इंडियन एक्‍सप्रेस की पत्रकारिता- 2

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अगर कोई अ़खबार या संपादक किसी के ड्राइंगरूम में ताकने-झांकने लग जाए और गलत एवं काल्पनिक कहानियां प्रकाशित करना शुरू कर दे तो ऐसी पत्रकारिता को कायरतापूर्ण पत्रकारिता ही कहेंगे. हाल में इंडियन एक्सप्रेस ने एक स्टोरी प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था, सीक्रेट लोकेशन. यह इस अ़खबार में प्रकाशित होने वाले नियमित कॉलम डेल्ही कॉन्फिडेंशियल का एक हिस्सा थी. इस स्टोरी को पढ़कर कोई आदमी यही निष्कर्ष निकालेगा कि वी के सिंह और अन्ना हजारे, जो पारदर्शिता के स्वघोषित योद्धा हैं, वे हमेशा गुप्त तरीके से मिलते हैं, क्योंकि खुले में मिलना उनके लिए असहज होता है और यह भी कि चौथी दुनिया पूर्व सेनाध्यक्ष वी के सिंह का बहुत बड़ा समर्थक है. नीचे वह पूरी स्टोरी प्रकाशित की जा रही है, जो इंडियन एक्सप्रेस ने छापी है:-

 Secret Locations

It is interesting that General V K Singh and Anna Hazare–two self-styled exponents of transparency- always seem to meet in secrecy. The first rendezvous happened late at night on September 19 after Hazare’s acrimonious breakup with Team Kejriwal. At that time, Hazare is believed to have met Ramdev and Singh at the South Delhi residence of a Ramdev follower. The otherwise media savvy activist had clearly been uncomfortable with the glaring flashbulbs that night. The other equally secret meeting between Hazare and Singh seems to have happened at Golf Links on December 6, mediated by a Hindi journalist said to be close to the former Army Chief. The two apparently spent 20 minutes together without any aides. The venue of their meeting, one of the floors at 102 Golf Links, is incidentally rented by Chauthi Duniya, a Hindi publication that hasbeen extremely supportive of the former Army Chief.

इंडियन एक्सप्रेस की यह स्टोरी बहुत सारी तथ्यात्मक गलतियों से भरी पड़ी है और वास्तविकता से काफी दूर है. यह स्टोरी अधपकी सूचनाओं पर आधारित है और कहीं से प्रेरित लगती है. यह स्टोरी दुर्भावना से ग्रस्त है. सबसे पहली बात तो यह कि स्टोरी घटना के बारे में श्योर नहीं है. न तो रिपोर्टर और न उसका सब एडिटर, जिसने यह स्टोरी लिखी, घटनास्थल पर मौजूद था. दोनों बैठकों के लिए स्टोरी में ऐसे शब्दों, जैसे प्रतीत होता है, ऐसा लगता है, का इस्तेमाल किया गया है. जबकि पहली बैठक की ़खबर मीडिया में खासी छाई हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता को पता होना चाहिए कि वह बैठक 20 मिनट नहीं, बल्कि 2 घंटे से ज़्यादा देर तक चली थी. इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि इंडियन एक्सप्रेस को इस घटना के बारे में कुछ पता नहीं था और न उसने टीवी रिपोट्‌र्स तक को देखने की जहमत उठाई. फिर इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसी खबर क्यों छापी? सबसे बड़ी गलती यह बताना था कि दोनों बैठकें एक ही जगह पर हुईं. इस रिपोर्ट का सबसे दु:खद पहलू यह है कि इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर ने चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय को फोन करके पूछा था. उन्होंने उस रिपोर्टर को बताया कि वे लोग मेरे गेस्ट थे और वह फ्लैट चौथी दुनिया ने किराए पर ले रखा है. इस मसले को वहीं समाप्त हो जाना चाहिए था, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने इसे प्रकाशित करने का निर्णय लिया और इस तरह से छापा कि मानो वहां कोई षड्यंत्र रचा जा रहा हो.

शेखर गुप्ता द्वारा विनोद मेहता के खिला़फ मानहानि का मुकदमा करना भारतीय पत्रकारिता का काला पन्ना ही माना जाएगा. अगर उन्हें यह लगा कि विनोद मेहता ने जो कहा है, वह गलत है, तो उन्हें अपने शब्दों, कलम के जरिए जवाब देना चाहिए था. अ़खबार के जरिए जनता की अदालत में यह बहस होनी चाहिए थी. इसके लिए अदालत की ज़रूरत कहां थी?

