेट कंपनी पर भी सवाल उठाए हैं. यह एक स्पेशलिस्ट कंपनी है, जो निर्माण में लगी उन मशीनों की सप्लाई और ऑपरेशन के लिए ज़िम्मेदार थी, जिसकी वजह से पुल ढह गया.

सरकार के आंकड़े बताते हैं कि इस पुल के गिरने से 48 लोगों की मौत हुई है, लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि 90 से ज़्यादा लोग मारे गए. इनमें तीन तरह के लोग शामिल थे. पहले वे लोग जो इन कंपनियों के इंजीनियर्स थे और दूसरे वे जो ठेकेदार के मज़दूर थे तथा तीसरे वे लोग, जो यहां डे़ढ सौ रुपये की दिहा़डी पर काम करते थे. इन दिहा़डी मज़दूरों का यहां कोई नाम, पता नहीं था, कोई एंट्री नहीं थी. इन लोगों का नाम नहीं होने की वजह से इनके परिवार के लोगों को कोई मुआवज़ा भी नहीं मिला. उनके परिवार अब भूखे मर रहे हैं, परिवार में कोई कमाने वाला नहीं बचा और उनके बच्चे बिलख रहे हैं. हादसे के तुरंत बाद सड़क परिवहन राज्य मंत्री महादेव सिंह खंडेला ने यह भरोसा दिलाया था कि हादसे के लिए ज़िम्मेदार कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया जाएगा चाहे वह गैमन हो या हुंडई ही क्यों न हो. रिपोर्ट आए का़फी व़क्त बीत गया, लेकिन इन कंपनियों के खिला़फ कोई कार्रवाई नहीं हुई. सरकार ने दोषियों को सज़ा दिलाने के नाम पर खानापूर्ति की. एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद कुछ लोगों के खिला़फ कार्रवाई हुई. कोनाडी थाने में यह मामला दर्ज हुआ और 5 महीने बाद इनकी ज़मानत हुई. गिरफ्तार होने वालों में कुछ ईटालियन थे, कुछ जापानी थे, कुछ साइट इंजीनियर थे, लेकिन बड़ी मछलियां बचकर निकल गईं, चाहे वह बड़ी कंपनियां हों, चीफ इंजीनियर हो और ब़डे-ब़डे आदमी हों, जो इसमें शामिल थे, इनमें से कोई पक़डा नहीं गया. इनके खिला़फ कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद कुछ लोगों ने इंसा़फ के लिए लड़ाई भी शुरू की. पहले केंद्रीय सर्तकता आयोग को इसके विरुद्ध जांच के लिए लिखा गया, लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगी. कुछ लोगों ने इस मामले को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया, मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट हाइवे, चेयरमैन से शिकायत की, लेकिन हर जगह से स़िर्फ गोलमोल जवाब मिला. निराश होकर इन लोगों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी, वहां से जवाब आया कि इस मामले की जांच की जाएगी, लेकिन इसके विपरीत हो रहा है.

चौथी दुनिया को एक ऐसा गोपनीय दस्तावेज़ हाथ लगा है, जिससे सरकार की संवेदनहीनता का पर्दा़फाश होता है. इस दस्तावेज़ से यह पता चलता है कि किस तरह कोटा में निर्माणाधीन पुल के गिरने की वजह गैमन इंडिया और हुंडई इंजीनियरिंग की लापरवाही है.

हादसे के समय कमलनाथ परिवहन मंत्री थे, अब उन्हें हटाकर राजस्थान के ही सी पी जोशी को यह मंत्रालय दे दिया गया है. शायद राजस्थान में हुई इतनी बड़ी घटना को वह भूल चुके हैं. ब्लैकलिस्ट होने की बजाय ये कंपनियां फिर से कोटा में पुल बना रही हैं. वही पुराना डिजाइन, वही लोग, वही कंपनी, वही चीफ इंजीनियर, वही साइट इंजीनियर और वही डायरेक्टर्स. एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट से कोई सीख नहीं ली गई. रिपोर्ट ने जिन-जिन कमियों को उजागर किया है, अगर वही फिर से दोहराई गईं तो दोबारा पुल गिरने का डर बना रहेगा. अगर ऐसा हो गया तो सरकार किस मुंह से कोटा के लोगों और ग़रीब मज़दूरों को जवाब देगी. जांच रिपोर्ट में कंपनियों को दोषी बताया गया है, लेकिन सरकार की संवेदनहीनता ने उसे खुद ही गुनाहगारों की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया है.