यह स्टोरी न केवल तथ्यात्मक गलतियों से भरी हुई है, बल्कि इसका मकसद चौथी दुनिया और संतोष भारतीय की प्रतिष्ठा पर हमला करना था. ऐसा लगता है कि शेखर गुप्ता वास्तविकता से कोसों दूर रहने वाले इंसान हैं. वह कभी भी हमारे अ़खबार की जनरल वी के सिंह के साथ निकटता को प्रकट करने से पीछे नहीं हटते, लेकिन शेखर गुप्ता को यह जानना चाहिए कि न तो अन्ना हजारे और न वी के सिंह कोई आर्म्स डीलर हैं और न कोई लॉबिस्ट हैं. असल में किसी भी भारतीय के लिए यह प्रतिष्ठा की बात है कि अन्ना हजारे या वी के सिंह उसके अतिथि बनें. आज भारत में जिस तरह से भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ा हुआ है, कोई भी आदमी जो अपने देश से प्यार करता है, वह बाबा रामदेव, अन्ना हजारे या वी के सिंह से मिलना पसंद करेगा और उनके साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिला़फ लड़ना चाहेगा. भारत के लोग उनसे मिलना चाहते हैं. एक होकर, उनके साथ मिलकर, बैठकें कर भ्रष्टाचार के खिला़फ खड़े होना चाहते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि इससे कुछ अच्छा परिणाम निकलेगा. केवल वही लोग इन्हें एक साथ नहीं देखना चाहते हैं, जो इस भ्रष्ट व्यवस्था से लाभ उठा रहे हैं. लेकिन एक अ़खबार दूसरे अ़खबार के दफ्तर में आने वाले अतिथियों के बारे में कोई स्टोरी क्यों प्रकाशित करेगा?

अगर हम इस अ़खबार (इंडियन एक्सप्रेस) के दफ्तर में आने वाले लोगों के प्रोफाइल के बारे में लिखना शुरू करें तो उन्हें खुद पर शर्मिंदा होना पड़ेगा. क्या कभी किसी ने यह स्टोरी की है कि शेखर गुप्ता के दफ्तर (इंडियन एक्सप्रेस बिल्डिंग) में उनसे मिलने कौन-कौन आता है? क्या इसे साहस भरी पत्रकारिता कहा जाएगा? चौथी दुनिया की यह शैली नहीं है कि वह पत्रकारों और संपादकों के ड्राइंगरूम की बातों को प्रकाशित करे. चौथी दुनिया ने हमेशा जनपक्षधर पत्रकारिता की है, आम आदमी की आवाज़ उठाई है. हमने कई बड़े घोटालों पर से पर्दा उठाया है. हमें कई धमकियां और लीगल नोटिस मिले हैं. हमने कभी भी इस वजह से राष्ट्रहित से समझौता नहीं किया. लेकिन क्या शेखर गुप्ता भी ऐसा दावा कर सकते हैं? हम इस तरह का दबाव झेल सकते हैं, क्योंकि हम किसी पंजाबी, सिंधी या साउथ इंडियन लॉबी का प्रतिनिधित्व नहीं करते. मालचा मार्ग जैसी जगहों पर हमारा कोई घर नहीं है. हम किसी इंडस्ट्रियल हाउस के निकट नहीं हैं, जो हमें मुंबई में घर दे दे और न पार्क लेन लंदन या स्पेन में हमारे पास कोई संपत्ति है. न ही हमारा दिल्ली के सैनिक फार्म इलाके में कोई फार्म हाउस है. हम न तो कभी बड़े होने का दावा करते हैं और न कोई टेलीविजन चैनल हमारी ब्रांडिंग मुफ्त में करता है.

आखिर शेखर गुप्ता ने यह स्टोरी क्यों प्रकाशित की? लोग उन्हें भ्रष्टाचार के खिला़फ लड़ रहे लोगों की मुखालफत करने वाले शख्स के रूप में जानते हैं. उन्हें अन्ना हजारे, बाबा रामदेव या अरविंद केजरीवाल पसंद नहीं हैं. इंटरनेट पर ऐसी कई खबरें और ऐसे कई आलेख हैं, जो इंडियन एक्सप्रेस में काम करने वाले पत्रकारों के लिए शर्मिंदगी पैदा कर सकते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की भूमिका पर प्रीतमसेन गुप्ता लिखते हैं कि नई दिल्ली में जब 5 अप्रैल को अन्ना हजारे जन लोकपाल क़ानून के लिए आमरण अनशन पर बैठे, तभी से इंडियन एक्सप्रेस ने 6 से 21 अप्रैल के बीच लगभग 21 ऐसी रिपोट्‌र्स, सात संपादकीय, 15 ओपिनियन आर्टिकल्स, तीन कार्टून एवं एक इलस्ट्रेशन प्रकाशित किए, जिनसे यह स्पष्ट हो रहा था कि किस तरह की बहस और किसके पक्ष में चलाई जा रही है. सा़फ था कि यह सब कुछ पाठकों एवं सड़क पर उतरे लोगों की भावना के ़िखला़फ और राजनीतिज्ञों, व्यापारियों एवं नौकरशाहों के हित में था. स़िर्फ एक बार लेटर वाले  कॉलम में एक पत्र छपा था, वह भी इंडियन एक्सप्रेस के एक पूर्व स्टाफ का, जो आंदोलन के समर्थन में था.

जहां तक जनरल वी के सिंह का सवाल है, इंडियन एक्सप्रेस अब इसे पर्सनल मैटर के रूप में देख रहा है. यह बात भी किसी से छुपी हुई नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस ने कैसे जनरल वी के सिंह के खिला़फ एक कैंपेन चला रखा है. जनरल वी के सिंह को बदनाम करने के लिए उसने ऐसी खबर भी छापी, जिसमें सेना द्वारा दिल्ली की ओर कूच करने की बात थी, ताकि इससे सेना और वी के सिंह के बीच मतभेद पैदा हो जाएं. सरकार और रक्षा विशेषज्ञों ने तत्काल इसका खंडन किया. इस घटना से इंडियन एक्सप्रेस एवं इसके संपादक शेखर गुप्ता की विश्वसनीयता और साख पर भी बट्टा लगा. लेकिन शेखर गुप्ता को अपनी प्रतिष्ठा की इतनी चिंता थी कि उन्होंने आउटलुक ग्रुप के एडिटोरियल चेयरमैन विनोद मेहता, ओपन मैगजीन के संपादक और संवाददाताओं के नाम लीगल नोटिस भेजकर 500 करोड़ रुपये हर्जाने की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि विनोद मेहता का जो इंटरव्यू छापा गया है, उससे मेरी प्रतिष्ठा का हनन होता है, इसलिए उसे ओपन मैगजीन की वेबसाइट से हटाया जाए, माफी मांगी जाए और हर्जाना दिया जाए. कोई भी यह उम्मीद करेगा कि इस घटना के बाद यह अ़खबार (इंडियन एक्सप्रेस)  भविष्य में कोई भी महत्वपूर्ण स्टोरी करते वक्त सावधानीपूर्वक विचार करेगा. लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ लोग कभी भी अपनी गलती से सबक़ नहीं लेते या नहीं लेना चाहते. बहुत सारे वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता द्वारा उठाए गए क़दम से भौचक्के थे. गुप्त रूप से लोग कहने लगे थे कि शेखर गुप्ता की पत्रकारिता का स्तर विनोद मेहता के पैरों के बराबर पहुंच गया है.

शेखर गुप्ता द्वारा विनोद मेहता के खिला़फ मानहानि का मुकदमा करना भारतीय पत्रकारिता का काला पन्ना ही माना जाएगा. अगर उन्हें यह लगा कि विनोद मेहता ने जो कहा है, वह गलत है, तो उन्हें अपने शब्दों, कलम के जरिए जवाब देना चाहिए था. अ़खबार के जरिए जनता की अदालत में यह बहस होनी चाहिए थी. इसके लिए अदालत की ज़रूरत कहां थी? एक पत्रकार को अपने शब्दों की ताकत पहचाननी चाहिए. इससे बढ़कर पत्रकारिता की सेवा और क्या होती, अगर शेखर गुप्ता अपने आलेखों के जरिए विनोद मेहता को जवाब देते. लेकिन उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह की तरह काम किया, जिन्होंने आर्मी चीफ को 14 करोड़ रुपये बतौर रिश्वत देने की पेशकश करने के आरोप में अपने खिला़फ सीबीआई द्वारा केस दाखिल किए जाने के जवाब में आर्मी चीफ के खिला़फ ही मानहानि का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

मीडियाक्रुक्स डॉट कॉम पर रविनार ने शेखर गुप्ता के बारे में एक आलेख लिखा है (शेखर गुप्ता लेज एन एग), जिसमें कहा गया है कि प्रेसीडेंट ट्रूमैन से विवाद के बाद भी जनरल मॅकअर्थर हमेशा एक लोकप्रिय जनरल रहे. सरकार को यह महसूस हो गया था कि वी के सिंह के साथ कुछ करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिला़फ लड़ने के चलते उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ भी गई थी. अगर सरकार चाहती तो जनरल वी के सिंह को हटा सकती थी, लेकिन वह ऐसा करने की कोशिश भी नहीं कर सकी. इसकी जगह जनरल सिंह पर सरकार और राष्ट्र विरोधी मीडिया ने कीचड़ उछालना शुरू किया. शेखर गुप्ता की फेल्ड कूप वाली स्टोरी इसी का एक हिस्सा थी. संडे गार्डियन में भी यह रिपोर्ट छपी कि इस पूरे कूप (फेल्ड कूप वाली स्टोरी) का सूत्रधार एक वरिष्ठ मंत्री था. तब शेखर गुप्ता ने संडे गार्डियन के खिला़फ केस क्यों नहीं किया, क्यों नहीं लीगल नोटिस भेजे?