जब पुल गिरा था…

कोटा शहर के पास एक सुनसान इलाक़े में चंबल नदी पर पुल का निर्माण हो रहा था. कोटा शहर के लोग खुश थे कि बाईपास के लिए बनाए जा रहे इस पुल के बनने से शहर में ट्रैफिक जाम से निजात मिल जाएगी. यह पुल राष्ट्रीय राजमार्ग-76 पर है. मगर 25 दिसंबर, 2009 को जब सुबह अ़खबारों के ज़रिये कोटा के लोगों को पता चला कि बहुत बड़ा पुल चरमराकर ताश के पत्तों की तरह ढह गया. यह पुल 24 दिसंबर, 2009 को शाम के 5 बजकर 17 मिनट पर गिरा था. अगले दिन सवेरे वहां त्राहिमाम मची हुई थी, चंद पुलिसवाले थे, लोग भाग रहे थे, लाशें गिरी प़डी थीं, चारों तऱफ खून ही खून था, पुल के नीचे से आवाज़ें आ रही थीं, फायर ब्रिगेड नहीं थी, लेकिन कलेक्टर, कमिश्नर मौक़े पर थे. यह नज़ारा 25 तारी़ख का था, क्योंकि शाम को जब पुल गिरा, तब तो स़िर्फ 5-10 लोग ही पहुंच पाए, जब अ़खबारों में खबर छप गई, तब भागकर सरकारी अधिकारी वहां पहुंचे. कोटा के निवासी नाराज़ हैं. वे कहते हैं कि कोटा में पहले भी एक पुल था, जिसे बॉल बियरिंग के नाम से जाना जाता है, जिसकी उम्र 20 साल थी. पर वह पुल 2-4 साल बाद ही बेंड होकर गिरने की स्थिति में आ गया. लोगों की नाराज़गी इतनी है कि उन्हें लगता है कि पुल के गिरने का रिश्ता सीधे भ्रष्टाचार से है. वे इस बात को मानने लगे हैं कि हमारे देश के सरकारी अधिकारी, चीफ इंजीनियर रैंक के आदमी मानसिक रूप से इतने ग़ुलाम हो चुके हैं कि विदेशी कंपनियों के ग़लत डिजाइनों को भी पैसा लेकर साइन करने को तैयार हैं. लोगों को यही लगता है कि हर निर्माण में ठेकेदार से लेकर मंत्री तक घूस खाते हैं. ठेकेदार खराब सीमेंट, खराब लोहे का इस्तेमाल करते हैं, जिसका परिणाम है पुल का गिरना.

गैमन के कारनामे

  • 9 सितंबर, 2007 को हैदराबाद के गुंजापट्टा इलाक़े में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर ढह गया था, जिसका निर्माण गैमन इंडिया कर रही थी. इस हादसे में 30 लोगों की जान गई थी. 800 मीटर लंबे पुल का एक हिस्सा 20 फुट की ऊंचाई से गिर गया था.
  • अक्टूबर 2008 में पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर में मेट्रो के निर्माण के दौरान कंस्ट्रक्शन ब्रिज के गिरने से दो लोगों की जान गई थी और कई लोग घायल हो गए थे. यह निर्माण गैमेन इंडिया ही कर रही थी.
  • 12 जुलाई, 2009 को दिल्ली मेट्रो की केंद्रीय सचिवालय से बदरपुर लाइन के निर्माण के दौरान दक्षिणी दिल्ली के जमरूदपुर में पिलर नंबर 67 कोलैप्स हो गया था. दूसरे ही दिन उसी जगह फिर हादसा हुआ था. यहां निर्माण कार्य गैमन इंडिया कर रही थी. हादसे में 15 लोगों की जान गई थी और 15 लोग घायल हुए थे.
Share via