रामनाथ गोयनका का इंडियन एक्सप्रेस कभी अ़खबारों, संपादकों एवं रिपोर्टरों के लिए प्रेरणास्रोत हुआ करता था. रामनाथ गोयनका अपनी निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाने जाते थे. उन्होंने आपातकाल के दौर में भी तानाशाह सरकार का विरोध किया, सवाल उठाए. इस अ़खबार ने कभी आम आदमी का कॉरपोरेट्‌स द्वारा शोषण किए जाने के खिला़फ आवाज़ उठाने का काम किया था. रामनाथ गोयनका ने कभी जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का समर्थन किया था, उन्हें सहयोग दिया था, बिना इस बात से डरे कि उनका अ़खबार बंद हो सकता है, लेकिन अब रामनाथ गोयनका का यही अ़खबार अपनी चाल, चरित्र और चेहरा बदल चुका है. यह अन्ना हजारे एवं वी के सिंह द्वारा चलाए जा रहे जनांदोलन और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का विरोध कर रहा है.

बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि इंडियन एक्सप्रेस की सरकार और सरकार तक पहुंच रखने वाले भारतीय एवं अमेरिकी थिंक टैंक्स के साथ मिलीभगत है. ऐसा मानने के पीछे वजहें भी हैं. इंडो-यूएस न्यूक्लियर बिल, माओवादियों के खिला़फ सेना के इस्तेमाल पर और जनांदोलनों के खिला़फ इस अ़खबार के रुख को देखते हुए ऐसा मानने में कुछ भी गलत नहीं है. यह विडंबना ही तो है कि कभी बिजनेस हाउस की मुखालफत करने वाले अ़खबार का चरित्र आज बदल कर ऐसा हो गया है कि कोई बिजनेस हाउस आसानी से अपनी खबर, अपने विचार उस पर थोप देता है और जैसी चाहे, वैसी स्टोरी छपवा लेता है. राडिया टेप कांड के बाद सबसे पहले रतन टाटा का इंटरव्यू शेखर गुप्ता ने ही एनडीटीवी के कार्यक्रम वॉक द टॉक में लिया था. या फिर यही अ़खबार कैसे वह पावर लिस्ट तैयार कर लेता है, जिसके बनाने के तरीकों और ज्यूरी के बारे में किसी को बताया तक नहीं जाता? जो लोग दिल्ली में चलने वाले पावर गेम से परिचित हैं, उन्हें इस बात से कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि कैसे शेखर गुप्ता को यूपीए सरकार की तऱफ से 2009 में देश का तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मभूषण मिल गया. अब यहां सवाल उठता है कि क्या इंडियन एक्सप्रेस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने वाले लोगों के खिला़फ दुष्प्रचार करने वाली ताकतों के हाथों का खिलौना बनकर रह गया है?

ओपन मैगजीन और विनोद मेहता पर 500 करोड़ का दावा

इंडियन एक्सप्रेस ने अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्रिका ओपन और आउटलुक पत्रिका के एडिटोरियल चेयरमैन विनोद मेहता को क़ानूनी नोटिस भेजा है. इंडियन एक्सप्रेस ने दोनों पर अ़खबार, अ़खबार के प्रधान संपादक और अ़खबार के तीन पत्रकारों की मानहानि करने का आरोप लगाया है. नोटिस में हर्जाने के रूप में 500 करोड़ रुपये की मांग की गई है. विनोद मेहता ने ओपन मैगजीन को एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में सेना के दिल्ली की ओर गुपचुप तरीके से हुए मूवमेंट पर प्रकाशित खबर की आलोचना की थी. मेहता ने अप्रत्यक्ष रूप से खबर के सूत्र को सम मिसचीफ मेकर (शरारती तत्व) और खबर को प्रकाशित करने के निर्णय को बहुत बड़ी भूल बताया था. नोटिस पढ़कर मेहता ने कहा कि इस तरह के विवाद का निपटारा अदालत की अपेक्षा बहस से करना बेहतर होता. इंडियन एक्सप्रेस के पास नोटिस भेजने का अधिकार है, लेकिन मैं आशा कर रहा था कि इस तरह के विवाद का निपटारा कोर्ट की बजाय बहस से होना चाहिए. खैर, मुझे क़ानूनी नोटिस से कोई परेशानी नहीं है.

क़ानूनी नोटिस में कहा गया है कि ओपन मैगजीन में प्रकाशित खबर, जिसका शीर्षक मदर ऑफ आल मिस्टेक्स (सभी गलतियों की मां) था और जो विनोद मेहता के साथ साक्षात्कार के रूप में थी, उसे इंडियन एक्सप्रेस की छवि खराब करने के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया था. नोटिस में मा़फीनामा छापने के अलावा इंडियन एक्सप्रेस, शेखर गुप्ता और अन्य तीन पत्रकारों के खातों में चौबीस घंटे के अंदर सौ-सौ करोड़ रुपये जमा करने की मांग की गई है. अ़खबार अब भी अपनी खबर के बचाव में खड़ा है और उसने इस बात पर जोर दिया कि उस खबर में कहीं भी तख्ता पलट की बात नहीं कही गई थी. सरकार भी उस खबर को आधारहीन बता चुकी थी. क़ानूनी नोटिस में विनोद मेहता के साक्षात्कार के अंशों को कोट किया गया है और उन्हें अ़खबार और उसके संपादक के खिला़फ सीधा हमला बताया गया है. नोटिस में विनोद मेहता की इस बात को कोट किया गया है कि अ़खबारों को गुमराह करना शरारती तत्वों का काम है, लेकिन संपादकों का काम है कि वे शरारतों की पहचान करके उन्हें हटा दें.

मीडिया संस्थानों और पत्रकारों के साथ गुप्त समझौता

विकीलीक्स ने आरोप लगाया है कि एक अमेरिकी सुरक्षा थिंक टैंक स्ट्रैटफॉर ने डाउ केमिकल के लिए 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े आंदोलन के कार्यकर्ताओं की जासूसी की थी. विकीलीक्स ने जासूसी से जुड़े गुप्त ई-मेल्स का खुलासा करते हुए कहा कि उक्त मेल जुलाई 2004 से दिसंबर 2011 के बीच भेजे गए थे. विकीलीक्स ने आरोप लगाया और कहा कि उक्त फाइलें बताती हैं कि स्ट्रैटफॉर ने किस तरह सूचना देने वालों की भर्ती की और एक वैश्विक नेटवर्क बनाया. सूचना देने वालों को स्विस बैंक खातों अथवा प्री-पेड क्रेडिट कार्डों के मार्फत पैसे पहुंचाए गए. विकीलीक्स ने आरोप लगाया कि स्ट्रैटफॉर के पास प्रत्यक्ष और गुप्त, दोनों तरह के सूचना देने वालों का मिला-जुला दल था, जिसमें सरकारी कर्मचारी, एंबेसी के कर्मचारी और दुनिया भर के पत्रकार शामिल थे. विकीलीक्स ने यह आरोप भी लगाया कि स्ट्रैटफॉर ने दर्जनों मीडिया संस्थानों और पत्रकारों के साथ समझौता किया था. विकीलीक्स ने कहा कि उसके पास स्ट्रैटफॉर को सूचना देने वालों की सूची है और अधिकांश मामलों में सूचना देने वालों (इंफॉरमेंट्‌स) को पैसे भी दिए गए. जैरोनिमो नामक एक सूचना देने वाले को स्ट्रैटफॉर के स्टेट विभाग के पूर्व अध्यक्ष फ्रेड बर्टन द्वारा 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति माह पहुंचाए गए. विकीलीक्स ने 25 मीडिया संस्थानों के साथ इंवेस्टिगेटिव पार्टनरशिप की है, जिसमें भारत का द हिंदू भी शामिल है. इन संस्थानों को विकीलीक्स द्वारा तैयार किए गए इंवेस्टिगेटिव डेटाबेस तक पहुंचने की सुविधा उपलब्ध कराई गई और अब उक्त संस्थान विकीलीक्स के साथ मिलकर उनका निरीक्षण कर रहे हैं.

स्रोत: आउटलुक डॉट कॉम

मज़ेदार बात यह है कि इनमें से एक फाइल में कहा गया है कि इंडियन एक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ता भारत में स्ट्रैटफॉर के अकेले स्रोत हैं.

(http://wikileaks.org/gifiles/docs/1149294_confed-fuckhouse-.html) suggests that the Indian Express editor, Shekhar Gupta, is Stratfor’s only contact in India.

स्रोत: हार्डन्यूज डॉट कॉम

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